भारतीय अर्थव्यवस्था ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अधिकांश अनुमानों से बेहतर प्रदर्शन किया और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में संकुचन 7.5 फीसदी ही रहा जबकि पहली तिमाही में करीब 24 फीसदी संकुचन हुआ था। तमाम विश्लेषक जुलाई-सितंबर तिमाही में कम-से-कम 8 फीसदी संकुचन की आशंका जता रहे थे लेकिन तिमाही के आंकड़े सामने आए तो बाजार में हुए हालिया आशावादी संशोधन भी पीछे छूट गए। जीडीपी में अनुमान से कम गिरावट ने जल्दी से हालात में सुधार की उम्मीदें जगाने का काम किया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अर्थशास्त्री अब उम्मीद कर रहे हैं कि तीसरी तिमाही में ही जीडीपी संकुचन के इस दौर से उबर जाएगा।
लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की पीड़ा का अंत जल्द होने की संभावना कम ही है। आर्थिक गतिविधि में क्रमानुसार सुधार होने की व्यापक अपेक्षाएं होने के बावजूद कोविड-19 मामलों में दोबारा उछाल आने पर भरोसे एवं मांग पर फिर से बुरा असर पड़ सकता है। इसके अलावा दूसरी तिमाही के आंकड़े भले ही अपेक्षा से बेहतर रहे हैं लेकिन उनसे निकट भविष्य में उपभोक्ताओं एवं निवेशकों का विश्वास शायद ही बढ़े। मसलन, सबसे बड़ा आश्चर्य विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि का था। हालांकि 0.6 फीसदी की बढ़त पिछले साल की समान अवधि में आए संकुचन के बरक्स है। समग्र स्तर पर भी यह ध्यान रखना होगा कि पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि फिसलकर 4.4 फीसदी पर आ गई थी। इस तरह चालू वर्ष में दर्ज किए जा रहे बदलाव सापेक्षिक रूप से कमजोर आधार के नाते हैं। यह संभावना भी है कि रुकी हुई एवं त्योहारी मांग दोनों ने ही दूसरी तिमाही में अस्थायी बढ़ावा दिया है लेकिन यह लगातार जारी नहीं रह सकता है। बिजली उत्पादन एवं गतिशीलता जैसे कुछ अग्रणी संकेतक पहले से ही नरमी का इशारा कर रहे हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने अपने प्रेस नोट में आंकड़ों से संबंधित मुद्दों को रेखांकित किया है जिससे जीडीपी अनुमान में बड़ा संशोधन भी हो सकता है। ये आंकड़े संभवत: असंगठित क्षेत्र की हालत को सही तरह से नहीं दर्शा रहे हैं जिसके संगठित क्षेत्र की तुलना में अधिक प्रभावित होने की आशंका है। लिहाजा अधिक सटीक अनुमान तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लग सकता है।
रिकवरी की राह में सबसे बड़ा जोखिम कोविड मामलों में फिर से उछाल आने की आशंका ही है। अमेरिका जैसे कई देशों में कोविड संक्रमण के मामलों में दोबारा उछाल देखने को मिल रही है। भले ही टीके के विकास से जुड़ी खबरें उत्साह जगाने वाली हैं लेकिन व्यापक जनसंख्या के लिए यह नहीं उपलब्ध होने वाला है। नीतिगत हस्तक्षेप के संदर्भ में मुद्रास्फीति की हालत को देखते हुए मौद्र्रिक नीति समिति इस सप्ताह होने वाली अपनी बैठक में नीतिगत ब्याज दर को अपरिवर्तित रखने का ही फैसला कर सकती है, हालांकि आरबीआई को अपनी वृद्धि एवं मुद्रास्फीति पूर्वानुमानों में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। राजकोषीय मोर्चे पर सरकार ने दूसरी तिमाही में बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन राजस्व संग्रह में सुधार होने से दूसरी छमाही में अधिक खर्च की गुंजाइश बन सकती है। हालांकि नीतिगत विमर्श जल्द ही बजट संबंधी अपेक्षाओं पर केंद्र्रित हो जाएगा। सरकार से अगले वित्त वर्ष से कुछ राजकोषीय मजबूती दिखाने की अपेक्षा होगी और उसे बढ़े हुए खर्च को समर्थन देने के लिए राजस्व में वृद्धि पर निर्भर रहना पड़ सकता है।
व्यापक स्तर पर भले ही आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाले प्रमुख आंकड़े आने वाली तिमाहियों में बेहतर होंगे लेकिन निरपेक्ष रूप में अर्थव्यवस्था शायद वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक ही महामारी-पूर्व की स्थिति में पहुंच पाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी का यह रास्ता लंबा होगा। मध्यम अवधि में तो परिदृश्य काफी हद तक अनिश्चित ही नजर आ रहा है।
