लंबे वक्त से कृषि वैज्ञानिकों के बीच राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान व्यवस्था में भर्ती और अपनी प्रोन्नति को लेकर काफी गुस्सा था।
इस वजह से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के इस संस्थान को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन अब ये दिक्कतें खत्म होती नजर आ रही हैं।
उम्मीद की इस किरण की वजह है, पिछले कुछ सालों में हुआ कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (एएसआरबी) का पुनर्गठन। इस बात का पक्का सबूत है भर्ती या प्रोन्नति के खिलाफ दायर हुई शिकायतों की तादाद में आई भारी कमी। पहले के मुकाबले अब इनकी तादाद सिर्फ आधे से एक फीसदी रह गई है। पहले तो हर साल इस मामले में संस्थान को सैकड़ों मुकदमों का सामना करना पड़ता था।
हालांकि, अब भी बेहतर कृषि वैज्ञानिकों को चुनने के लिए जिम्मेदार आईसीएआर और एएसआरबी को अच्छे लोगों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस वजह से शोध और अनुसंधान से जुड़े सभी पदों पर अच्छे लोगों से नहीं भरा जा रहा है। इस समस्या की दो बड़ी वजहों को जानने के लिए आपको किसी शोध की जरूरत नहीं होगी।
पहली बात तो यह है कि ज्यादातर अच्छे छात्र शोध की तरफ जाते ही नहीं हैं। साथ ही, राज्यों में मौजूद कृषि विश्वविद्यालय भी अच्छे छात्रों को मुहैया करवाने में नाकामयाब साबित हुई हैं। किस्मत से जाने-माने कृषि वैज्ञानिक और एएसआरबी के अध्यक्ष सी.डी. मेई इस दिक्कत से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इससे दो-दो हाथ करने के वास्ते वह आज-कल अनोखे विचारों को अपना रहे हैं।
इस वक्त कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) में अच्छे लोगों का चयन करने के वास्ते एएसआरबी, पूरे मुल्क में परीक्षाएं आयोजित करवाता है। ये परीक्षाएं भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए आयोजित होने वाली परीक्षाओं के तर्ज पर ही होती हैं। एआरएस के तहत चुने गए उम्मीदवार आईसीएआर के संस्थानों की जरूरतों को पूरा करते हैं।
साथ ही, एएसआरबी मुल्क में राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (एनईटी या नेट) भी आयोजित करता है, जिसे पास करना कृषि विश्वविद्यालयों में अस्सिटेंट प्रोफेसर बनने के लिए जरूर है। मेई का कहना है कि, ‘इन परीक्षाओं में हर साल 12-13 हजार उम्मीदवार बैठते हैं, जिसमें से सिर्फ एक-डेढ़ हजार लोग ही लिखित परीक्षा को पास कर पाते हैं। यह वाकई काफी चिंताजनक बात है।
दरअसल, उनमें से भी गिनेचुने ही इंटरव्यू में भी पास होकर नौकरी के लिए चुने जाते हैं।’ इसलिए इसमें परीक्षा में बैठे लोगों और चुने गए उम्मीदवारों के बीच का अनुपात काफी खराब है। पिछले साल नेट में हर 17 लोगों में से सिर्फ एक ही चुन पाया था। उससे भी बुरा हाल तो एआरएस के साथ हुआ था, जहां परीक्षा देने वाले 31 लोगों में से सिर्फ एक को ही नौकरी मिल पाई थी।
कम से कम 20 क्षेत्रों में तो एक को भी नौकरी नहीं मिली थी। इनमें से फूड साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, डेयरी इंजीनियरिंग, वेटनरी मेडिसन, माइक्रोबॉयोलॉजी और वॉटर मैनेजमेंट जैसे कुछ क्षेत्र तो मौजूदा वक्त में मुल्क में खेतीबाड़ी की तरक्की के लिए काफी अहमियत रखते हैं।
दूसरी तरफ, यहां कई ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो लोग तो हैं लेकिन उनकी तादाद काफी कम है। यही वजह है कि पिछले साल एआरएस के तहत जितने पदों के लिए लोगों से आवेदन मंगवाए गए थे, उसमें से सिर्फ 70 फीसदी जगहों को ही भरा जा सका।
मुल्क में इस वक्त 50 कृषि विश्वविद्यालय हैं। इनमें राज्य और केंद्र सरकारों के कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मानद विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। लेकिन दिक्कत की बात यह है कि इनमें से बस 10 यूनिवर्सिटी ऐसी ही हैं, जिनके छात्रों के पास एएसआरबी की परीक्षाओं को पास करने लायक योग्यता है।
इनमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड (पंतनगर), हरियाणा के साथ-साथ कुछ हद तक केरल और पंजाब के कृषि विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। असल में, इस मामले में तो आईसीएआर के संस्थानों का रिकॉर्ड वाकई काफी अच्छा है। भले ही, उन्हें डीम्ड यूनिवर्सिटी का ही रुतबा मिला हो।
इस फील्ड से संबंधित सभी नौकरियों में से 48 पर तो पूसा इंस्टीटयूट (दिल्ली), वेटनरी इंस्टीटयूट (बरेली), डेयरी रिसर्च इंस्टीटयूट (करनाल) और फिशिरीज एजुकेशन इंस्टीटयूट (मुंबई) से पढ़े छात्रों का ही कब्जा हो जाता है। इसलिए अब एएसआरबी ने लोगों तक पहुंचकर मौजूदा टैलेंट को पूरी तरह से परखने का फैसला किया है।
मेई के प्रस्तावों के मुताबिक अब भारत सरकार को विदेशी कृषि संस्थानों में काम करने वाले भारतीय मूल के कृषि वैज्ञानिकों को लुभाने में अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए। साथ ही, कृषि संस्थानों को अलग-अलग यूनिवर्सिटी के कैंपसों में जाकर अच्छे छात्रों को चुनने की भी सलाह दी है, ताकि उन्हें शुरू से ही कृषि शोध के लिए तैयार किया जा सके।
एएसआरबी ने तो अब प्रवासी भारतीयों को कृषि वैज्ञानिकों के पद के वास्ते लुभाने के लिए भारतीय दूतावासों के जरिये विज्ञापन देना भी शुरू कर दिया है। मेई का कहना है कि, ‘कोरिया, जापान, अमेरिका और यूरोप जैसी जगहों में उस विज्ञापन को अच्छा रिपॉन्स मिला है।’
साथ ही, उन्होंने स्थानीय स्तर पर अच्छे कृषि वैज्ञानिकों को चुनने के वास्ते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों में भी अपनी रुचि दिखलाई है। इस वास्ते दिल्ली में इस हफ्ते एक सेमिनार का आयोजन किया है।
कृषि शोध में मानव संसाधन विकास पर आयोजित होने वाले इस सेमिनार में देसी और विदेशी, कई जानकार शिरकत करने वाले हैं। इस सेमिनार में वे इस बात पर चर्चा करेंगे कि कैसे कृषि अनुसंधान की तरफ लोगों को आकर्षित करेगा।
इस सेमिनार में अमेरिका, जर्मनी, जापान और दूसरे मुल्कों के कई सारे वैज्ञानिक हिस्सा लेंगे। इस सेमिनार से उन नए उपायों को ढूंढने में मदद मिलेगी, जिनसे नए और अच्छे लोग इस क्षेत्र की तरफ आ सकते हैं।