उनका कमरा बेहद शानदार है। बेहतरीन इंटीरियर वाले इस कमरे में सुनहरे रंग के पेंट वाले सोफे और उसी रंग में मेल खाते गद्दे भी हैं।
मेज पर रखे कॉफी के कप भी कम खूबसूरत नहीं हैं। एक किनारे पर ही इसका जिम है। यह वही जगह है जहां वह हर सुबह योग करती हैं। कमरे में रखे रेक पर कपड़ों की भरमार है। दीवारों पर हैंडबैग लटके हुए हैं। वहीं कमरे में लगा शीशा और उसके पास रखी कुर्सी बताती है कि सजने संवरने का काम यहीं पर बैठकर होता है।
उनकी एक सहयोगी उनकी कई जैकेटों को लेकर जाती हुई दिखाई दे रही है। उनके लेपल्स, कफ्स और बेल्ट लुई वितोन लेदर हैंडबैग्स ने लेदर के साथ ट्रिम की हैं। शहनाज हुसैन कहती हैं, ‘मुझे अपने कपड़ों से मेल खाते बैग पसंद हैं। मुझे आप लुई वितोन की ऐंबेसडर कह सकते हैं।’ तीन टेलर उनके लिए पूर्णकालिक तौर पर काम करते हैं। ये टेलर स्टिचिंग, बीडिंग से लेकर एंब्रोयडरी तक का काम करते हैं।
अपने कपड़ों में वह पुराने डिजाइनों को आमतौर पर दोहराती नहीं हैं। फिलहाल तो एक टेलर मेरा नाप ले रहा है क्योंकि शहनाज हुसैन ने मेरे लिए एक कुर्ता डिजाइन करने का फैसला किया है। वह कहती हैं, ‘तुम्हें इसे जरूर पहनना चाहिए।’ कुछ देर पहले ही उन्होंने घंटी बजाकर अपने एक सहयोगी को बुलाया, ‘नीचे से आवाज क्यों आ रही है। ‘ वह इसकी वजह जानना चाहती थीं।
जहां तक मुझे लगा तो यह नीचे से पहले माले पर आने वाली हल्की सी फुसफुसाहट के जैसा ही था। उन्होंने फिर से घंटी बजाई। वह झल्ला गईं। उन्होंने कहा, ‘मुझे किसी भी तरह का शोर नहीं चाहिए।’ कुछ ही घंटे पहले जब वे हमसे मिलने के लिए अपनी शानदार सीढ़ियों से नीचे उतरीं तब उन्होंने चांदी के बटनों वाला लाल रंग का कोट पहना हुआ था। हमसे मिलने के लिए वह कृत्रिम फूलों की क्यारियों के पास से गुजर कर आईं।
उन्होंने लाल रंग की जो सैंडल पहना हुआ था, वह उनकी लंबाई में छह इंच का इजाफा कर रही थी। उनकी कलाई और कोहनी में सोने के गहने चमक रहे थे और हीरे की नथ रोशनी बिखेर रही थी। एक फोटोग्राफर ने उनकी जीवन यात्रा को कैमरे में कैद कर रखा है। मैं जिस बैठकखाने में उनका इंतजार कर रहा था, वहां पर दोपहर के खाने के लिए मेज खूबसूरत तरीके से सजी हुई थी।
कमरे में सफेद रंग के सिंथेटिक सोफे और कुर्सियां मौजूद हैं। वे इतने गद्देदार हैं मानो किसी मखमली त्वचा वाले जानवर की गर्दन हों। मेहमान यानी मेरे लिए लजीज खाना तैयार था तो मेजबान के लिए कम लेकिन संतुलित भोजन की व्यवस्था थी। आधे घंटे तक कई बार इस पर नजर पड़ी फिर इसको वापस भेज दिया गया। इसकी बजाय उन्होंने चाय मंगाना मुनासिब समझा।
कुछ हादसों ने उनकी जिंदगी पर असर डाला है। वह कहती हैं, ‘मैं उस दौर को भुला देना चाहती हूं।’ उनके सामने ही एक कोने में उनके बेटे समीर की तस्वीर लगी है जिसने कुछ महीने पहले ही खुदकुशी की। एक दशक पहले उन्होंने अपने पहले पति को खो दिया। वह कहती हैं, ‘अपना दुख दूसरों के साथ बांटना मुमकिन नहीं है। ‘
जो भी पत्रकार उनसे मुखातिब होता है वह उनसे बेलाग बातचीत करते हुए कहती हैं, ‘मेरी शादी 13 साल की उम्र में हो गई थी, 14 साल की उम्र में गर्भवती हुई और 15 की होने पर मां बन गई।’ वह कहती हैं, ‘मुझे गुड़ियों और टैडी बियर से बेहद लगाव है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि मेरी जिंदगी में बचपन आया ही नहीं।’ उनके पास गुड़ियों और टैडी बियर का बढ़िया कलेक्शन है। उनकी आदतों में कुछ खास चीजें शुमार हैं।
