कोविड-19 ने वह कर दिया जो शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तमाम संगोष्ठिïयां नहीं कर पाई थीं। विस्तार से बता रहे हैं देवाशिष बसु
जून 2020 से शेयर बाजार तेजी के घोड़े पर सवार है। बाजार इससे पहले भी तेजी के कई दौर देख चुका है मगर पिछले 18 महीनों में बाजार में उछाल एक खास वजह से अलग किस्म की रही है। पिछले करीब तीन दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है जब भारतीय खुदरा निवेशकों का शेयर बाजार में दबदबा रहा है। यह अचरज की बात है, साथ ही इसमें एक सबक भी छुपा है। नीति निर्धारक पिछले कई दशकों से ‘पूंजी बाजार में जान फूंकने’ और ‘खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने’ की बात कहते रहे हैं। खासकर नीतिगत स्तर पर हुई चूक की वजह से बाजार में आई गिरावट के समय वे खुदरा निवेशकों को प्रोत्साहित करने पर विशेष जोर देते दिखे हैं।
1990 के मध्य में ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरा जब नीति निर्धारकों ने सम्मेलनों में और सार्वजनिक तौर पर बाजार को पटरी पर लाने और खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के द्विआयामी लक्ष्य की चर्चा नहीं की। मैंने 1995 में इस समाचार पत्र में एक स्तंभ में लिखा था कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन पद का कार्यभार संभालने के दो हफ्ते बाद डॉ. मेहता ने किस तरह बाजार से खुदरा निवेशकों के बाहर निकलने पर अफसोस जताया था। मेरे साथ एक बातचीत में उन्होंने कहा था कि जयपुर में रहने वाले उनके एक मित्र आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये 1 लाख रुपये निवेश करना चाहते थे मगर उन्हें अच्छे शेयर आवंटित नहीं किए गए। उन्होंने मर्चेंट बैंकरों से बैठक में एक बार फिर यह मुद्दा उठाया। उन दिनों नीति निर्धारक खुदरा निवेशकों की कम भागीदारी देखकर व्यथित रहते थे।
इस स्थिति की मुख्य वजह अपर्याप्त ढांचा और कमजोर नियमन था। शेयरों को डीमैट रूप में रखने की मंजूरी से पहले कागजी रूप में शेयरों का स्थानांतरण पेचीदा हुआ करता था। पूंजी निर्गमों पर नियंत्रण समाप्त होने के बाद आईपीओ से सभी निगरानी समाप्त हो गई। इससे आईपीओ बाजार तक सबकी पहुंच आसान हो गई। 1995 में कीमतों में छेड़छाड़ और एमएस शूज की विवरणिका में गलत जानकारियों के बाद आईपीओ बाजार में खूब तेजी दिखी। जनवरी 1995 में 145 शेयर निर्गम खरीदारी के लिए खुले। उसी वर्ष फरवरी में एक सप्ताह में 78 कंपनियां सूचीबद्ध हो गईं। इस तरह उस वर्ष 1,400 निर्गम आए जिनमें ज्यादातर छोटी-मोटी कंपनियों के थे। ये निर्गम निवेशकों की रकम के साथ काफूर हो गए।1998-2001 की अवधि पर विचार करें तो आप 1994-95 में आईपीओ निर्गमों में आई तेजी पर ध्यान अटक जाता है। 1998-2001 के दौरान केवल 219 कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हुई थीं। प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजारों का नियमन इस तरह ढीला था कि कोई भी गलत जानकारियां देकर और आईपीओ पूर्व बाजार में कीमतों में छेड-छाड़ कर रकम जुटा सकता था। इसकी तरफ ध्यान दिलाए जाने के बाद भी सेबी ने कदम उठाने से इनकार कर दिया।
खुदरा निवेशकों की कम भागीदारी एक निरंतर सिलसिला बन गया। बाजार में विश्वास का घोर अभाव हो गया था। बाजार में 1999 और उसके बाद 2003-07 के दौरान तेजी आई थी मगर खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढऩे का नाम नहीं ले रही थी। हाल तक आईपीओ में खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षित हिस्से को शायद ही कभी पूर्ण अभिदान मिल पाता है। इसके अलावा म्युचुअल फंड उद्योग का आकार बढऩा भी शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की कम भागीदारी की मुख्य वजह रही। पुरानी मान्यता यह रही है कि सीधे बाजार में उतरने के बजाय खुदरा निवेशकों को म्युचुअल फंड के रास्ते से निवेश करना चाहिए।
यह पुरानी मानसिकता कोविड-19 महामारी की वजह से दूर हो गई। कोविड-19 ने वह कर दिया जो खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तमाम संगोष्ठिïयां नहीं कर पाई थीं। एक झटके में इस खतरनाक वायरस ने पूरी दुनिया को हिला दिया और लोगों को घर से काम करने पर विवश कर दिया मगर नए डीमैट खातों की झड़ी जरूर लगा दी। 2019-20 तक दो दशकों में लगभग 4.08 करोड़ डीमैट खाते खुले थे। मगर 2020 के बाद महज 20 महीनों में यह आंकड़ा 21 नवंबर तक लगभग दोगुना होकर 7.4 करोड़ हो गया। ब्लादीमिर यींच लेनिन ने एक अलग संदर्भ में एक बात कही थी, ‘ऐसे कई दशक यूं ही बीत जाते हैं जब कुछ नहीं होता है मगर कभी-कभी कुछ हफ्तों में दशकों जितने काम हो जाते हैं।’
चार कारणों की वजह से बाजार में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ी है। इनमें पहला कारण है ब्रोकिंग एवं डीमैट खातों के लिए ऑनलाइन माध्यम से सहजता से आवेदन करने की सुविधा। भारत एवं दुनिया में लगातार उछल रहे शेयर बाजार दूसरी वजह है। खुदरा निवेशकों के पास अधिक उपलब्ध समय, रकम और अवसर तीसरा कारण है। शेयरों को लेकर जानकारियों का सहजता से उपलब्ध होना खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढऩे का चौथा कारण रहा है। कई दशकों में पहली बार एक निवेशक समूह के रूप में निवेशकों ने बाजार में कारोबार पर कब्जा जमा लिया। वित्त वर्ष 2021 में कुल लेनदेन में उनकी हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत रही। विदेशी संस्थागत निवेशकों और घरेलू संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी कम होकर एक अंक में रह गई है। नई सभी बातों में एक सबक छुपा है।
नीति निर्धारक अक्सर जमीनी स्तर पर हो रही गतिविधियों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। उदाहरण के लिए ऑनलाइन माध्यम से खाता खोलने की प्रक्रिया सरल कर कोविड महामारी से पहले भी खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाई जा सकती थी। निवेशकों के विषयों पर केंद्रित रहने की यह रणनीति किसी भी नीति तय करने में भी अहम साबित होगी। नागरिकों, निवेशकों और उपभोक्ताओं के समक्ष आई चुनौतियों पर नजर रखें और निरंतर प्रतिक्रिया लेकर उनके डरों को दूर करने की कोशिश करें। इससे संगोष्ठिïयां, कागजी प्रक्रिया, बैठक, भाषण आदि पर समय एवं धन बचा सकते हैं। मैं यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि नीति निर्धारक इस पहलू पर विचार कर रहे हैंं या नहीं। रिटेल अल्गो की बढ़ती लोकप्रियता का आभास नीति निर्धारकों को इसलिए नहीं हो पाया कि क्योंकि वे बाजार में शिरकत करने वाले लोगों एवं निवेशकों के साथ संवादों का आदान-प्रदान नहीं करते थे।
(लेखक डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं।)
