दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में सेवाएं प्रदान करने और कंपनियों के खर्च में कटौती को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण बीपीओ का तेजी से आधार बन रहा है।
एचडीएफसी बैंक ने देश के पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में उच्च तकनीक की सेवाएं देनी शुरू कर दी है। एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक आदित्य पुरी कहते हैं कि यह उनके जीवन की एक ऐसी उपलब्धि है, जिससे अपने कैरियर के दौरान किए गए कामों में सबसे ज्यादा संतोष मिलता है।
नेल्लौर में करीब एक साल पहले नया प्रयोग किया गया। इसके तहत गांव के बेरोजगार युवकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की कोशिश की गई, जो अब बड़े कदम के रूप में तब्दील हो चुका है। इस साल जुलाई में एचडीएफसी बैंक ने आंध्र प्रदेश के तिरुपति में पहला ग्रामीण बीपीओ स्थापित किया।
बैंक की सहायक शाखा एडीएफसी द्वारा संचालित इस बीपीओ में आस पास के गांवों के 1500 लोगों को नौकरी देने की योजना बनाई गई है। इसके बाद यह बैंकिंग क्षेत्र का देश का सबसे बड़ा ग्रामीण बीपीओ बन जाएगा।
पुरी कहते हैं, ‘एक जिम्मेदार कार्पोरेट नागरिक होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि आर्थिक रूप से सक्षम परियोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाएं।
इस तरह के किसी भी कदम से उन लोगों को दूर-दराज के गांवों से लाया जाएगा, जिनमें से ज्यादातर पारिवारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से सीमांत किसान, श्रमिक, बढ़ई आदि हैं, जो बड़े शहरों में जाकर बुनियादी सेवाएं देते हैं।’
एचडीएफसी द्वारा उठाया गया यह परोपकारी कदम बैंक के लिए खर्चों में बचत के लिहाज से भी बहुत बेहतर होगा। पूरे आसार हैं कि भविष्य में इसका आकार और भी बड़ा हो जाएगा।
अनुमानों के मुताबिक ग्रामीण बीपीओ में काम करने वाला एक कर्मचारी करीब 35,00 रुपये पाता है, जितना काम करने पर टियर 1 शहरों में 9,000 रुपये मिलते हैं।
ग्रामीण इलाकों में रियल एस्टेट की कीमत शहरी इलाकों की तुलना में 10वें हिस्से से भी कम है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में नौकरी छोड़ने की दर 5 प्रतिशत के करीब है, जबकि शहरी इलाकों में यह दर नाटकीय रूप से बढ़ती हुई 30-40 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह भी कंपनी के हित में बेहतर है।
इन बीपीओ में काम करने वाले ग्रामीण लोगों के लिए 3500 रुपये भी बेहतर ही होते हैं, क्योंकि ये लोग गांव में अपने घरों में रहते हैं, आने जाने का खर्च भी नहीं के बराबर होता है। इसके साथ ही दोपहर बाद काम का शिफ्ट शुरू होने से पहले वे अपने खेतों में भी काम कर लेते हैं, या दूधिये आदि का काम करते हैं।
तिरुपति में स्थापित बीपीओ के माध्यम से ऐसी गतिविधियों का संचालन होता है जिससे आउटसोर्सिंग में किसी तरह का जोखिम एचडीएफसी बैंक या उसके ग्राहकों को नहीं हो।
बैंक के मुंबई और चेन्नई स्थित केंद्रीय कार्यालय में इन मूलभूत दस्तावेजों की छायाप्रतियों की जांच होती है और उसके बाद इन्हें बीपीओ के पास लीज लाइनों के माध्यम से भेज दिया जाता है।
बीपीओ इन दस्तावेजों की छायाप्रतियों को इनसे संबंधित सूचनाएं एकत्र करने के लिए प्रयोग करते हैं, जिससे डाटा फाइल तैयार की जा सके। इसके बाद फिर से उन्हें सीपीयू के माध्यम से उसी लीज लाइनों से वापस भेज दिया जाता है, जिससे बाकी की प्रक्रिया पूरी की जा सके।
