हमारे मुल्क में सरकारी कामों में लेट-लतीफी कोई नई बात नहीं रह गई है। इसके बावजूद भी वायुसेना और नौसेना पर जारी नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को चौंकाने वाला ही माना जाना चाहिए।
दरअसल, हथियारों और रक्षा उपकरणों की खरीद में होने वाली देरी, मुल्क की सुरक्षा के साथ खेलने के बराबर है। आज से पहले कई मंत्री, अपने मंत्रालयों के बारे में जारी कैग की रिपोर्ट को आधी-अधूरी बातों पर आधारित और बकवास बताते आए हैं। लेकिन इस मामले में रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी की ईमानदारी की तारीफ करनी चाहिए।
उन्होंने साफ माना कि कैग की रिपोर्ट में ज्यादातर बातें सच्चाई पर आधारित हैं। तो अब इसे बारे में क्या किया जा रहा है? कैग ने जो सवाल उठाए हैं, उनमें से कई लोगों को भौंचक्का कर देने वाले हैं। मुल्क में मीडियम पॉवर रडारों की तादाद में 10-20 नहीं, बल्कि पूरे 53 फीसदी की कमी है।
ये रडार जमीन से आकाश में नजर रखने में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। इससे भी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात यह है कि आम हवाई जहाजों पर नजर रखने वाले लो-लेवल ट्रांसपोर्टेबल रडार के मामले में तो कमी इससे भी चार कदम आगे जाकर 76 फीसदी की है। इस जबरदस्त कमी की असल वजह है, नए रडारों की लंबे वक्त से रुकी हुई खरीद।
यह जान कर आप हैरान हो जाएंगे कि 1971 के बाद से (करीब 40 सालों से) नए रडार खरीदने को लेकर बनाई गई वायुसेना की किसी भी योजना पर सरकार की मुहर लगी ही नहीं है। इसीलिए सेना को एक-दो की तादाद में रडारों को खरीदना पड़ रहा है। इन रडारों को इसी तरह से कहीं-कहीं स्थापित कर दिया जाता है।
हकीकत तो यही है कि इन रडारों में से भी ज्यादातर की उम्र आज की तारीख में पूरी हो चुकी है। इस हालत में अब वायुसेना के पास एक ही तरीका बचा है और वह उसी का सहारा ले रही है। उसने अलग-अलग इलाकों के सर्वेक्षण के तय घंटों में कटौती कर दी है।
इस बीच, स्टैंड अलोन रडारों को भी जोड़कर उन्हें एक कंट्रोल एंड रिपोर्टिंग सेंटर के अंदर लाने की 20 साल पुरानी योजना का आज कोई अता-पता नहीं है। इससे कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हवाई जहाजों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। कुछ ऐसी ही हालत इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की है, जिसके बारे में योजना तो 1999 में ही बन गई थी।
साथ ही, वायुसेना को पायलटों की भी 15 से 31 फीसदी की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। जहां तक नौसेना की बात है, तो इस मामले में भी रिपोर्ट ने भारी कमियों की तरफ इशारा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक आज भारतीय नौसेना की आधी से ज्यादा पनडुब्बियां अपनी 75 फीसदी जिंदगी जी चुकी हैं।
2012 में जब नौसेना को अपनी पहली नई पनडुब्बी मिलेगी, तब उसके बेड़े की 63 फीसदी पनडुब्बियों की तय जिंदगी पूरी हो चुकी होगी। ज्यादा उम्र और बार-बार मरम्मत की जरूरत की वजह से अब केवल 48 फीसदी पनडुब्बियां ही एक वक्त पर मौजूद रहती हैं। इस हिसाब से देखें तो मुल्क की सुरक्षा के साथ ऐसे खेलना, तो एक तरह का घोटाला ही है।