कर आकलन के मामलों के विरुद्ध फेसलेस अपील की व्यवस्था करने के प्रस्ताव ने जटिल हालात पैदा कर दिए हैं। अखबारों में आई हालिया रिपोर्ट बताती हैं कि कर अधिकारियों के मन में मौजूदा अपील व्यवस्था से नई व्यवस्था में बदलाव के दौरान तमाम दिक्कतें आने की आशंका है। कर सलाहकारों को भी डर है कि प्रस्तावित ऑनलाइन अपील व्यवस्था के बाद कर आकलन अधिकारियों की ओर से अतिरिक्त मांग आने लगेगी क्योंकि अपील स्तर पर किसी मामले को ई-मेल के भरोसे स्पष्ट कर पाना मुश्किल है।
जोखिम यह है कि कर मांग बढ़ सकती है और विवादों की तादाद भी। इससे कर पंचाटों पर काम का बोझ बढ़ेगा जबकि वे पहले ही क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं। ऐसे में शायद अधिक कर अनुकूल माहौल बनाने और कर आकलन निपटान तथा अपीलों के निपटान का वांछित लक्ष्य हासिल करने में दिक्कत हो।
कर भुगतान और शुरुआती आकलन को ऑनलाइन करना सरकार की अहम उपलब्धि थी। परंतु अपील को एकबारगी पूरी तरह ऑनलाइन करने से दिक्कत पैदा हो सकती है। खासतौर पर ऐसे वक्त पर जब अधिकांश करदाता न तो समुचित रिकॉर्ड रखते हैं और न ही विवाद निस्तारण की ऑनलाइन व्यवस्था से सहज हैं।
एक विचार के रूप में गुमनाम, पहचान रहित और ऑनलाइन अपील व्यवस्था अच्छी है लेकिन क्रियान्वयन चरणबद्ध होना चाहिए ताकि करदाता और कर प्रशासन दोनों अच्छी तरह तैयार हों। ऐसे में कर अपीलों के निपटान के लिए हाइब्रिड विकल्प अपनाना सही शुरुआत होगी। ऐसा तब तक किया जाए जब तक कि करदाता तैयार न हो जाएं और ऑनलाइन प्रणाली तकनीकी समस्याओं से मुक्त न हो जाए। आज न तो कर अधिकारी, न करदाता और न ही कर सलाहकार पूरी तरह ऑनलाइन के लिए तैयार हैं।
उदाहरण के लिए प्रारंभिक आकलन को गोपनीय और ऑनलाइन तरीके से पूरा किया जा सकता है लेकिन ऑनलाइन अपील व्यवस्था की ओर बदलाव चरणबद्ध होना चाहिए। अपील के पहले चरण में कर विभाग अभी भी पहचान रहित प्रणाली अपना सकता है लेकिन यदि उस निर्णय के बाद दूसरी अपील होती है तो उस स्थिति में सलाह प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों का समूह शामिल हो।
यदि सलाह प्रक्रिया से ऐसी अपील नहीं निपट पाती हैं तो इससे कर बकाया बढ़ेगा जो पहले ही बीते वर्षों में काफी अधिक हो चुका है। कर बकाया का एकत्रित होना एक बड़ी समस्या है। यह सरकार के कर आकलन और अपील प्रक्रिया से नहीं एकत्रित हुआ है बल्कि बकाया संग्रह की कमजोर और छिद्रपूर्ण व्यवस्था की वजह से हुआ है। इस समस्या को तत्काल हल करने की आवश्यकता है, खासतौर पर ऐसे वर्ष में जब राजस्व में बजट अनुमान की तुलना में तेज गिरावट आने का अनुमान है।
कर राजस्व संग्रह की समस्या तब सामने आती है जब हम वर्ष 2018-19 तक समाप्त पांच वर्षों में कर बकाये में हुए इजाफे पर नजर डालते हैं। केंद्र के सकल कर राजस्व के हिस्से के रूप में कुल कर बकाया वर्ष 2013-14 के 51 फीसदी से बढ़कर 2018-19 में 53 फीसदी हो गया। जबकि 2013-14 में यह पहले ही काफी अधिक था। इतना ही नहीं बाद के वर्षों में भी इसमें लगातार इजाफा हुआ जो निगरानी की कमजोरी और कर संग्रह व्यवस्था में कमी को दर्शाता है।
