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  लेख  खादिम हुसैन रिजवी: ‘पवित्र योद्धा’ का अंत
लेख

खादिम हुसैन रिजवी: ‘पवित्र योद्धा’ का अंत

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 22, 2020 11:09 PM IST
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पाकिस्तान के मौलाना खादिम हुसैन रिजवी का गुरुवार को लाहौर में अचानक इंतकाल हो गया। भारतीय मीडिया में इस खबर को चलताऊ ढंग से निपटा दिया गया। वह महज 54 वर्ष के थे और पूरी तरह स्वस्थ थे। यह बात उनके दाढ़ी वाले दमकते चेहरे से साफ झलकती थी।चंद रोज पहले ही उन्होंने इस्लामाबाद में धरने और प्रदर्शन के दौरान जो जोरदार तकरीर की थी, उसके वीडियो देखने पर यकीन नहीं होता कि वह कुछ दिन में गुजर जाएंगे।
उनकी मौत के लिए कोविड को जवाबदेह ठहराया गया, लेकिन अस्पताल से मिले प्रमाणपत्र में लिखा है कि उन्हें वहां मृत अवस्था में लाया गया। जहां तक बात शव परीक्षण और विसरा जांच की है तो आप जानते ही हैं कि पवित्र योद्धाओं के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता, खासकर जब उन्हें सत्ता प्रतिष्ठान का करीबी भी माना जाता हो। रिजवी ऐसे ही व्यक्ति थे।
इसमें दो राय नहीं कि उनकी अचानक मौत ने सोशल मीडिया पर षड्यंत्र का सिद्धांत पेश करने वालों को सक्रिय कर दिया। वह किसी बीमारी का उपचार नहीं करा रहे थे, हालांकि अब ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि उन्हें बुखार था और कुछ दिन से सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। परंतु उनके आखिरी भाषण को ध्यान से देखिए जिसमें वह सरकार पर तंज कसते हुए कहते हैं, ‘तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं धरना देने के लिए तुम्हारी इजाजत लूंगा। पाकिस्तान तुम्हारे बाप का है?’
माफ कीजिए मैं पंजाबी में दिए उनके भाषण को उसी लहजे में पेश नहीं कर पा रहा हूं।  खासकर पाकिस्तानी पंजाब के पोटोहर क्षेत्र के लहजे में, जहां से वे थे। झेलम और सिंध के बीच के इस पठार से पाकिस्तानी सेना को बड़ी तादाद में जवान मिलते हैं। यह भी एक वजह है कि बड़ी तादाद में जवान उनके प्रभाव में थे। बदले में वह भी सैन्य अधिकारियों और सैन्य प्रतिष्ठान के असर में थे। परंतु जैसा ओसामा बिन लादेन समेत ऐसे तमाम लोगों के साथ होता है, वह अपनी औकात से बाहर जाने लगे थे। इस्लामाबाद में उनके हालिया धरने ने इमरान खान सरकार को गहरी मुश्किल में डाल दिया। वह चाहते थे कि फ्रांसीसी दूतावास बंद किया जाए और उसके साथ राजनयिक रिश्ते समाप्त करने का प्रस्ताव संसद में पारित हो। उन्होंने अपने अनुयायियों और दुनिया भर के मुसलमानों से बार-बार फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का सिर कलम करने को कहा।
उनका लहजा इतना बेबाक था कि जब वह सैम्यूल पैटी का सर कलम करने वाले चेचेन किशोर को गाजी कहते और बदला लेने के लिए हमले करने वाले दुनिया भर के मुसलमानों की तारीफ करते तो उसे समझने के लिए ज्यादा पंजाबी जानने की जरूरत नहीं पड़ती। एक भाषण में तो उन्होंने पाकिस्तान के सारे परमाणु बम फ्रांस पर गिराने की बात तक कह दी ताकि वह नापाक मुल्क खत्म हो जाए। यह पहला मौका नहीं था जब उन्होंने किसी यूरोपीय देश को ऐसी धमकी दी थी। सन 2018 में जब डच राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स ने कहा था कि वह पैगंबर के कार्टून बनवाने की प्रतियोगिता करेंगे तब रिजवी ने नीदरलैंड पर परमाणु बम गिराने की बात कही थी।
हमेशा की तरह उन्होंने अपनी शर्तों पर धरना खत्म किया और प्रेस विज्ञप्ति लहराते हुए दावा किया कि सरकार ने उनकी सारी मांगें मान ली हैं और नैशनल असेंबली एक प्रस्ताव पारित कर फ्रांस के साथ राजनयिक संबंध समाप्त कर लेगी। अब वह सत्ता के बरदाश्त से बाहर चले गए थे। लगता है कि कोरोनावायरस को भी उनकी यह बात रास नहीं आई! रिजवी 22 जून, 1966 को ऐटक के निकट पिंडी घेब गांव में पैदा हुए थे मगर उनका राजनीतिक-आध्यात्मिक उदय चार जनवरी 2011 को हुआ था। उसी दिन पाकिस्तानी राजनेता सलमान तासीर (लेखक आतिश के पिता) की उनके सुरक्षाकर्मी मुमताज कादरी ने हत्या कर दी थी। तासीर की मौत उसी दिन तय हो गई थी, जिस दिन उन्होंने ईशनिंदा के लिए सजा-ए-मौत पाने वाली ईसाई आसिया बीबी से मुलाकात की और ईशनिंदा कानून खत्म करने की मांग की। कादरी इस्लाम की सूफी बरेलवी धारा का मुरीद था और रिजवी इस धारा के प्रमुख मौलाना। वह लाहौर के मशहूर दाता दरबार में भाषण दे रहे थे।
