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बिज़नेस स्टैंडर्ड
  लेख  नए खून पर भारी पड़ रही है तजुर्बे की कमी
लेख

नए खून पर भारी पड़ रही है तजुर्बे की कमी

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —October 22, 2008 10:17 PM IST
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रवि बालचंदर (असली नाम नहीं) ने एक अग्रणी एफएमसीजी कंपनियों में से एक में प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में नौकरी की शुरुआत की, जब वह 25 साल के थे।


भारतीय प्रबंधन संस्थान से पढ़ाई तथा अन्य शैक्षणिक उपलब्धियों और प्रतिभा को देखते हुए कंपनी ने उन्हें पदोन्नति के लिए उचित पाया और एक साल में ही बड़े पद पर नियुक्त करते हुए सीनियर वाइस प्रेसीडेंट बना दिया।

उन्हें मुनाफे में चल रहे एक सेंटर का प्रभारी बनाया गया। दरअसल  बालचंदर को अनेक कंपनियों से ढेरों ऑफर मिल रहे थे और कंपनी उन्हें रोकने के लिए हर कीमत देने को तैयार थी। इनमें से तेजी से पदोन्नति देना सबसे बेहतरीन तरीका था। लेकिन एक साल से कम ही समय में ही जब बालचंदर ने इस्तीफा दे दिया तो  कंपनी के एमडी ने राहत की सांस ली।

इस युवक के तानाशाही रवैये और खराब तौर तरीकों के चलते बहुत से लोग अलग थलग पड़ गए थे और उसके अधीन प्रोफिट सेंटर की स्थिति खराब हो रही थी। एमडी का कहना है, ‘यह बड़ी हैरानी की बात है कि जो आदमी इतना प्रतिभाशाली है, प्रॉफिट सेंटर हेड के प्रमुख के रूप में आपदा बन गया, जहां उसके अधीन 500 कर्मचारी काम कर रहे थे।’ 

बालचंदर की पदोन्नति के फैसले के बाद आए खराब परिणाम से कंपनी के एमडी को निश्चित रूप से यह कहने पर मजबूर होना पड़ा है कि हो सकता है कि उन्होंने युवक को बहुत जल्दी पदोन्नति दे दी। बालचंदर की प्रतिभा और तीक्ष्ण बुध्दि की उसके सहयोगी भी प्रशंसा करते हैं, लेकिन साथ में यह भी कहते हैं कि वह हर चीज यांत्रिक तरीके, तानाशाही ढंग से करता है, उसके अंदर एक अत्याचारी निरंकुश शासक के सभी गुण मौजूद हैं।

कुछ सहकर्मियों ने तो यह भी कहा कि उसके अंदर दोमुहापन भी था, कुछ ऐसा कि वह कभी भी आपके लिए खड़ा नहीं हो सकता था। बालचंदर की तरह के मामले अब दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इस तरह के असंख्य उदाहरण है कि किस तरह से कंपनियां अपने एग्जिक्यूटिव की पदोन्नति में दोषपूर्ण नीतियां अपनाती हैं।

इस तरह वे बेहतर प्रदर्शन करने वाले मैनेजरों को दोयम दर्जे  या कम स्तर के मैनेजरों की श्रेणी में तब्दील कर देती हैं। ज्यादातर कंपनियां स्मार्ट और आक्रामक लोगों को लेना चाहती हैं जो अपना दबदबा कायम रखने पर ज्यादा जोर देते हैं, न कि एक भावनात्मक और परिपक्व मुखिया के रूप में काम करते हैं। हालांकि कुछ प्रमुख कंपनियों ने अलग तरीका अपनाया है।

माइक्रोसाफ्ट का ही उदाहरण लें। उसने कंपनी के साफ्टवेयर इंजिनियरों के लिए अलग स्टेटस स्केल बनाया है, जो अपने प्रबंधकों की तुलना में ज्यादा वेतन पा सकते हैं। इसके पीछे सिध्दांत यह है कि प्रबंधकों को और अधिक जिम्मेदारी मिलने पर पदोन्नति मिले, और सॉफ्टवेयर इंजिनियरों को बौध्दिक कुशलता के प्रदर्शन करने पर उनकी हैसियत और वेतन में बढोतरी हो।

