कम करनी होगी कीमतें
वी. के. आर. अग्रवाल
महाप्रबंधक, बैंक ऑफ इंडिया
रियल एस्टेट क्षेत्र की स्थिति इस समय अच्छी नहीं है, इसमें कोई संदेह नहीं है। सभी को मालूम है कि रियल एस्टेट मंदी की चपेट में आ चुका है, लेकिन इसके लिए काफी हद तक यह क्षेत्र खुद ही जिम्मेदार है।
इसकी दो प्रमुख वजह हैं, एक तो जरूरत से ज्यादा बढाई गई कीमतें और दूसरा व्यक्तिगत खरीदारों की कमी। रियल एस्टेट की कंपनियों को अपनी वर्तमान कीमतों पर विचार करना चाहिए और उन्हें कम करना होगा। जब तक रियल एस्टेट में प्राइस बूम हावी रहेगा, तब तक खरीदार इससे दूरी बनाए रहेंगे। पिछले कुछ सालों में प्रॉपटी की कीमतें कई गुना ज्यादा बढ़ गई हैं, जो ठीक नहीं है।
प्रॉपटी की कीमतों में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी के पीछे इस क्षेत्र में आए नए निवेशक भी हैं। कीमतें आसमान पर पहुंचने के कारण मकान आम आदमी के बजट से दूर हो गया। शेयर बाजारों में आई रिकॉर्ड गिरावट और महंगाई के चलते लोगों के पास पैसे की कमी हुई है, ऐसे में प्रॉपर्टी की आसमान छूती कीमतें लोगों को रियल एस्टेट में निवेश करने से रोक रही हैं।
रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट और सीआरआर में की गई कमी से बाजार में तरलता तो आएगी, जिससे पैसे की कमी से काफी हद तक निपटा जा सकेगा। बैंकों ने ब्याज दरों में कमी करना भी शुरू कर दिया है। बैंकों की ब्याज दरों में कमी आने से नौकरी पेशा करने वाले लोग एक बार फिर से अपना मकान लेने की हिम्मत जुटा पाएंगे, जिसका फायदा रियल एस्टेट क्षेत्र को होने वाला है।
नए निवेशक विशेषकर युवा ग्राहक एक बार फिर से मकान खरीदने लगेंगे, जिससे नकदी की कमी का रोना रो रही रियल एस्टेट कंपनियों को कुछ राहत जरूर मिलेगी। दरअसल भारतीय बैंकों के सामने नकदी कोई समस्या नहीं है।
बैंकों के पास कर्ज देने के लिए पर्याप्त पैसा है और बैंकों ने कर्ज देने से कभी मना भी नहीं किया है लेकिन मंदी का जो माहौल चल रहा है उसमें यह देखना तो जरूरी हो जाता है कि सामने वाले के पास कर्ज चुकाने की क्षमता है या नहीं। इस समय जरूरी यह है कि आप लुभावनी योजनाओं की जगह अपनी प्रॉपर्टी की कीमतों में कमी कर दो, जो आपकी इंडस्ट्री और ग्राहक दोनों के लिए सही होगा। रियल एस्टेट के ज्यादातर खिलाड़ी जमीन खरीदने के लिए ऋण न मिलने की बात करते हैं।
यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पहली बार मकान खरीदने वाले को बैंक प्राथमिकता देते रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे। जमीन खरीदने केबाद भवन निर्माता खुद तो इस्तेमाल करने वाले नहीं हैं, वे इसको बेचेंगे ही, ऐसे में यदि उन्हीं के यहां पहली बार मकान खरीदने वाला व्यक्ति बैंक के पास कर्ज मांगने आता है तो नैतिकतावश हमें उसको प्राथमिकता देनी पड़ती है।
निवेशकों को कर्ज देने से मना नहीं किया गया लेकिन जरूरत से ज्यादा मांग न बढ़ जाए इसके लिए थोड़ी रोक तो लगानी ही पड़ती है। बहुत से जगहों पर सुनने को मिलता रहा है कि भवन निर्माता फ्लैट बेचने के समय बड़े-बडे वादे करते हैं और बाद में उनको पूरा नहीं करते हैं।
इंडस्ट्री को अपने आपमें एक नियम बनाना चाहिए। कुल मिलाकर रियल एस्टेट को बुरे दौर से निकलने के लिए कंपनियों को दूसरों के द्वारा उठाए जा रहे कदमों में निगाह रखने से पहले अपनी वर्तमान कीमतें कम करने के बारे में सोचना चाहिए, अगर रियल एस्टेट कंपनियां ये कदम उठाती हैं तो इनकी ज्यादातर मुसीबतें अपने आप खत्म हो जाएंगी।
