वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह कहा था कि कर संग्रह बढ़ाने के लिए करदाताओं की संख्या में इजाफा करना होगा। वित्त मंत्री ने इसके पीछे तर्क दिया था कि करदाताओं की संख्या बढ़ेगी तो कर संग्रह भी बढ़ेगा और अंतत: कर दरों में कटौती का रास्ता भी खुल जाएगा। मगर क्या संग्रह इसके उलट तरीके से नहीं बढ़ाया जा सकता है? यानी क्या कर दरें कम रहने से अधिक से अधिक संख्या में करदाता कर भुगतान के लिए आगे नहीं आएंगे? वास्तव में कर दरें कम रहने के कई और लाभ भी मिल सकते हैं और कई दूसरी बड़ी समस्याएं भी सुलझाई जा सकती हैं। उपभोग के मद में खर्च में कमी और वित्तीय प्रणाली में नकदी का आदान-प्रदान जारी रहना ऐसी ही समस्याएं है। वास्तव में ये एक दूसरे से जुड़े हैं।
फिलहाल हालत यह है कि कर भुगतान में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाने वाले करदाता भी रोजमर्रा में काम आने वाले उत्पादों पर करीब 20 प्रतिशत से अधिक खर्च करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। केश तेल, टूथपेस्ट और शैंपू ऐसी ही कुछ वस्तुएं हैं। उपभोक्ता इनके बदले नकद भुगतान कर रहे हैं।
एक अन्य उदाहरण पर भी विचार करते हैं। लोग अक्सर अपने घरों की मरम्मत करते रहते हैं। इस कार्य में दो प्रमुख सामग्री की जरूरत होती है। ये दो सामग्री सीमेंट और पेंट हैं। मान लें कि घर की मरम्मत में 2 लाख रुपये मूल्य का सीमेंट लगेगा। अगर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान 28 प्रतिशत दर से करना है तो कुल मिलाकर 2.56 लाख रुपये खर्च होगा। इसी तरह, पेंट के लिए अगर 1 लाख रुपये की जरूरत होगी तो किसी व्यक्ति को 18 प्रतिशत जीएसटी के साथ कुल मिलाकर 1.18 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। इस उदाहरण पर दूसरे दृष्टिकोण से भी विचार किया जा सकता है। जीएसटी के साथ घर की मरम्मत पर 3.74 लाख रुपये खर्च आएगा मगर पूरा भुगतान नकद किया जाए तो केवल 3 लाख रुपये ही जेब से जाएंगे। कोविड-19 महामारी से देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई है और इसका असर लोगों की आय पर भी हुआ है। ज्यादातर लोगों की कमाई कोविड महामारी के बाद कम हो गई है। इन चुनौतीपूर्ण हालात में सरकार लोगों से उपभोग पर अधिक खर्च करने की उम्मीद नहीं कर सकती है। बात अगर आवश्यक वस्तुओं की हो तो खर्च वाजिब लगता है मगर फ्रिज, एयर कंडीशनर और टेलीविजन जैसी विलासिता की वस्तुओं पर कोई भी व्यक्ति असामान्य हालात में खर्च करने की हिम्मत स्वाभाविक तौर पर नहीं जुटा पाएगा। इन सभी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत या 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है।
यहां पर एक तर्क यह दिया जा सकता है कि ऐसे दुकानदार छोटे हैं और इनकी सालाना कमाई निर्धारित 40 लाख रुपये की सीमा से कम है। लिहाजा उन्हें जीएसटी से मुक्त रखा गया है। मगर जीएसटी के दायरे से उन्हें मुक्त रखना स्वयं एक समस्या का कारण बन जाता है। एक ग्राहक के रूप में मैं यह कैसे पता करूंगा कि अमुक दुकानदार की सालाना कमाई कितनी है? एक ग्राहक कैसे मालूम कर पाएगा कि दुकानदार को जीएसटी देना पड़ता है या नहीं या फिर इसके मद में ली गई रकम वह अपनी जेब में डालेगा या सरकार को कर देगा?
हां, जीएसटी के मद में भुगतान की गई रकम कहां जाएगी इसका पता लगाया जा सकता है।
ग्राहक दुकानदार से जीएसटी क्रमांक के साथ बिल की मांग कर सकता है। मगर यहां एक और समस्या खड़ी हो जाती है। इस बात का पता कैसे चलेगा कि दुकानदार जो बिल दे रहा है उस पर अंकित जीएसटी क्रमांक सही है? कई ग्राहक इस पेचीदा प्रक्रिया से बचना चाहता है। मोटे तौर पर इस तरह के लेनदेन में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए मगर ग्राहक नकद भुगतान करने में स्वयं को अधिक सहज पाता है। अब इस पूरी प्रक्रिया के नतीजे पर गौर करते हैं। सरकार जब आर्थिक गतिविधियों का जायजा लेने की कोशिश करती है तो ऐसे लेनदेन सामने नहीं आ पाते हैं। इससे सरकार को जीएसटी के रूप में प्राप्त होने वाले राजस्व से हाथ धोना पड़ता है। नकद लेनदेन कम करने की सरकार की योजना की राह में भी इससे बाधा उत्पन्न होती है। जीएसटी परिषद ने मान लिया कि कर दरों को लेकर रेवेन्यू न्यूट्रल रेट का आंख मूंदकर पालन करने से उन वस्तुओं पर अधिक कर लग रहा है जिन पर अमूमन कम कराधान होना चाहिए। इसे देखते हुए जीएसटी परिषद ने दरें कम कर दी हैं और अनुपालन बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार मौजूदा वेटेड औसत जीएसटी दर 11.6 प्रतिशत है। यह 15 प्रतिशत राजस्व रेवेन्यू न्यूट्रल रेट से काफी कम है। जब जीएसटी का क्रियान्वयन हुआ था तो उस समय 15 प्रतिशत रेवेन्यू न्यूट्रल रेट की सिफारिश की गई थी।
इसके बावजूद कोविड महामारी में भी जीएसटी राजस्व उच्चतम स्तरों पर हैं। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में औसत जीएसटी राजस्व 1.16 लाख करोड़ रुपये रहा है। जीएसटी क्रियान्वयन के बाद से यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है। कोविड महामारी से पहले वित्त वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 1.01 लाख करोड़ रुपये था। जीएसटी परिषद की अध्यक्ष होने के नाते वित्त मंत्री को राज्यों को अधिक से अधिक वस्तुओं को 28 प्रतिशत और 18 प्रतिशत से निचली कर श्रेणियों में लाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसा करने से न केवल कर अनुपालन बढ़ेगा बल्कि अधिक उपभोग से कर राजस्व में भी इजाफा होगा। मगर वित्त मंत्री को दो बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहली बात यह कि कर अधिकारी मंत्रियों को हमेशा यह कह कर डराते रहते हैं कि अनुपालन सुनिश्चित करने से पहले कर दरें घटाने से राजस्व में कमी आएगी।
