बीते एक वर्ष के दौरान कई कंपनियों की बुनियादी स्थिति और उनके बाजार मूल्यांकन में भारी विसंगति उत्पन्न हो चुकी है। कुछ कंपनियों के लिए जहां यह प्रचुरता उचित मानी जा सकती है, वहीं ज्यादातर कंपनियों के लिए इसे पूरी तरह गलत माना जा सकता है।
उथलपुथल का स्वागत किया जाना चाहिए, यह एक विलक्षण घटना है। इतिहास हमें बताता है कि उथलपुथल और उन्माद के बीच बहुत पतली रेखा है। ट्यूलिपमेनिया (1636), द मिसीसिपी स्कीम (1719) और साउथ सी बबल (1720) को याद कीजिए। निक लेसन के अंतिम कुछ सौदों की बदौलत ताकतवर बेरिंग्स बैंक का पतन हो गया था। हर्षद मेहता ने पकड़े जाने के पहले एक सौदे पर कुछ ज्यादा ही बड़ा दांव खेल दिया था। मेरे पूर्व सहयोगी स्वर्गीय दिलीप पेंडसे के लिए दुनिया का पतन उस समय हुआ जब कुछ गलत कारोबारी कदमों को छिपाने का प्रयास किया गया।
फिलहाल मेरी चिंता यह है कि मध्यम वर्ग के निवेशकों की कड़ी मेहनत से अर्जित की गई बचत को खतरा उत्पन्न हो सकता है। यदि सूचीबद्ध कंपनियों की गुणवत्ता पर नजर डाली जाए तो अंदाजा लगता है कि हालात ऐसे निवेशकों के लिए विपरीत हैं।
पूंजी बाजार के जानकारों के साथ बातचीत से मैं कुछ उपयोगी बातें जान पाया। मिसाल के तौर पर पूंजी बाजार की गतिविधियां भारतीय नागरिकों को उसी तरह प्रभावित करती हैं जिस प्रकार क्रिकेट: यह लोगों को अतार्किक रूप से अवसादग्रस्त करता है या उत्साहित कर देता है। हालांकि क्रिकेट से इतर पूंजी बाजार क्रूर हो सकता है और अगर निवेशक अपनी भावनाओं की पड़ताल नहीं करता है तो वह उन्हें दंडित भी कर सकता है। अच्छी बात यह है कि तीन साधारण नियमों का पालन करके वित्तीय मामलों में ऐसे हालात से बचा जा सकता है।
1. आपको पता होना चाहिए कि आपका स्वामित्व किन चीजों पर है। ये शब्द बहुत साधारण हैं लेकिन लालच में बहुत ताकत होती है और यह अक्सर इस नियम के पालन की आपकी प्रतिबद्धता को नुकसान पहुंचा सकता है।
2. आपको यह भी पता होना चाहिए कि कितना स्वामित्व रखना है। प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) प्रस्तुत करने वाली कंपनियों के शुरुआती दौर में निवेश करते समय एक बुनियादी नियम यह है कि ऐसी राशि का निवेश किया जाए कि अगर आप पूरी राशि गंवा दें तो भी आपके जीवन पर इसका नकारात्मक असर न हो। खेद की बात यह है कि उन्माद के चलते कई निवेशक इसका ठीक उलटा कर बैठते हैं। वे अपनी कुल संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा इस आशा में निवेश कर देते हैं कि वे कम समय में अधिक संपत्ति बना पाएंगे। जबकि ऐसा करना कतई उचित नहीं है।
3. अपने निर्णय स्वयं लें। आईपीओ को लेकर खुमार उतरने के बाद अक्सर इस बात को लेकर चीरफाड़ होती है कि सूचीबद्ध कंपनी, निवेश बैंकरों, नियामकों या सरकार को छोटे निवेशकों के बचाव के लिए क्या करना चाहिए था। इन बातों का नतीजा हमेशा एक ही होता है: चर्चा हमेशा निवेशकों पर ही समाप्त होती है, चाहे वे कितने भी बड़े या छोटे क्यों न हों?
