मुद्रास्फीति को लेकर बढ़ते सार्वजनिक दबाव के कारण यह तय था कि केंद्र सरकार आज नहीं तो कल इस दिशा में कदम उठाएगी। खासतौर पर ईंधन कीमतों में हो रहे इजाफे के कारण बढ़ती महंगाई को देखते हुए उसका ऐसा करना तय था। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 7.8 फीसदी हो गई जबकि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 15.1 फीसदी हो गईं। ऐसे में दबाव को कुछ हद तक कम करने के लिए सरकार ने शनिवार को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमश: 8 और 6 रुपये की कमी की। सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए गैस सिलिंडर में 200 रुपये प्रति सिलिंडर की कमी की घोषणा भी की। कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के अलावा उसने कुछ प्रकार के स्टील उत्पादों तथा इस क्षेत्र के कच्चे माल पर आयात शुल्क घटाया तथा निर्यात शुल्क बढ़ाया।
सरकार द्वारा ईंधन में शुल्क कम करने के निर्णय से राजनीतिक दबाव थोड़ा कम होगा लेकिन कुल मुद्रास्फीति पर इसका बहुत असर होने की संभावना नहीं है क्योंकि दबाव का असर बहुत व्यापक है। अनुमान के मुताबिक ईंधन कर में कटौती के कारण जून तक खुदरा महंगाई में 20 आधार अंक की कमी आएगी। इससे समग्र मुद्रास्फीतिक नतीजों में कोई खास बदलाव आता नहीं दिखता और भारतीय रिजर्व बैंक पर भी दबाव नहीं हटेगा।
नोमुरा ने अपने एक शोध पत्र में कहा कि वह मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अपने उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के अनुमान को 7.2 फीसदी पर अपरिवर्तित छोड़ रही है क्योंकि अभी भी कई जोखिम शेष हैं। इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में कितना मुद्रास्फीतिक दबाव है। मौद्रिक नीति समिति ने अपनी एक हालिया अनियतकालीन बैठक में नीतिगत रीपो दर में 40 आधार अंकों का इजाफा किया। अब अनुमान है कि जून बैठक में 50 आधार अंकों का और इजाफा किया जाएगा। अब वित्तीय बाजारों को आरबीआई के संशोधित मुद्रास्फीति अनुमानों की प्रतीक्षा है ताकि भविष्य के मौद्रिक कदमों का बेहतर अनुमान लगाया जा सके। भले ही करों में कटौती मुद्रास्फीति पर बहुत असर न डाले लेकिन इसका राजकोषीय गणित पर असर होगा। ईंधन कर कटौती से जो राजस्व गंवाया जाएगा वह अनुमानत: एक लाख करोड़ रुपये वार्षिक हो सकता है। वास्तविक प्रभाव थोड़ा कम रहेगा क्योंकि राजकोषीय वर्ष के तकरीबन सात सप्ताह पहले ही बीत चुके हैं। इसके अलावा गैस सब्सिडी का असर भी करीब 6,100 करोड़ रुपये पड़ेगा। बहरहाल, बजट पर बड़ा प्रभाव अतिरिक्त उर्वरक सब्सिडी से आएगा। सरकार इसके लिए करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि आवंटित कर रही है और कुल सब्सिडी 2.15 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। अतिरिक्त सब्सिडी का बोझ तथा कर कटौती के कारण गंवाए गए राजस्व एवं रिजर्व बैंक से अनुमान से कम लाभांश के कारण बजट पर यकीनन दबाव बनेगा। सरकार पर राजनीतिक दबाव की बात करें तो उस पर राहत प्रदान करने का दबाव बना रहेगा क्योंकि वैश्विक जिंस कीमतों में निकट भविष्य में कमी होती नहीं दिख रही। यह बात ध्यान देने लायक है कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ पूरी तरह आगे नहीं बढ़ाया गया है और तेल विपणन कंपनियां कुछ बोझ वहन कर रही हैं। बजट पर इसका भी असर होगा।
बहरहाल, दूसरी ओर कर संग्रह मजबूत रह सकता है और नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी की तेज गति से भी मदद मिलेगी। कुछ विश्लेषक कह रहे हैं कि जीडीपी के 6.4 फीसदी राजकोषीय घाटे में थोड़ा इजाफा हो सकता है लेकिन ज्यादा बेहतर तस्वीर आने वाले महीनों में ही सामने आएगी। अनिश्चितता के स्तर को देखते हुए सरकार के लिए यह अहम होगा कि वह पूंजीगत व्यय के आवंटन में कटौती न करे।