(बातचीत : सुशील मिश्रा)
अब भी है काफी दमखम
मनु गर्ग
निदेशक, लैंडक्राफ्ट डेवलपर्स
रियल एस्टेट क्षेत्र अभी बुरे दौर से गुजर रहा है। अमेरिका जैसे देशों में रियल एस्टेट क्षेत्र मंदी के दौर से गुजर रहा है और इसी नकारात्मक सोच की वजह से भारतीय रियल एस्टेट बाजार भी बुरी तरह से प्रभावित हो गया है।
इस विषम प्रचार प्रसार की वजह से हमारा स्टॉक मार्केट तो गोता लगाने ही लगा, साथ ही रियल एस्टेट की पूरी इमारत ही चरमराने लगी। अगर हम भारत के रियल एस्टेट बाजार की बात करें, तो स्थिति उतनी बुरी नहीं है, जितनी बताई जा रही है। खासकर अफोर्डेबल हाउसिंग क्षेत्र में तो हालात कमोबेश ठीक ठाक है। अफोर्डेबल हाउस श्रेणी में हम उन मकानों को रख सकते हैं, जो 25 से 50 लाख रुपये के बीच आते हैं।
वैसे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रियल एस्टेट बाजार अभी 90 के दशक के आरंभिक दिनों की तरह ही काफी बुरे दौर से गुजर रहा है। अफोडर्ेबल हाउस श्रेणी की बात करें, तो इसका विपणन 2200 से 2500 रुपये प्रति वर्ग फीट पर किया जाता है। इसमें निर्माण लागत लगभग 1500 रुपये प्रति वर्ग फीट और जमीन की कीमत 800 से 2000 रुपये प्रति वर्ग फीट रहती है।
अगर हम इसकी व्याख्या करें, तो कोई डेवलपर इस क्षेत्र के उत्पादों का अगर विपणन करता है, तो उसे किसी प्रकार की बड़ी मंदी से बेजार नहीं होना पड़ता है। वह बाजार द्वारा निर्धारित कीमत पर मकानों को बेच सकता है, क्योंकि उसे जमीन ऐतिहासिक दरों पर मिल जाती है। अगर यही डेवलपर जमीन की खरीदारी मौजूदा दर पर करें, तो उसकी भी हालत पस्त हो जाएगी। मौजूदा जमीन की कीमत 2200 से 2500 रुपये प्रति वर्ग फीट है, जो निश्चित तौर पर 800 रुपये प्रति वर्ग फीट की तुलना में कहीं अधिक है।
एक तो अफोर्डेबल मकानों की पूरे देश में कमी है, उस पर अनिश्चितता और विषम दौर से स्थिति और बदतर हो गई है। वास्तव में अभी का समय सबसे उपयुक्त समय है, जब मूल्य आधारित प्रॉपर्टी खरीदी जाए। जहां भी निर्माण कार्य चल रहा है, उसकी वैधानिक मंजूरी के बाद प्रॉपर्टी खरीदने में हिचकने की जरूरत नहीं है।
एक बात और महत्त्वपूर्ण है कि अगर कोई खरीदार या डेवलपर निवेश के बाद तुरंत बड़ा मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं, तो उनके लिए रियल एस्टेट उपयुक्त विकल्प नहीं है। जाहिर सी बात है कि आपको में लंबी अवधि के निवेश की रणनीति बनानी होगी, तब जाकर निश्चित तौर पर रियल एस्टेट बाजार आपके लिए फलदायी साबित हो सकता है।
लेकिन एक बात और है कि बाजार में पहली पीढ़ी के ही इतने खरीदार मौजूद हैं कि उनके जरूरत के मुताबिक आने वाले वर्षों में काफी मकानों की जरूरत होगी। वैसे बार बार यह कहा जा रहा है कि देश में मंदी का आगमन हो रहा है, यह एक तरह की गलत धारणा है।
चारों तरफ यह भ्रम फैला हुआ है कि रियल एस्टेट मंदी के दौर से गुजर रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन इसके बावजूद भारत 7 फीसदी सालाना की विकास दर हासिल कर रहा है।
इसलिए मेरी राय में रियल एस्टेट अभी भी किशोरावस्था में है और अगर वित्तीय अनुशासन बरकरार रखा जाए, तो आने वाले समय में हम इस क्षेत्र में बेहतर संभावनाएं देख सकते हैं। इसकी एक मजबूत वजह यह है कि एक तो भारत में इस क्षेत्र में संभावनाएं बहुत हैं और अगर भावनाओं से ऊपर उठकर वास्तविकता की पड़ताल कर निवेश किया जाए, तो जरूर फायदा होगा।
(बातचीत:कुमार नरोत्तम)