भारत में चुनाव प्रचार का स्वरूप बदल गया है। अब यह बीते दिनों की बात हो गई है जब इंदिरा गांधी रातभर अपनी एंबेसडर कार से सफर किया करती थीं और अगली सुबह किसी चुनावी रैली को संबोधित करती थीं।
वह दौर भी गुजर चुका है जब नेतागण रथ पर सवार होकर उससे ही चुनावी बैठकों को संबोधित करते थे। रथ से यात्रा करने के अलावा वे उस पर ही सोते थे। इस प्रचलन की शुरुआत नंदमूरि तारक रामा राव ने की थी।
इन दोनों तरह के प्रचार के तरीकों के दौरान यह बात समान थी कि बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के सड़क किनारे बैठकें संबोधित कर दी जाती थीं और सड़कों से लगे गांवों में एकत्रित भीड़ की ओर हाथ हिलाए जाते थे।
इनके अलावा सड़क मार्ग से यात्रा करने में बड़ी अनिश्चितता रहती थी लेकिनअब वह दौर गुजर चुका है, परिस्थितियां कमोबेश बदल चुकी हैं और चुनावी प्रचार के तरीकों में भी भारी परिवर्तन आ गया है। इस बारे में बता रहे हैं टी एन नाइनन।
अब नेतागण आराम-तलबी के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं। चुनावी बैठकों को संबोधित करने के लिए वे हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहे हैं। सब कुछ निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होता है। चाहे वह लालकृष्ण आडवाणी हों या फिर नीतीश कुमार, सुबह के समय अपनी सहूलियत के हिसाब से चुनाव प्रचार शुरू करते हैं।
वे करीब आधा दर्जन रैलियों को संबोधित करते हैं, जिनमें प्रत्येक में 5,000-10,000 लोग जमा होते हैं। शाम 5 बजे तक वे अपने चुनावी प्रचार को समेट लेते हैं और रात को अपने ठिकाने पर लौटकर अपने ही बिस्तर पर सोते हैं।
रैली के दौरान गर्मी और धूल खाने के बाद सफर करते समय वे वातानुकूलित कैबिन में अखबार पढ़ते हैं और प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक और बोतल बंद पानी पीते हैं। इसके अलावा वे पैक्ड लंच का भी आनंद लेते हैं जिसमें घर की बनी रोटी, दाल, सब्जी, अचार और मिर्च होती है। एक रैली करीब 40 मिनट तक चलती है।
जिस शाम मैं पटना हवाईअड्डे पर उतरा, उस वक्त दिल्ली से आया एकमात्र जेट विमान ही दिखाई पड़ा। हमें अगले दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हेलीकॉप्टर से यात्रा करनी थी। जब मैं अगली सुबह हवाईअड्डे पर आया तो वहां एक कोने में आधा दर्जन हेलीकॉप्टर खड़े थे (कोई बता रहा था कि उनमें से एक लालू प्रसाद के लिए है तो दूसरा पासवान के लिए और बीच में एक हेलीकॉप्टर भाजपा के लिए…..)।
अचानक से ऐसा लगने लगा था कि मानो पटना हवाईअड्डा ‘निजी हवाईअड्डे’ में तबदील हो गया हो। सुबह के 10 बजे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री मीडिया से मुखातिब हो रहे थे। पत्रकारों के कुछ सवालों का जवाब देने के बाद हम लोग 12 सीटों वाले बेल 412 में बैठ गए। कुछ समय बाद ही हमलोग पूर्व दिशा में बांका की ओर 120 नॉट (220 किलोमीटर प्रति घंटा) की गति से उड़ रहे थे।
बांका झारखंड की सीमा पर स्थित एक नक्सल प्रभावित इलाका है। नीतीश कुमार अपने साथ दिल्ली के 10 अखबारों को लेकर चल रहे थे। सफर के दौरान बीच-बीच में वह बिहार कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी एन के सिंह के साथ बातचीत कर रहे थे। वर्तमान में एन के सिंह जनता दल (यूनाइटेड) के राज्य सभा सदस्य हैं।
हम लोग करीब 3,500 फीट ऊपर थे जहां से एक सूखी नदी का किनारा और जंगली पहाडियां दिख रही थीं लेकिन घंटे भर बाद ही हेलीकॉप्टर से एक छोटा और सुंदर कस्बा करीब आता हुआ दिखाई पड़ा। हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे शहर में उतर रहा था। लोग हेलीकॉप्टर की आवाज सुनकर रैली ग्राउंड की ओर आ रहे थे।
नीतीश कुमार को जिस मैदान को संबोधित करना था, वह देखते ही देखते लोगों से पट गया। हेलीकॉप्टर रैली ग्राउंड में उतर चुका था। हेलीकॉप्टर के दरवाजे खुलते ही लोगों की आवाज सुनाई दे रही थी ‘नीतीश कुमार जिंदाबाद’। रैली ग्राउंड के मंच पर पहुंच कर नीतीश कुमार बातचीत की अपनी शैली में ही लोगों को संबोधित कर रहे थे।
बांका और इसके बाद जहां कहीं भी नीतीश कुमार ने चुनावी रैलियों को संबोधित किया वहां उन्होंने बहुत ही सहज और सरल संदेश दिया। उन्होंने कहा कि पिछले 41 महीनों के दौरान उन्होंने अपने कार्यकाल में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार किए हैं। चाहे वह कानून व्यवस्था की बात हो या फिर विकास की पहल, उन्होंने इन सबमें सुधार लाने की पुरजोर कोशिश की है।
