भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और इसकी पूर्व सहयोगी शिवसेना के बीच एक बार फिर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। महाराष्ट्र के एक राजनीतिज्ञ ने कहा कि राजनीतिक गठबंधन एक विवाह की तरह होता है। यह तभी सफल रहता है जब इसमें आपसी समझदारी और सहयोग की भावना होती है। लेकिन लोग इस सत्य को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि ये राजनीतिज्ञ हैं और राजनीतिज्ञ अति महत्त्वाकांक्षी होते हैं जिनमें धैर्य का घोर अभाव होता है। इसके साथ ही वे स्वयं को महान समझने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में नारायण राणे को आगे किया जाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कभी एक दूसरे के सहयोगी रहे भाजपा और शिवसेना की राहें अब अलग हो गई हैं और वे कभी नहीं मिलेंगी।’
राज्य में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन तैयार करने में भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन ने अहम भूमिका निभाई थी और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी इसके लिए तैयार था। अब इन दोनों दलों के बीच सहयोग की कहानी इतिहास का हिस्सा बन कर रह गई है। हालांकि कभी शिवसेना के समर्पित नेता रहे नारायण राणे और शिवसेना के बीच दरार पैदा होना व्यक्तिगत टकराव का नतीजा है।
जब उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान अपने हाथों में ले ली तो राणे पार्टी से बाहर आ गए थे। उन्होंने 2004 के राज्य विधानसभा चुनाव से पहले ठाकरे की नेतृत्व क्षमता पर सार्वजनिक मंचों पर सवाल उठाए थे और उनकी आलोचना भी की थी। राणे ने शिवसेना छोडऩे के बाद कांग्रेस का हाथ पकड़ा और उसके बाद स्वयं अपनी एक पार्टी खड़ी करने की कोशिश की। अंत में वह भाजपा में शामिल हो गए और यहां उन्हें एक अहम भूमिका के लिए एक वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में राणे को प्रोन्नति देकर एमएसएमई मंत्री बनाया गया। इससे पहले उनका विभाग महाराष्ट्र के ही एक बड़े नेता नितिन गडकरी से जुड़ा था।
कुछ समय पहले तक राज्य में भाजपा कार्यकर्ताओं को गडकरी और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से निर्देश लेने की आदत थी लेकिन अब उन्हें राणे के रूप में एक तीसरा ध्रुव मिल गया है। फडणवीस शिवसेना की आलोचना करने में अधिक मुखर नहीं रहे हैं और कई लोगों को लगा कि शिवसेना के साथ संबंध सामान्य बनाने में वह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आगे किए जा सकते हैं मगर राणे के आने के बाद मामला पलट गया है। इस बारे में कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘करीब तीन-चार महीने पहले भाजपा ने शिवसेना के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की थी। मगर अब राणे को आगे कर भाजपा ने स्वयं ही सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। राणे जब तक राज्य में भाजपा की रणनीति तय करेंगे तब तक शिवसेना के साथ भाजपा के संबंध नहीं सुधर सकते।’
तो क्या भाजपा और शिवसेना के बीच संबंध पूरी तरह खत्म हो गया है? कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। यह अलग बात है कि भाजपा के ही कई नेता यह सोच कर हैरान हैं कि क्या शिवसेना में फूट डालने के लिए राणे का इस्तेमाल एक बुद्धिमानी भरा कदम है। भाजपा में कुछ लोगों का मानना है कि 2019 में राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को जीत मिली थी। अगर यह गठबंधन राज्य में सरकार नहीं बना पाया तो इसकी मुख्य वजह फडणवीस और ठाकरे के बीच व्यक्तित्व की लड़ाई थी। अगर उस समय फडणवीस को महाराष्ट्र से हटा दिया जाता और किसी और व्यक्ति को उनकी जगह नियुक्त किया गया होता तो भाजपा-शिवसेना गठबंधन में खाई शायद पाटी जा सकती थी।
इस बात की चर्चा जोर-शोर से चल रही थी कि जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल में फडणवीस को जगह मिलेगी। महाराष्ट्र विकास आघाडी सरकार के एक नेता ने कहा, ‘भाजपा ने सोचा कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने देते हैं और दो उप-मुख्यमंत्री बनाते हैं। इस तरह, कोई भी नुकसान में नहीं रहेगा और हम लोग महाराष्ट्र पर नियंत्रण बनाए रखेंगे। मगर फडणवीस इसके लिए तैयार नहीं थे। वह जानते हैं कि मुख्यमंत्री की ताकत क्या होती है। इस वजह से वह राज्य से बाहर जाने के लिए तैयार नहीं हुए। अब राणे को आगे कर भाजपा ने शिवसेना के साथ संबंध सुधरने की बची-खुची गुंजाइश भी समात कर दी है।’
यह बात काफी हद तक सही है कि ठाकरे और राणे के बीच व्यक्तिगत खुंदक दोनों दलों के बीच किसी भी आपसी समझौते पर भारी पड़ती है। कुछ वर्ष पहले प्रकाशित अपनी जीवनी में राणे ने लिखा था कि बालासाहेब ठाकरे के प्रति उनका समर्पण किसी भी सीमा से परे था लेकिन उद्धव के लिए उनके मन में ऐसा आदर भाव नहीं है। जब दोनों नेताओं के बीच लड़ाई अंतिम चरण में पहुंच गई तो आखिरकार बालासाहेब को अपने पुत्र की बात माननी पड़ी। राणे अपनी जीवनी में बालासाहेब के साथ आखिरी बैठक का जिक्र करते हैं जिसमें उद्धव भी मौजूद थे। राणे ने कहा कि उद्धव ने उस बैठक में साफ कह दिया कि अगर राणे दोबारा पार्टी में आते हैं तो वह और रश्मि मातोश्री छोड़ देंगे।’ राणे कहते हैं, ‘आज भी मैं 2005 के अपने रुख पर कायम हूं कि उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना का कोई भविष्य नहीं है। वह एक अच्छे इंसान हो सकते हैं मगर एक नेता के तौर पर उनमें कोई खूबी नहीं है।’
वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा महाराष्ट्र में आगामी सभी चुनाव अकेले लडऩा चाहेगी। इनमें सबसे बड़ा है बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने कहा, ‘बीएमसी में अपनी ताकत को लेकर हमें कोई गलतफहमी नहीं है मगर भाजपा बीएमसी पर कब्जा जमाने के लिए राणे को आगे करती है तो इसका उसे (भाजपा) नुकसान उठाना होगा।’