संचार मंत्री ए राजा यह तर्क देते हैं कि पिछले एक साल में उन्होंने जो फैसले किए, वे सभी 28 अगस्त, 2007 को दूरसंचार नियामक ट्राई द्वारा दिए गए सुझावों और नये स्पेक्ट्रम व नये लाइसेंस जारी करने के लिए अपनाई गई सरकारी नीतियों पर आधारित रहे हैं।
पर जैसा कि ट्राई के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र भी कई मौकों पर संकेत दे चुके हैं, संचार मंत्री का यह तर्क सही नहीं है। उन्होंने अपने फैसलों में कभी कभार ही ट्राई के सुझावों पर अमल किया है। राजा ने नई कंपनियों को स्पेक्ट्रम का आंवटन करने के लिए पहले आओ पहले पाओ नीति अपनाई, जबकि मिश्र ने अपने सुझावों में ऐसा नहीं कहा था।
राजा ने पहले स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए आवेदन जमा करने की आखिरी तारीख घोषित कर दी थी। पर बाद में इस अवधि को अचानक से घटा दिया और फिर बहुत छोटे नोटिस पर कुछ घंटों के लिए भुगतान का समय तय किया गया।
अब जिन्हें इन घटनाओं के बारे में पता चल पाया वे तो खुद को भाग्यशाली मान सकते हैं। पर जो इन घटनाओं से अनभिज्ञ रहे वे मौके का फायदा नहीं उठा पाए। कुछ इसी तरह मंत्रालय ने ट्राई के सुझावों को दरकिनार करते हुए दोहरी तकनीक का इस्तेमाल करने वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस से यह कहते हुए ऊंची फीस वसूली कि उन्हें अधिक स्पेक्ट्रम मिला है।
कई महत्वपूर्ण मसलों पर मिश्र के सुझाव बड़े अटपटे रहे हैं। रिलायंस जैसी सीडीएमए मोबाइल कंपनियों को जीएसएम स्पेक्ट्रम आवंटित करने के मसले पर मिश्र ने कहा था कि जब तक कंपनियां जीएसएम कंपनियों की तरह ही लाइसेंस फीस का भुगतान कर रही हैं तो उन्हें स्पेक्ट्रम के आवंटन में कोई परेशानी नहीं है।
मोबाइल कंपनियां 8009001,800 बैंड में स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रही थीं और मिश्रा ने इसी बैंड को छोड़कर बाकी सभी बैंडों में नीलामी का सुझाव दिया। अपनी एक पिछली रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि स्पेक्ट्रम का बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए नीलामी एक कारगर तरीका हो सकता है फिर उन्होंने ही कहा कि स्पेक्ट्रम का इकोनोमिक मूल्य पता करने के लिए सालाना स्पेक्ट्रम शुल्क वसूलना भी एक तरीका हो सकता है।
खुद मिश्र इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं थे कि स्पेक्ट्रम के लिए शुल्क कैसे वसूला जाए। ट्राई अध्यक्ष को जब यह एहसास हुआ कि उनके सुझाव बहुत सटीक और उपयुक्त नहीं हैं तो उन्होंने परिस्थितियों को पलटने की कोशिश की।
चार दिनों बाद 10 जनवरी, 2008 को जब मंत्रालय ने ट्राई के सुझावों पर अमल करते हुए 120 सर्किल के लिए आशय पत्र जारी किए तो ट्राई के अध्यक्ष ने दूरसंचार सचिव को चिट्ठी लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट की।
उन्होंने कहा कि नये खिलाड़ियों पर सरकार की जो मौजूदा नीतियां हैं उन्हें 2003 में ही सुलझा लिया गया था और इस तरह नीति काफी स्पष्ट है कि नये खिलाड़ी नीलामी में हिस्सा लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं (मिश्र ने इसे अपने सुझावों में जगह क्यों नहीं दी यह समझ से परे है जबकि उन्होंने कीमत तय करने के विभिन्न विकल्पों के महत्व पर चर्चा की थी)।
पर चूंकि उस समय तक केवल आशय पत्र ही जारी किए गए थे न कि लाइसेंस तो मंत्रालय आसानी से इन्हें रद्द कर सकता था। तो अगर राजा पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी सुविधा के हिसाब से सुझावों पर अमल किया है तो मिश्र पर भी यह आरोप लगाया जा सकता है कि उन्होंने सुझावों में स्पष्टता नहीं बरती है।