ऑफशोर डॉलर मार्केट 1960 के दशक में स्थापित हुआ, जब इसे यूरो डॉलर मार्केट नाम से जाना जाता था।
तबसे, लाइबोर (लंदन इंटरबैंक आफर्ड रेट) अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजार के स्तंभों में से एक माना जाता रहा है। शायद यह सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाने वाला मानक है जिसे आधार बनाकर लोन की कीमतें तय की जाती हैं।
इसी के आधार पर ब्याज दरों की फ्लोटिंग रेट यानी परिवर्तनीय दर तय होती है। चूंकि सैध्दांतिक रूप से ही सही, यह एक बैंक के लिए समुद्रपारीय बाजार में डॉलर की उधारी की लागत का सूचक है, इसलिए ज्यादातर ऋण की लागत लाइबोर के दायरे में तय की जाती है।
यह दायरा यानी स्प्रेड लेनदेन में ऋण के जोखिम पर निर्भर करता है। ब्याज दरों के स्वैप मार्केट के बहुत बड़े आकार के कारण खरबों डॉलर के अनुबंधों में लाइबोर का प्रयोग होता है। सही संख्या की पुष्टि न हो पाने की खामी के बावजूद लाइबोर की लोकप्रियता आज भी कायम है।
संविदाओं में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला बेंचमार्क बीबीए (ब्रिटिश बैंकर्स एसोसिएशन) लाइबोर है। इसका प्रकाशन लंदन के समय के मुताबिक सुबह11 बजे होता है। अमेरिका के बाजार इसी के बाद खुलते हैं।
इसका संविदा भाव सर्वेक्षण के आधार पर तय किया जाता है, जिसमें लंदन के 16 बड़े वैश्विक बैंकों के आंकड़े शामिल होते हैं। इसमें केवल 3 अमेरिकी बैंक हैं।
लंदन के समय के मुताबिक 11 से 11.10 बजे के बीच ये 16 बैंक बीबीए को रिपोर्ट भेजते हैं कि वे किस दर पर विभिन्न परिपक्वता अवधियों के लिए बाजार के अन्य बैंकों को डॉलर देना चाहते हैं।
बीबीए इस कोटेशन के महत्त्व के आधार पर रैंकिग करता है। उसके बाद चार उच्चतम और 4 निम्नतम दरों को छोड़ दिया जाता है। मध्य की आठ दरों का औसत निकाल लिया जाता है। यही बीबीए लाइबोर होता है।
बीबीए लाइबोर कम अवधि के फंडों की कीमत का प्रतिनिधित्व करने के लिए विश्वसनीयता का सूचक है। उन मामलों में जब एक ही ऋणदाता होता था, वह कम अवधि के कोषों की उधारी के लिए अपनी खुद की सीमांत लागत का इस्तेमाल लाइबोर के रुप में करता था। सिंडिकेटेड ऋण के मामले में कुछ दिक्कतें थीं। सिंडिकेट के सभी बैंकों का समान क्रेडिट निर्धारण प्रणाली नहीं है, जिसकी वजह से व्यवहार में उनके फंडिंग की कीमत अलग अलग होती है।
वहीं दूसरी तरफ ब्याज की एक निश्चित अवधि के लिए लाइबोर सिंडिकेट के सभी बैंकों के लिए एक सूचक तय करता है, जिसका निर्धारण एजेंट बैंकों के सलाह के आधार पर की गई गणना के आधार पर किया जाता है। अगर किसी बैंक की उधारी लागत ज्यादा है तो उसकी कमाई का फैलाव या स्प्रेड कम होता है।
सिंडिकेटेड लोन के मामलों में दो बातें आम होती हैं- या तो बीबीए लाइबोर का प्रयोग किया जाता है या सामान्य तौर पर 3 या 4 रेफरेंस बैंकों के पैनल द्वारा निश्चित की गई दरों के औसत का प्रयोग होता है, जिसका प्रसारण 11 बजे किया जाता है। इन खामियों के बावजूद लाइबोर पर आधारित लोन और डेरिवेटिव की कीमतें करीब आधी सदी से बेहतर ढंग से चल रही हैं।
बहरहाल वैश्विक ऋण बाजार में संकट के बाद लाइबोर की प्रामाणिकता की जांच बढ़ रही है। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि अमेरिकी बाजार में सब प्राइम संकट का प्रभाव इस पर पड़ रहा है। इससे इंटरबैंक मार्केट का आत्मविश्वास डगमगाया है। दूसरे बैंकों को पैसा देते समय बैंक अब तरलता को बनाए रखने को प्राथमिकता दे रहे हैं, बजाय इसके कि सावधि ऋण देने को।
इसका परिणाम यह हुआ है कि क्रेडिट प्रीमियम, तीन महीने के लाइबोर का अंतर और जोखिम रहित टी-बिल रेट का विस्तार हुआ है। दिलचस्प है कि तीन महीने के लाइबोर के बीच प्रसार और ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप (ओआईएस) दरें भी तेजी से उपर बढ़ी हैं। इसके इतिहास पर नजर डालें तो यह 10 बेसिस प्वाइंट था जो हाल के दिनों में बढ़कर 80 यहां तक कि 100 बेसिस प्वाइंट तक पहुंच गया है।
इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि 16 बैंकों के पोल रेट फंडों की कीमत का सही प्रतिबिंब नहीं साबित हो रहा है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि ये बैंक जितना वास्तविक रूप से लेते हैं, उससे बहुत कम दर की रिपोर्ट करते हैं। वास्तव में लाइबोर के निर्धारण को लेकर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं, जिन मानकों का प्रयोग ब्रिटिश बैंकर्स एसोसिएशन करता है।
उम्मीद की जा रही है कि आने वाले महीनों में सलाहकार समिति लाइबोर के भविष्य के बारे में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। दिलचस्प है कि अगर ऐतिहासिक औसत से तुलना करें तो जोखिम रहित और इंटरबैंक दरों के बीच खाई बढ़ गई है। यह तब भी हो रहा है जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व, इस अंतर को पाटने के लिए बाजार में पैसा झोंक रहा है।
बढा हुआ रिस्क प्रीमियम मौद्रिक लेन-देन प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा कम की गई ब्याज दरों का लाभ फंडों की उधारी लेने वालों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच रहा है। घरेलू मौद्रिक बाजार में, एनएसई माइबोर फ्लोटिंग रेट बेंचमार्क है, जो भारत में होने वाली ज्यादातर संविदाओं में तरल ब्याज दर लेनदेन में प्रयोग किया जाता है। बीबीए लाइबोर की ही तरह यहां भी पोल रेट होता है।
कुछ बैंक इसके कृत्रिम होने का आरोप भी लगाते हैं। घरेलू बाजार में जो औसत कॉल रेट होती है उससे प्राय: भिन्न होता है, कभी कभी तो यह अंतर बहुत ज्यादा होता है। अब ज्यादातर काल मनी निकासी ने इलेक्ट्रॉनिक एनडीएस-ओएम का रूप ले लिया है। इस प्रणाली से किसी निर्धारित समयावधि के लिए निकासी की भारित औसत दरों को निश्चित करना आसान हो गया है। शायद अब माइबोर के निर्धारण में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है।