अगस्त माह में सात फीसदी की खुदरा मुद्रास्फीति की दर ने अधिकांश विश्लेषकों को सकारात्मक ढंग से चौंकाया। चूंकि कीमतों में इजाफा व्यापक आधार पर था इसलिए संभव है कि आने वाले महीनों में भी दरें ऊंची बनी रहेंगी। उदाहरण के लिए अगस्त में प्रमुख अनाजों की कीमतें 9.57 फीसदी बढ़ीं जबकि सब्जियों की कीमतों में 13 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ। कुल मिलाकर खाद्य कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 7.62 फीसदी थी।
देश के कई इलाकों में कम बारिश होने के कारण मूल मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है और ऐसे में खाद्य कीमतों पर दबाव बरकरार रह सकता है। सरकार ने गत सप्ताह कीमतों को नियंत्रित करने की कोशिश में चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए। हालांकि अनुमान बताते हैं कि असमान बारिश का उत्पादन पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन फिर भी यह आने वाले महीनों में कीमतों को प्रभावित कर सकता है।
सरकार ने बीते महीनों के दौरान मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय अपनाए हैं। उसने न केवल देश के कई हिस्सों में गर्म हवा के थपेड़ों के चलते उत्पादन में कमी को देखते हुए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया बल्कि उसने तेल विपणन कंपनियों को भी संकेत दिया कि वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का भार ग्राहकों पर न डालें। जानकारी के मुताबिक अब सरकार तेल विपणन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में हुए इजाफे की भरपाई के लिए 20,000 करोड़ रुपये दे रही है।
इनमें से कुछ उपायों ने भले ही मुद्रास्फीति को थामने में मदद की हो लेकिन इनके कारण बाजार में ऐसी विसंगति भी आई है जो दीर्घावधि में अपना असर दिखाएगी। उदाहरण के लिए हालांकि बीते तीन महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत करीब 25 फीसदी कम हुई है लेकिन इसका असर पेट्रोल पंप पर तेल की कीमतों पर नहीं पड़ा है। संभावना यही है कि कंपनियां पहले अपने नुकसान की भरपाई करेंगी और उसके बाद ही लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुंचने देंगी। यह एक अपारदर्शी प्रक्रिया है और उपभोक्ताओं को प्रभावित करती है।
उभरते वृहद आर्थिक हालात ने भारतीय रिजर्व बैंक के लिए परिस्थितियां कठिन बना दी हैं। मुद्रास्फीति की दर लगातार आठ महीनों से तय दायरे की ऊपरी सीमा से ऊपर रही है और अनुमानों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में यह तय दायरे में नहीं आ पाएगी।
ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक को पहले इसे छह फीसदी के नीचे लाना होगा और उसके बाद इसे चार प्रतिशत के लक्ष्य के करीब रखने का प्रयास करना होगा। यह एक लंबा संघर्ष है। हालांकि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति और वित्तीय हालात को सख्त करता रहा है लेकिन आर्थिक वृद्धि शायद उतनी मजबूत न निकले जितनी कि अपेक्षा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 13.5 फीसदी रही जबकि रिजर्व बैंक ने 16.2 फीसदी वृद्धि का अनुमान जताया था।
ऐसे में आने वाली तिमाहियों के अनुमान के आधार पर देखें तो चालू वित्त वर्ष के दौरान वृद्धि दर सात फीसदी से नीचे रहने की उम्मीद है। उदाहरण के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक जुलाई माह में केवल 2.4 फीसदी रहा। बहरहाल, अनुमान से धीमी वृद्धि के बावजूद रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
विश्लेषकों का अनुमान है कि इस माह के अंत में नीतिगत रीपो दर में 35 से 50 अंकों का इजाफा हो सकता है। कीमतों पर लगातार दबाव को देखते हुए बेहतर होगा कि मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों में 50 आधार अंकों का इजाफा करे। रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजारों में रुपये की अस्थिरता से आक्रामक ढंग से निपटकर भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है। चूंकि बाहरी हालात निकट भविष्य में बदलते नहीं दिखते इसलिए रुपये को समायोजित न होने देने से ऐसी विसंगति उत्पन्न हो सकती है जिसे बचना ही बेहतर है।