माइक्रोसॉफ्ट और जीई जैसी कंपनियां अपने एकाउंटेंट्स को मैनेजर के रूप में पदोन्नति देती हैं, क्योंकि वे प्रबंधकीय पद पर पहुंचकर बेहतर ढंग से लेखा-जोखा कर सकते हैं। कुल मिलाकर एक प्रबंधक के लिए लक्ष्य यह होता है कि वह अपने स्टाफ से बेहतर परिणाम ले सके, न कि केवल उसका खुद का ही प्रदर्शन बढ़िया हो।

सलाहकारों का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि असाधारण एकाउंटेंट के कैरियर को उपेक्षित किया जाना चाहिए। हो सकता है कि उसके कैरियर की सीढ़ी में उसका स्थान शीर्ष के बजाय साइड में हो। एग्जीक्यूटिव स्वीट की ओर जाने वाली पुरानी कार्पोरेट सीढ़ी हरेक के लिए उपलब्ध नहीं हो सकती।

इन कंपनियों का यह भी मानना है कि असाधारण प्रदर्शन करने वालों को केवल पदोन्नति ही नहीं दी जानी चाहिए। इससे होता क्या है कि वे जो काम बेहतर ढंग से कर रहे हैं, वह नहीं कर पाते हैं। एक और सलाहकार का कहना है कि पीटर सिध्दांत अभी भी प्रासंगिक है। कुछ युवा नेता, जो बड़ी कुर्सियां लेना चाहते हैं वे हो सकता है कि अतिरिक्त जिम्मेदारियां न लेना चाहें।  

एक व्यक्ति जिसे पदोन्नति दी जाती है, उसे सामान्यतया उसके कार्यक्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए मिलती है। हो सकता है कि पदोन्नति के बाद वह जिस पद पर पहुंचे उस पर उसे काम करने में कठिनाई का सामना करना पड़े।

एक और समस्या यह है कि तेजी से प्रमोशन पाने वाले उन युवकों में हो सकता है कि बेहतरीन प्रदर्शन करने की क्षमता हो, प्रतिस्पर्धी हों और वे अपने साथ काम करने वालों की तुलना में ज्यादा सक्षम हों, लेकिन परिपक्वता की कमी और भावनात्मक जुड़ाव के अभाव में वे नेता के रूप में असफल साबित हों।

सेंटर फार क्रियेटिव लीडरशिप (सीसीएल) के केरी बंकर ने तीक्ष्ण बुध्दि के युवा मैनेजरों को उच्च स्तर की प्रतिभा वाले, कुशाग्र और महत्वाकांक्षी के रूप में परिभाषित किया है। उन्हें लगातार इस बात के लिए अवसर दिया जाता है कि वे आगे बढ़ें और अपने बढ़ते कैरियर में बहुत उच्च स्तर की जिम्मेदारियां निभा सकें।

सीसीएल के अध्ययनों में पाया गया है कि तनाव के समय में एक तिहाई वरिष्ठ अधिकारी कुछ मसलों पर अपनी भावनाओं के अभाव की वजह से कठिन फैसले नहीं ले पाते हैं, जिससे टीम बनाने और उसे नियमित करने में मदद मिल सके।

बकनर स्पष्ट करते हैं, ‘दुर्भाग्य की बात यह है कि सही, परिपक्व और भावनात्मक रूप से सक्षम नेता में तब्दील होने के लिए जिस अनुभव की जरूरत होती है उसे पूरा करने में ये युवक अक्सर नाकाम होते हैं। इसकी जरूरत एक अधिकार वाले, परिपक्व और सक्षम नेताओं को होती है।’

बकनर ने ‘कैच ए राइजिंग स्टार: रेस्क्यूइंग द यंग ऐंड क्लूलेस’ में नेतृत्व के बारे में विस्तार से बताया है। बकनर का कहना है कि ये नेता जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभवों से गुजरते हैं, लेकिन वे उस समय कमजोर हो जाते हैं जब वे उच्च पदों पर पहुंचते हैं तो असफल साबित होते हैं, क्योंकि उस समय व्यक्तिगत कार्यों का महत्त्व कम हो जाता है और उन्हें टीम गठित करनी पड़ती है और उसके साथ काम करना होता है।

कार्यनीति और मुनाफे की दृष्टि से तो उनका काम अच्छा रहता है लेकिन उन लोगों के साथ काम करने में उन्हें बहुत दिक्कत आती है जो पुराने होते है, अपने सहकर्मियों से ज्यादा घुले मिले होते हैं, संवेदनशील और जमीन से जुड़े हुए, सचेत और भावनात्मक रूप से परिपक्व होते हैं।

lack of experience is booming on new blood
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