वह कहती हैं, ‘हर शाम कॉफी पीना मुझे सुकून देता है। मैं हर शाम को बरिस्ता जाना पसंद करती हूं।’ शहर में रहती हैं तो वह साकेत के साकेत सिटीवाक में जाने को तरजीह देती हैं। वहीं लंदन में उन्होंने स्टारबक्स को चुन रखा है। वह ‘स्टारस्ट्रक’ नाम से अपनी खुद की कॉफी चेन शुरू करना चाहती हैं। हालांकि, इस नाम को लेकर स्टारबक्स को कुछ ऐतराज हो सकता है।
शहनाज अपने कंधे उचकाते हुए कहती हैं, ‘शायद मैं इसे शुरू कर दूं और शायद वे इस पर कुछ ऐतराज कर दें। देखते हैं क्या होता है?’ बाहर जमा हुए अपने स्टाफ से वह कहती हैं, ‘तुम जानते हो कि मैं पत्रकारों से नहीं मिलती हूं। मैं तुमको कह चुकी हूं कि मेरे इंटरव्यू रिकॉर्ड कर लिए जाएं। और जिन लोगों को भी मेरे विचार चाहिएं, उनको दिखलाए जा सकें।’
उनके पास में ही एक रिकॉर्डर रखा है जिसके जरिये वह सब लिखे जाने में मदद मिल सके जो बातचीत के दौरान चल रहा है। शहनाज हुसैन कहती हैं कि यह सब एक किताब में छपेगा। शहनाज हुसैन कहती हैं, ‘इसके कंटेंट के हिसाब से किताब का नाम ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ’ (केवल एक जिंदगी ही काफी नहीं) होना चाहिए। ‘
इसके अलावा ब्लॉग पर भी उनका खासा जोर है। इसका नाम है माइलाइफवेल डॉट कॉम। शहनाज हुसैन के मुताबिक उन लड़कियों को इससे बहुत फायदा होगा जो जिंदगी से निराश हो जाती हैं। शहनाज हुसैन कमरे में मौजूद उस असहाय सी दिखने वाली लड़की से कहती हैं, ‘तुम इन्हें किताब के उस हिस्से के बारे में बताओ जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है।’
मेरी तरफ मुड़ते हुए उस सहायक ने उन शब्दों को बोलना शुरू किया, ‘एक दिन तुम मुझसे पूछोगे कि सबसे ज्यादा अहम क्या है मेरी जिंदगी या तुम्हारी? मैं कहूंगी मेरी और फिर तुम चले जाओगे बिना यह जाने कि तुम ही मेरी जिंदगी हो।’ शहनाज हुसैन का कहना है, ‘मेरा अंदाज ऐसा ही है और मैं चाहती हूं कि आप मेरे काम के बारे में ऐसे ही सोचें।’
शहनाज हुसैन की जिंदगी के बारे में सब जानते हैं, जब उन्होंने छोटे से सैलून से अपनी शुरुआत की और 1970 के दशक में उन्होंने जिस तरह से काम शुरू किया। एक दौर था जब शहनाज अपने घर के बरामदे में तरह तरह के क्रीम बनाती थीं। उनके बारे में एक बात और कही जाती है कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी संरक्षण मिला था।
उन्होंने फेस्टिवल ऑफ इंडिया में शिरकत की करके अपनी अलग पहचान बनाई। इसके अलावा वह तब सुर्खियों में छाईं जब उन्होंने इनग्रिड बर्गमैन, प्रिसेंज डायना, बिट्रेन की राजमाता, बारबरा कार्टलैंड और माइकल जैक्सन की खूबसूरती में चार चांद लगाए। उनका कहना है कि मैं इन बातों पर टिप्पणी करने से बचती हूं क्योंकि यह अब बेहद पुरानी बात हो गई है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि शहनाज हुसैन बेहद साहसी और शाही अंदाज वाली महिला दिखती हैं। मीडिया ने उनकी जिंदगी को किवदंती की तरह पेश किया है। उनके सामने तो सोने की चमक भी फीकी मालूम पड़ती है। उनका सफर लंदन, पेरिस और टोक्यो तक ही होता रहता है। वह इस बात को बेहद खुशी के साथ कहती हैं कि, ‘मुझे तो मीडिया ने ही इतनी पहचान दिलाई है।
दरअसल यूं कहा जाए कि विदेशों में अपना मिशन चलाने के लिए ही मैं मौजूद हूं।’ मैंने इस बात पर असहमति जताते हुए कहा कि यह सच नहीं है, कोई भी शहनाज हुसैन को पहचान नहीं दिला सकता था। उन्होंने अपने काम के जरिए ही अपनी पहचान बनाई है और यह सच है कि शहनाज हुसैन की पहचान खुद से ही है।