आने वाले आईपीओ को अस्वाभाविक बनाने वाली एक बात यह भी है कि इनमें से कई तो पारंपरिक मूल्यांकन के तौर तरीकों को भी धता बताते हैं। कंपनियों का मूल्यांकन हमेशा नकदी उत्पादन, सफल वित्तीय इतिहास और विशिष्ट मूल्य शक्ति के आधार पर होता रहा है। इनकी मदद से आय में वृद्धि का तार्किक अनुमान लगाया जा सकता है। कई नुकसान वाली कंपनियां जिनका वर्तमान मूल्यांकन अरबों डॉलर है, वे कोई नकदी प्रवाह नहीं तैयार करती हैं, उनकी आय का कोई इतिहास भी नहीं है और उनमें मूल्य निर्धारण क्षमता भी नदारद है। इसके बावजूद चमत्कारीऔर जादुई रूप से इन कंपनियों से आशा की जाती है कि वे राजस्व में असाधारण वृद्धि करेंगे और भारी पैमाने पर नकदी तैयार करेंगे। उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे पांच वर्ष के भीतर मुनाफा कमाएंगी और 10 वर्ष में सकारात्मक नकदी प्रवाह सुनिश्चित करेंगी।
हकीकत यह है कि बीते वर्षों में काफी कुछ बदला है लेकिन बुनियादी मूल्यांकन तकनीक जस की तस है। जैसा कि एक सफल उद्यमी एल मिट्ज के हवाले से कहा भी गया है, ‘कुल कारोबार दिखावा है, मुनाफा समझदारी है लेकिन नकदी ही वास्तविकता है।’ मूल्यांकन को लेकर किसी न किसी मोड़ पर यह उक्ति सामने आएगी और बहुत कम कंपनियां ही अपेक्षाओं पर खरी उतर सकेंगी।
ऐसा क्यों है यह जानने के लिए गिनती कीजिए कि गत 15 वर्ष में स्थापित एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य की कितनी कंपनियां आज मुनाफा कमा रही हैं? अब इनकी तुलना बाजार में मौजूद यूनिकॉर्न स्टार्टअप (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनियां) से कीजिए और खुद से पूछिए कि क्या कारोबार की बुनियादी शर्तें रातोरात बदल गई हैं?
निवेश के इतना आसान नजर आने के पीछे यह धारणा जवाबदेह है कि किसी भी निवेश में सफल या विफल होने की संभावना 50-50 फीसदी है। लेकिन आप विमान चालक, शल्य चिकित्सक, दंत चिकित्सक, इंजीनियर आदि के पेशे के बारे में यह बात नहीं कहेंगे। निवेश करना आसान नजर आता है लेकिन ऐसा है नहीं।
भारत मुनाफा कमाने की दृष्टि से मुश्किल जगह है। इस समय देश में 250 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियां ऐसी हैं जिनका बाजार पूंजीकरण एक अरब डॉलर या उससे अधिक है। कई कंपनियां तब मुनाफा कमाने वाली बनीं जब वे पहले ही काफी मुश्किलों का सामना कर चुकी थीं। बहरहाल, घाटे में चलने वाली स्टार्टअप भी अब एक अरब डॉलर का शुरुआती मूल्यांकन हासिल कर लेते हैं। सन 2021 में भारत में हर 10वें दिन एक नई यूनिकॉर्न कंपनी सामने आई। यह कुछ लोगों के लिए भले ही उत्साहित करने वाली बात हो लेकिन आगे चलकर कई के लिए मुश्किल पैदा करेगी।
प्रोफेसर एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेंड्रिक बेसमबाइंडर द्वारा प्रकाशित शोध में यह बात साफ नजर आती है। यह दिखाती है कि सन 1926 से 2016 के बीच अमेरिकी शेयर बाजार में तैयार कुल विशुद्ध संपत्ति का आधा से अधिक हिस्सा केवल 90 कंपनियों में तैयार हुआ। यानी कुल कंपनियों का केवल 0.3 फीसदी। छोटे निवेशकों को इन असमान नतीजों तथा इससे जुड़ी अन्य संभावनाओं को समझने की आवश्यकता है। ऐसे अतार्किक उत्साह का एकमात्र इलाज तार्किक और विनम्र सोच है जिसमें जागरूकता भी शामिल हो। मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा करके ही अपनी संपत्ति, स्वास्थ्य और खुशियों को बचाया जा सकता है।
(लेखक टाटा संस के निदेशक एवं हिंदुस्तान यूनिलीवर के वाइस-चेयरमैन रह चुके हैं)
