कंप्यूटिंग की दुनिया में एक बहस बहुत पहले से चली आ रही है कि माइक्रोसॉफ्ट विंडोज और लाइनेक्स में से बेहतर कौन है?
इस मामले में तो दोनों पक्षों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। दोनों के फैन्स की नजर में उनका ऑपरेटिंग सिस्टम जबरदस्त है। दोनों का इस्तेमाल दुनिया में खूब होता है। इन लोगों की इस जबरदस्त दीवानगी के पीछे वजहें भी काफी मजबूत हैं। इसी वजह से लोग इसके दीवाने हैं।
लेकिन इनकी तुलना कोई आसान काम नहीं है। पहली बात तो यह है कि दोनों के कई वर्जनों में मौजूद हैं। मतलब यह है कि शुरू होने के समय के विंडोज और आज के विंडोज में काफी बदलाव आ चुका है। खुद विंडोज के कई वर्जनों के बीच अच्छी खासी तुलना हो सकती है। आप 1995 के विंडोज की तुलना विंडोज विस्टा से करेंगे तो आपको कई खामियां दिख जाएंगी।
यही हाल लाइनेक्स के साथ भी है। इसके भी वर्जन बाजार में हैं। ऊपर से इन्हें अलग-अलग कंपनियां मुहैया करवा रही हैं, तो दिक्कत और भी बढ़ जाती है। इससे भी मुसीबत यह है कि ये दोनों ऑपरेटिंग सिस्टम डेस्कटॉप, सर्वर, एम्बेडड और मल्टीमीडिया जैसे कई एडीशंस में मौजूद हैं।
इनके एडीशंस और डिस्ट्रीब्यूटरों के मुताबिक भी कीमतों में काफी ऊंच-नीच होती रहती है। इस वजह से दोनों में से किसी को चुनना बाएं हाथ का खेल नहीं है। फिर भी जितना हो सकता था, बातों को ध्यान में रखकर हमने आपके लिए यह तुलना की है। जैसे तो आइए जानें कौन है इन दोनों में से सरताज।
पीसी का चहेता विंडोज
आज की तारीख में दुनिया में करीब 92 फीसदी डेस्कटॉप यूजर्स अपने कंप्यूटर के लिए माइक्रोसॉफ्ट विंडोज का इस्तेमाल करते हैं। वहीं, केवल 0.65 फीसदी पसर्नल कंप्यूटरों (पीसी) के लिए ही लाइनेक्स का इस्तेमाल होता है। दरअसल, इसकी वजह यह है कि दुनिया में बिकने वाले ज्यादातर पसर्नल कंप्यूटरों में पहले से ही विंडोज इंस्टॉल होता है। दूसरी तरफ, लाइनेक्स को लोड करवाना पड़ता है।
वैसे, कई वेंडर लाइनेक्स वाले पीसी को भी बेचते हैं, लेकिन उनका ग्राहक बेस बहुत ही छोटा है। साथ ही, उनकी कीमत भी बहुत कम होती है, इसी वजह लोग उन्हें लेने से भी हिचकिचाते हैं। लेकिन सर्वरों के मामले में तो लाइनेक्स, विंडोज को पूरी टक्कर देता है। जहां इस बाजार में विंडोज का 36 फीसदी बाजार पर कब्जा है, वहीं लाइनेक्स भी लगभग 13 फीसदी लोगों का चहेता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि सुपरकंप्यूटरों का तो चहेता लाइनेक्स ही होगा। दुनिया के करीब 85 फीसदी सुपरकंप्यूटर इसी ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलते हैं, जबकि केवल 1.2 फीसदी सुपरकंप्यूटर ही विंडोज का इस्तेमाल करते हैं। दुनिया के 10 सबसे विश्वसनीय वेबसाइटों में से पांच के सर्वर लाइनेक्स पर चलते हैं, जबकि केवल दो विंडोज प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं।
वायरस फ्री लाइनेक्स
आज की दुनिया में कंप्यूटरों वायरसों के आतंक से बचना काफी मुश्किल काम है। दुनिया भर में हर साल लाखों कंप्यूटरों को ये वायरस तबाह कर देते हैं। वायरसों की खास पसंद विंडोज ही होते हैं।
दरअसल, इसके पीछे केवल यही वजह नहीं है कि इसके इस्तेमाल करने वाले ज्यादा हैं, इसलिए इन्हीं को निशाना बनाने वाले वायरस ज्यादा चर्चा में आते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक विंडोज में कुछ बनावटी खामियां हैं, जिनकी वजह से इन्हें लाइनेक्स पर काम करने वाले कंप्यूटरों के मुकाबले निशाना बनाना आसान हो जाता है।