उन्होंने पहला जिक्र कादरी का किया और उसे गाजी करार दिया। वह चाहते थे कि उसे माफी दी जाए। लेकिन सरकार भी अड़ी रही। कादरी को 29 फरवरी, 2016 को रावलपिंडी की अदियाला जेल में फांसी दे दी गई। रिजवी ने भारी विरोध प्रदर्शन किया। उनके संगठन तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह (टीएलवाईआरए) के सह-संस्थापक ओर उनके साथी अफजल कादरी ने सजा बरकरार रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों को जान से मारने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि उनके सुरक्षा कर्मी, वाहन चालक या रसोइये भी उन्हें मार सकते हैं। बहरहाल किसी ने उनकी सलाह नहीं मानी।
रिजवी के सितारे चमक रहे थे। पाकिस्तान के नाराज, युवा, अशिक्षित और बेरोजगार नौजवानों, खासकर पंजाब और सिंध के कुछ हिस्सों के नौजवानों में उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने उन्हें अल्लामा के खिताब से नवाज दिया। अगले साल उनकी ताकत चरम पर पहुंच गई।
नवाज शरीफ सत्ता में थे। सेना रिजवी को इमरान खान की तरह ही अपना मानती थी और इस्लामाबाद पर उनके पहले धरने से उसे काफी खुशी हुई होगी। इसकी वजह बना पाकिस्तान में चुनाव लडऩे वाले मुस्लिम प्रत्याशियों के नामाकंन फॉर्म में संशोधन। फॉर्म में एक प्रावधान था जिसके तहत प्रत्याशी को स्वीकार करना होता था कि वह मुहम्मद को आखिरी पैगंबर मानता है और उसका किसी और की शिक्षा में यकीन नहीं। ऐसा अहमदिया संप्रदाय को चुनाव से बाहर रखने के लिए किया गया। नए फॉर्म में इसे शपथ के बजाय घोषणापत्र का नाम दे दिया गया। रिजवी ने कहा कि यह इस्लाम और पैगंबर के खिलाफ षडयंत्र है। सरकार ने इसे लिपिकीय त्रुटि बताया। रिजवी चाहते थे कि यह गलती सुधारी जाए और कानून मंत्री सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जाहिद हामिद को पद से हटाया जाए। उनकी बात मान ली गई। इस तरह अल्लामा खादिम रिजवी का उदय हुआ।
सन 2018 में वह फिर चर्चा में आए जब सर्वोच्च न्यायालय ने आसिया बीबी को बरी कर दिया। रिजवी ने इसे धर्म की अवमानना करार देते हुए फिर धरना दिया। सरकार फंस चुकी थी। एक गरीब ईसाई महिला को बरी होने के बाद बंदी बनाकर नहीं रखा जा सकता था, खासकर जब मामला पश्चिमी देशों में भी उछल चुका था। उसे चुपके से रावलपिंडी स्थित पाकिस्तानी वायु सेना के ठिकाने ले जाया गया और चार्टर्ड विमान से नीदरलैंड ले जाया गया जहां उसे शरण मिली।
रिजवी ने और सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने जिंदगी तमाशा नामक फिल्म को ईश निंदा के नाम पर प्रतिबंधित करा दिया। फिल्म में उलेमा की आलोचना करते हुए कहा गया था कि उनके बीच बाल यौन शोषण होता है। रिजवी के संगठन के नाम पर युवा छात्रों ने ईशनिंदा के बहाने कॉलेज और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को भी जान से मारा और घायल कर दिया।
रिजवी ने अपने संगठन को तहरीके-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) नामक राजनीतिक दल में बदल दिया। उन्हें जीत नहीं मिली लेकिन उनके वोट लगातार बढ़ रहे थे। पाकिस्तान में दिलचस्प है कि धार्मिक दल सड़कों पर ताकत तो दिखा देते हैं मगर मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाते।
हालांकि उनके मामले में चुनौती जटिल थी। क्योंकि इमरान खान की राजनीति भी रूढि़वादी इस्लाम पर आधारित थी। सन 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका भाषण सुनिए। वह पश्चिमी देशों को पूरी शिद्दत से याद दिलाते हैं कि पश्चिमी देश ऐसा कुछ नहीं करें, जिसे मुसलमान पैगंबर की तौहीन मानते हैं। उन्होंने अंग्रेजी में ईश निंदा कानून पढ़कर दुनिया को सुनाया। रिजवी वही बात पंजाबी में कहते थे। मतदाताओं के लिए अंतर करना आसान न था। अब रिजवी नहीं हैं लेकिन अशिक्षित, बेरोजगार और नाराज युवा कट्टरपंथ की ओर खिंच रहे हैं। सत्ता भी दूसरा रिजवी तलाश लेगी।

ईशनिंदाखादिम हुसैन रिजवीटीएलपीपवित्र योद्धापाकिस्तानषडयंत्र
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