भारत की प्रमुख दवा कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेटरीज को अमेरिकी फेडरल जांचकर्ताओं के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा।
दरअसल, जांचकर्ताओं का यह आरोप था कि कंपनी हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब इकाई में जो उत्पादन कर रही है, उसमें कुछ गड़बड़ियां हैं। हालांकि यह अलग बात है कि अमेरिकी जांचकर्ताओं को कंपनी की गतिविधियों पर तब भी ऐतराज हो रहा है जबकि इस इकाई में उत्पादन के लिए खुद अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन की ओर से मंजूरी दी जा चुकी है।
अब इसी एफडीए को लगता है कि रैनबैक्सी की इस इकाई में उत्पादन के उचित पैमानों को पूरा नहीं किया जा रहा है। इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी अदालत में दायर एक याचिका पर अदालत ने कंपनी से कहा कि वह प्रबंधन कंसल्टेंट पैरेक्सल की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट को अदालत में पेश करे। जब 2006 में एफडीए ने रैनबैक्सी से इस इकाई में हो रहे उत्पादन को नियंत्रण में रखने को कहा था तो कंपनी ने एक कंसल्टेंसी इकाई को नियुक्त कर लिया था। अब रैनबैक्सी ने कहा है कि वह सारी रिपोर्ट और जानकारियां उपलब्ध करा देगी।
इस हफ्ते की शुरुआत में रैनबैक्सी के शेयरों में जो गिरावट आई थी वह कुछ हद तक थम गई है और कंपनी ने जितना खोया था, लगभग उतनी वापसी भी कर ली है। यहां यह भी गौर करने लायक है कि कंपनी के शेयरों को बहुत जल्द ओपन ऑफर के तहत बाजार में पेश किया जाएगा। पिछले महीने जापानी दवा कंपनी दाइची सांक्यो ने रैनबैक्सी का अधिग्रहण कर लिया था और तब से रैनबैक्सी के शेयरों को ओपन ऑफर के जरिए बाजार में उतारने की योजना है।
ओपन ऑफर प्राइस 737 रुपये तय की गई है जो काफी आकर्षक है, खासतौर पर तब जबकि कंपनी के शेयर एक समय गिरकर 400 रुपये तक पहुंच गए थे। जो लोग इस कीमत के आसपास की कीमत पर कंपनी के शेयर खरीदने में कामयाब हो पाएंगे, उनके लिए यह सौदा फायदे का होगा। यही वजह है कि कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी ने सवाल खड़ा किया है कि क्या हाल की उठापटक में बाजार का हाथ है। वहीं यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि क्या रैनबैक्सी ने सही समय पर सभी जानकारियां उपलब्ध कराई थीं जो उसे करानी चाहिए थी।
याद रहे कि अमेरिकी विभाग कंपनी के खिलाफ कोई नई जांच नहीं कर रहा है और उसने अब तक कंपनी पर कोई आरोप दाखिल भी नहीं किया है। कंपनी से केवल दस्तावेजों की मांग ही की गई है। इस मामले में नतीजा क्या निकल कर आएगा कोई कह नहीं सकता। महत्त्वपूर्ण यह है कि कंपनियों को कभी जांचकर्ताओं से कुछ छुपाना नहीं चाहिए। एफडीए आपत्ति का पत्र 3 जुलाई को ही जमा करा चुका था और इस मसले को हवा तब ही मिली जब भारतीय मीडिया ने 12 जुलाई को इस खबर को उठाया।
तब तक रैनबैक्सी ने शेयर बाजारों को एफडीए की आपत्ति के विषय में कुछ नहीं बताया था। कंपनी ने भी तभी सफाई दी जब भारतीय मीडिया में इस बारे में जोर शोर से चर्चा शुरू हो गई। कंपनी के लिए इस मुश्किल की घड़ी में बाहर निकलने का एक ही मौका है, अगर वह गलती पाए जाने पर उसे स्वीकार कर लेती है और शेयरधारकों को पूरे घटनाक्रम से अवगत कराती रहती है।