बीएसएनएल द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हायर-एंड बैंडविड्थ कनेक्टिविटी बहुत ही खर्चीली है, लेकिन अगर यह परियोजना जब बड़ा आकार ले लेगी तो खर्चों को आसानी से बचाया जा सकता है।
वर्तमान में बैंक द्वारा ग्राहकों के विस्तृत आंकड़े एकत्र करने और उसका सूचीकरण करने का काम करीब 1000 कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है, जो मुंबई और चेन्नई के विभिन्न इलाकों में काम कर रहे हैं।
भले ही इस समय इसका आकार छोटा है, लेकिन ग्रामीण बीपीओ की अवधारणा भारत में आधार बना रही है। इसका एक सामान्य सा कारण यह है कि इस प्रक्रिया से दोनों तरफ के हिस्सेदारों को बराबर का फायदा है।
जहां दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को नौकरियां मिल रही हैं और उन्हें बेहतर जिंदगी जीने का अवसर मिल रहा है, कंपनियां बड़े पैमाने पर अपना खर्च बचाने में सक्षम हो रही हैं। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है ।
इससे उस कंपनी की पहचान को बल मिल रहा है, जिनकी परियोजनाएं ग्रामीण इलाकों में चल रही हैं। ये ग्रामीण बीपीओ खर्च के लिहाज से बेहतरीन होने के साथ स्थानीय लोगों की कंपनी की समृध्दि में हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं।
टाटा केमिकल्स का ही उदाहरण ले लीजिए। इस साल अक्टूबर में कंपनी ने उत्तर प्रदेश के बबराला में उदय नाम से 125 लोगों का बीपीओ बनाया। यह कंपनी के संयंत्र के नजदीक ही बनाया गया। यह कंपनी के समूह की टाटा इंडीकाम के राज्य के ग्राहकों के लिए काम करती है।
उदय, टाटा समूह का ही एक हिस्सा है। इसके माध्यम से योजना बनाई जा रही है कि अगले पांच साल में इसके ग्रामीण बीपीओ के लिए करीब 5,000 लोगों को जोड़ा जाए।
इस प्रक्रिया को टाटा बिजनेस सपोर्ट सिस्टम से मदद मिल रही है, जो समूह की अन्य कंपनियों से काल सेंटरों और केंद्रीय एकाउंटिंग से समन्वय स्थापित करने का काम करता है।
बबराला के अलावा गुजरात के मीठापुर में एक और बीपीओ की स्थापना की गई है, जो टाटा केमिकल्स के उत्पाद संयंत्र के पास है। बिड़ला इंस्टीच्यूट आफ टेक्नोलॉजी ऐंड साइंस, पिलानी के समर्थन से सितंबर 2007 में स्थापित ग्रामीण बीपीओ सोर्सपिलानी को ही लीजिए।
सोर्सपिलानी ग्रामीणों से मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन (इसमें मौखिक चिकित्सकीय सलाहों को लिखा जाता है) का काम कस्टमाइज्ड ट्रेनिंग माडयूल्स के माध्यम से लेता है। इससे नौकरी करने वाले एक व्यक्ति की इतनी कमाई हो जाती है, जितनी कि राजस्थान में 5 एकड़ खेत में कृषि कार्य करने पर आमदनी होती है।
सत्यम कंप्यूटर्स के मालिक रामलिंगा राजू को भारत में ग्रामीण बीपीओ का अग्रदूत माना जाता है। राजू ने ग्राम आईटी नाम से परियोजना शुरू की। यह सत्यम के लिए एच आर और एकाउंटिंग जैसे काम करता है, जो आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में होता है।
प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए कॉलेज की डिग्री के साथ तीन माह का कंप्यूटर प्रशिक्षण अनिवार्य है। जो भी इस परीक्षा में उत्तीर्ण होता है, उसे नौकरी मिल जाती है।
सत्यम के बाइराजू फाउंडेशन ने 160 गांवों को गोद लिया है और इन सभी गांवों में ग्रामआईटी के संचालन की योजना बन रही है। इस तरह के तमाम उदाहरण दर्शाते हैं कि अगर गांवों में थोड़े बहुत भी बढ़े लिखे युवक मिल जाएं तो इस तरह के ग्रामीण बीपीओ, ग्रामीण भारत की सूरत बदल सकते हैं।