हालांकि वह उन दिनों को याद करती हैं, जब वह अपने काम करने के लिए मीडिया की सुर्खियों में छाई हुई थीं और उनके लिए यह कहा जाता है कि हमारे देश में सौंदर्य को बेहतर बनाए रखने की जो संस्कृति थी उससे शहनाज ने विदेशियों को भी रूबरू कराया। मैंने उनसे पूछा कि वह खुद को किस तरह से देखती हैं।
उनका कहना है, ‘मुझे लगता है कि मैं आने वाले कल के बच्चे की तरह हूं। मैं कभी भी बीते हुए कल के बारे में नहीं सोचती, न तो मैं आज के बारे में सोचती हूं, मेरे लिए सबसे अहम आने वाला कल होता है।’ वह कहती हैं कि आप अपने बीते हुए कल को नहीं बदल सकते लेकिन आप अपने आने वाले कल में जरूर कोई बदलाव ला सकते हैं।
शहनाज का अतीत काफी संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने पहली बार यूगोस्लाविया में दस लाख की रकम कमाई जिसके जरिए उनको अपनी फैक्टरी के लिए आर्थिक मदद मिली। वह अब उन संघर्षो को याद करती हैं। उन्होंने आर्थिक दिक्कतों के बावजूद भी वित्तीय विभाग के सलाहकारों के सलाह को दरकिनार करते हुए भी जोखिम उठाने वाले फैसले लिए।
वह याद करते हुए कहती हैं, ‘मेरे पति हुसैन ने कहा कि शेनु रिस्क मत लो, इसका अंजाम समझ लेना, तुम मौत को ललकार रही हो।’ वह कहती हैं कि दरअसल वह फेरा के तहत आने वाले प्रतिबंधों को लेकर परेशान होते थे। लेकिन शहनाज ने हर जोखिम को उठाया और सफलता भी पाई।
उनका कहना है, ‘जब मैं किसी दीवार या जोखिम को देखती हूं तो मैं उससे दूर नहीं भागती बल्कि मैं उसका सामना करती हूं और उसे तोड़कर पार करती हूं।’ जहां तक उनके उत्पादों की बात है, वह केवल पुराने जमाने के लिए ही बेहद भरोसेमंद नहीं थी बल्कि उनके उत्पादों की अपनी अलग साख है। हालांकि घरेलू बाजार में उनके उत्पादों की पैकेजिंग पर अब भी संकट है।
अब बाजार में नए सौंदर्य उत्पादों का दबदबा भी बढ़ रहा है। मसलन, बॉयोटिक का अपना नाम है और वीएलसीसी भी अपने कारोबार में आगे बढ़ रही है। सौंदर्य प्रसाधन सामग्री में भी विदेशी ब्रांड अपना दबदबा बना रहे हैं और उनका मार्केटिंग बजट भी बहुत ज्यादा है।
शहनाज हुसैन कहती हैं, ‘मैं कुछ ऐसे सौंदर्य उत्पाद बाजार में लाने वाली हूं जिनकी कीमत 100 रुपये है और वह सबकी पहुंच तक होगा।’ उनका कहना है कि कई लोगों ने मुझे कहा कि मेरे कॉस्मेटिक्स केवल अमीरों के लिए हैं। क्या वह अपने ब्रांड को बेचेंगी?
शहनाज का कहना है कि एक कंपनी ने कहा था कि वे अपने ब्रांड को मेरे ब्रांड के साथ जोड़कर भारत में पेश करना चाहते हैं और उसके लिए वे पांच लाख डॉलर देना चाहेंगे। फिर मैंने कहा कि अगर वे मेरे ब्रांड को अपने ब्रांड के साथ दुनिया में पेश करते हैं तो वह ऐसा सोचेंगी। हालांकि उन्होंने इनकार कर दिया तो मैंने भी इनकार कर दिया।
शहनाज का कहना है कि वह बाजार में आईपीओ लाना चाहती हैं और उन्हें लगता है कि ऐसा करने का समय आ गया है। उनका कहना है कि अगर कोई विदेशी कंपनी उनसे जुड़ना चाहेगी और उनके ब्रांड को भी प्रोफेशन तौर पर दुनिया में पेश करती है तो उन्हें कोई एतराज नहीं होगा।
मैंने यह जानने की पूरी कोशिश की कि कौन सी कंपनी उनके ब्रांड के साथ जुड़ना चाहती है। इस पर उनका कहना था, ‘मुझे इस तरह की जानकारी देना अच्छा नहीं लगता क्योंकि अगर कुछ खास नतीजे नहीं निकल पाते तो उससे मुझे बेहद असंतोष होता है। कोई मेरे बारे में कैसी भी बात करे उसमें मैं कोई हस्तक्षेप नहीं करती।’
मल्लिका-ए-हुस्न के साथ फिर मिलने का वादा करते हुए, मैं नीचे ही उतर रहा था, तभी उन्होंने पीछे से आवाज दी, ‘वादा करो, जो कुर्ता मैं तुम्हारे लिए डिजाइन कर रही हूं, जरूर पहनोगे।’