पहली बात तो यह कि माइक्रोसॉफ्ट को सिंगल यूजर डिजाइन को अपनाए हुए केवल कुछ ही दिन हुए हैं। माइक्रोसॉफ्ट इससे पहले मल्टी यूजर डिजाइन पर ही प्रोग्राम बनाया करता था। इसी वजह से विंडोज में कई वायरसों का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। विंडोज का शुरुआती डिजाइन कुछ इस तरह से बनाया गया था कि कोई भी यूजर और प्रोग्राम सिस्टम के अहम हिस्सों तक भी बड़े आराम से पहुंच सकता था।
इस वजह से ट्रोजन और वायरस भी बड़े आराम से पूरे कंप्यूटर को बड़े आराम से दीमक की तरह चाट सकते थे। इस दिक्कत को दूर करने की बड़ी पहल माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज एक्सपी के साथ की, लेकिन उसमें भी कई खामियां थी। वहीं, लाइनेक्स शुरू से ही मल्टी यूजर डिजाइन पर आधारित रहा है। यहां हर यूजर को एक डायरेक्टरी या मेमोरी का एक खास हिस्सा दे दिया जाता है, जिसमें उसकी फाइलें सेव रहती हैं। वह एकलौता यूजर पूरे सिस्टम तक नहीं पहुंच सकता।
वह तब तक दूसरे की डायरेक्टरी में नहीं जा सकता, जब तक एडमिनिस्ट्रेटर उसे इस बात की खास इजाजत नहीं दे देता। दूसरी तरफ, विंडोज को मोनोलिथिक डिजाइन से बनाया गया है। इसके तहत पूरे सिस्टम को एक यूनिट माना जाता है। मतलब, इसका हर हिस्से एक दूसरे से जुड़ा रहता है। इस वजह से पूरे सिस्टम पर जबरदस्त खतरा मंडराने लगता है कि कोई भी प्रोग्राम कंप्यूटर के किसी भी हिस्से तक पहुंच सकता है।
वहीं, लाइनेक्स मॉडयूलर डिजाइन पर आधारित है। मतलब, लाइनेक्स में कंप्यूटर का हर हिस्सा कंप्यूटर के मुख्य दिमाग ‘करनेल’ से जुडा होता है। यहां कुछ भी एक दूसरे से जुड़ा हुआ नहीं होता। किसी भी प्रोग्राम को दूसरे प्रोग्राम का इस्तेमाल करना है, तो वह पहले करनेल के पास संदेश भेजता है। फिर करनेल दूसरे प्रोग्राम से वह काम करवा कर वापस पहले वाले प्रोग्राम के पास भेज देता है। इसलिए यहां वायरस का ज्यादा असर नहीं होता।
परफॉमेंस का उस्ताद लाइनेक्स
विंडोज के साथ सबसे बड़ी दिक्कत उसके क्रैश होने की होती है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपने इसके रनटाइम मेमोरी से ज्यादा प्रोग्राम चला दिए तो फिर सिस्टम थप पड़ जाता है। फिर आपके सामने स्क्रीन पर केवल नीले रंग आने लगता है, जिसे ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ कहते हैं। इसके बाद तो सिस्टम रिस्टोर करने में आपको नानी याद तक आ सकती है।
हालांकि, इस बात का खतरा विंडोज के पुराने एडीशंसं जैसे 95, 98, 98एसई और मिलेनियम में ज्यादा हुआ करता था। इसमें ऊपर से हर हार्डवेयर के लिए अलग ड्राइवर की भी जरूरत होती है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें आपको वर्जन बदलने के साथ-साथ फिर से सॉफ्टवेयर को लोड करने की जहमत नहीं उठानी पड़ती। दूसरी तरफ, लाइनेक्स में क्रैश होने का खतरा नहीं रहता।
दरअसल, इसकी वजह है इसकी मॉडयलूर डिजाइनिंग। इसकी वजह से ज्यादा खतरनाक दिख रहे ऑपरेशंस को करनेल पहले ही खत्म कर देता है और आपका कंप्यूटर बच जाता है। साथ ही, कई जगह से प्रोग्रामिंग होने की वजह इसमें कई हार्डवेयरों के ड्राइवर तो पहले से मौजूद होते हैं। लेकिन इसमें एक बड़ी खामी यह है कि आप इसके जितने अलग-अलग वर्जन को लोड करेंगे आपको उतनी ही बार सॉफ्टवेयर भी लोड करने पड़ेंगे। गेमिंग के मामले में भी विंडोज का लोकप्रिय होना उसके लिए तुरूप का पत्ता साबित होता है।
फैसले की घड़ी
यह सबसे मुश्किल बात है। लाइनेक्स की परफॉमेंस अच्छी है, तो विंडोज ज्यादा यूजर फ्रेंडली है। वैसे, विंडोज के लिए आपको मोटी रकम चुकानी पड़ सकती है। लाइनेक्स का बेसिक वर्जन आप फ्री में इंटरनेट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। लाइनेक्स कंप्यूटरों पर विंडोज के मुकाबले वायरस के हमले भी ज्यादा नहीं होते। लेकिन फिर भी विंडोज के ज्यादा लोकप्रिय होने की वजह ज्यादातर लोग उसकी तरफ जाते हैं।