इसी तरह बढ़ते बकाये की समस्या प्रत्यक्ष कर में ज्यादा है जबकि उसी में पहचान रहित अपील का प्रस्ताव रखा गया है। ऐसे में विवादों और बकाया बढऩे की आशंका भी बलवती हुई है। वर्ष 2013-14 में अप्रत्यक्ष बकाया 5 लाख करोड़ रुपये था। यह राशि केंद्र के अप्रत्यक्ष कर संग्रह का 22 फीसदी थी। 2018-19 यह घटकर 18 फीसदी हुई।
वर्ष 2013-14 में प्रत्यक्ष कर बकाया 4.76 लाख करोड़ रुपये था जो उस वर्ष के कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह का 75 फीसदी था। वर्ष 2018-19 के अंत तक बकाया बढ़कर 9.4 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह वर्ष के कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह का 83 फीसदी था। प्रत्यक्ष कर बकाया बमुश्किल पांच वर्ष में दोगुना हो गया। वह भी तब जब सरकार कर कानूनों को सुसंगत बनाने और कर भुगतान में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने में व्यस्त थी।
इसके बावजूद प्रत्यक्ष कर बकाया बढ़ता गया और इस अवधि में अप्रत्यक्ष कर के बकाये पर लगाम लगाई गई थी। ये आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि नीति निर्माताओं और कर प्रशासन को यह देखने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों राजस्व विभाग की एक शाखा यानी अप्रत्यक्ष कर बकाये की बढ़ोतरी थामने में कामयाब रही जबकि दूसरी यानी प्रत्यक्ष कर इसमें नाकाम रही।
यह कहा जाएगा कि प्रत्यक्ष कर में विवाद की आशंका अधिक रहती है और इसलिए आयकर कर या कॉर्पोरेशन कर के बकाये का निपटान ज्यादा कठिन है। बहरहाल, इन पांच वर्षों के आंकड़े यही बताते हैं कि जो कर बकाया विवादित नहीं है उन मामलों में भी प्रत्यक्ष कर का प्रदर्शन अप्रत्यक्ष कर की तुलना में खराब रहा है।
वर्ष 2013-14 और 2018-19 के बीच प्रत्यक्ष कर का गैर विवादित बकाया कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह के 10 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गया। इसी अवधि में गैर विवादित अप्रत्यक्ष कर बकाया कुल अप्रत्यक्ष कर संग्रह के 3 फीसदी से घटकर 1.5 फीसदी रह गया। जाहिर है समस्या केवल विवादों की नहीं है बल्कि जल्दी और तेज गैर विवादित कर संग्रह न कर पाना भी दिक्कत की वजह है। प्रत्यक्ष कर के साथ समस्या अधिक है।
सरकार का गैर कर बकाया भी संग्रह प्रणाली की कमियों को उजागर करता है। सरकार के गैर कर राजस्व संग्रह में गैर कर राजस्व बकाया 2013-14 में 55 फीसदी था लेकिन 2018-19 तक यह 113 फीसदी हो गया। जाहिर है गैर कर राजस्व का अतिशय अनुमान भी एक वजह है जिसके चलते गैर कर राजस्व बकाया एकत्रित होता है।
यदि गैर कर राजस्व बकाया, किसी दिए गए वर्ष में सरकार द्वारा जुटाए गए वास्तविक कर संग्रह से अधिक होता है तो जाहिर है राजस्व की बजटिंग करते समय अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि वर्ष 2018-19 में ऐसा हो चुका है। इसके साथ ही समझदारी यह भी होगी कि एक नई ऑनलाइन कर अपील व्यवस्था को नहीं अपनाया जाए क्योंकि उससे केवल विवादों की तादाद बढ़ेगी और सरकार के लिए उच्च कर बकाये की शर्मिंदा करने वाली परिस्थितियां बनेंगी।