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि नई दिल्ली में बैठी हमारी केंद्र सरकार बिहार को फंड मुहैया कराने में कंजूसी कर रही है। चुनावी रैलियों में लोगों को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि अगर उन्होंने काम किया है तो जनता को उनके हाथों का मजबूत करना चाहिए और केंद्र में एक ऐसी सरकार का चयन करना चाहिए जो राज्य के लिए खजाने के दरवाजे खोल दें।
जद (यू) के लिए बांका निर्वाचन क्षेत्र बहुत आसान नहीं दिख रहा है। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे दिग्विजय सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी से टिकट नहीं मिलने की वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ दी। सिंह के जद (यू) विरोधी एक बहुत ही पिछड़े समुदाय से है। सिंह जैसे स्थापित नेता के समक्ष जद (यू) उम्मीदवार काफी कमजोर दिखाई पड़ रहे हैं।
एक ऐसे चुनाव में जहां कि जद (यू)-भाजपा गठबंधन के जीतने की उम्मीद जताई जा रही है, वहीं बांका एकमात्र ऐसा निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां हार की आशंका जताई जा रही है। बांका के बाद नीतीश कुमार ने भागलपुर और बेगुसराय में भी चुनावी रैली को संबोधित किया था। इन दो जगहों के मुकाबले बांका में लोगों की संख्या काफी कम तो थी ही साथ ही जनता की ओर से बहुत ज्यादा उत्साह भी नहीं दिख रहा था।
जब हम लोग हेलीकॉप्टर से लौट रहे थे तो मुख्यमंत्री की खामोशी ही इस बात की पुष्टि कर रही थी कि ‘बांका निर्वाचन क्षेत्र में चुनावी मुकाबला काफी कठिन है।’ चुनावी दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर नीतीश कुमार ने बताया, ‘पिछली दफा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) ने 29 सीटों पर जीत हासिल की थी (बिहार की 40 सीटों में से)। इस आम चुनाव में हमें लगता है कि स्थिति उलट नजर आएगी। जनता का कहना है कि पिछले बार के मुकाबले इस बार बेहतर होगा।’
चुनावी सभाओं के दौरान नीतीश कुमार को ‘विकासपुरुष’ के रूप में पेश किया जाता है और जब वह अपने विकास कार्यों के बारे में चर्चा करते हैं तो उन्हें सराहनीय प्रतिक्रिया मिलती है। जब नीतीश कुमार विकास कार्यों की चर्चा करते हैं तो वह अधिक से अधिक सड़कों एवं पुलों, उच्च विद्यालयों में पढ़ने के लिए इच्छुक सभी लड़कियों के लिए साइकिल, पंचायत के चुनाव में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण, उपेक्षित वर्गों के लिए विशेष योजनाओं (महादलित, अत्यंत पिछड़े वर्गों) आदि के बारे में चर्चाएं करते हैं।
हालांकि इससे भी कहीं अधिक वे राज्य से होने वाली कर कमाई की बात करते हैं, जहां कि करों में कोई बढ़ोतरी भी नहीं की गई है। लेकिन वह योजना जिसकी सफलता पर मौजूदा बिहार सरकार को सबसे ज्यादा गुमान है, वह सभी सरकारी योजनाओं में सब्सिडी देने की है। सरकार सब्सिडी के तहत मिलने वाली राशि को गरीबों के खातों में भी स्थानांतरित कर रही है।
इस योजना के पीछे नीतीश सरकार की रणनीति कांग्रेस की ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना और एक व दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर गेहूं और चावल देने की योजना को पछाड़ने की है। चद्रंबाबू नायडू ने भी ऐसा ही प्रयोग आंध्र प्रदेश में किया है। वैसे बिहार में निवेश को लेकर नीतीश कुमार की बनाई गई नीतियों की भी चौतरफा तारीफ हुई है। राज्य के युवाओं को जहां राज्य में रोजगार के नए विकल्प नजर आने लगे है।
वहीं नीतीश कुमार कहते हैं कि अब बिहारियों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों का मुंह ताकना नहीं पड़ेगा जहां उनके साथ खराब बर्ताव किया जाता है। वैसे भागलपुर और बेगूसराय में भाजपा के उम्मीदवारों की रैलियों में भीड़ भी ज्यादा है और प्रचार के लिए लगाए गए झंडे भी बड़े और अच्छे कपड़े के नजर आ रहे हैं। वहीं जद (यू) के झंडे छोटे और कम अच्छे कपड़े के दिख रहे हैं।
लेकिन जद (यू) के प्रचार की कमान अपने हाथ में रखते हुए नीतीश कुमार नई विकास योजनाओं की धड़ाधड़ घोषणा कर रहे हैं। इन योजनाओं को मिल रही शुरुआती सफलता से नीतीश कुमार अपने मनोबल को और बढ़ा हुआ मान रहे हैं।
लेकिन अंत में सार यही है कि एक युवा इंजीनियर जो आज से 35 साल पहले जेपी आंदोलन से जुड़ गया था, अब एक जुझारु राजनेता के सभी गुणों से परिचित हो गया है। यह उसका अनुभव और उत्साह ही है जो खराब प्रशासन का दंश झेल रहे बिहार जैसे राज्य में आज भी 100 फीसदी साक्षरता उपलब्ध करवाने का दावा कर रहा है। यह दावा कितना पुख्ता साबित होगा, यह तो भविष्य की कुंजी ही तय करेगी।
