आजकल कंपनियां बढती लागत और तेजी से बढ़ती प्रतियोगिता से तो परेशान हैं ही, उन पर तरक्की करने और मुनाफा कमाने का दबाव भी बहुत ज्यादा है।
इसी वजह से मार्केटिंग से जुडे लोगों की यह ख्वाहिश है कि वे अपने ब्रांड का प्रचार प्रसार ऑनलाइन और मोबाइल स्क्रीन के जरिए करें। मुद्रा ग्रुप की एक कंपनी ट्राइबल डीडीबी इंडिया के प्रमुख लेरॉय एलवारस के मुताबिक भारत में डिजिटल माध्यमों के जरिए विज्ञापनों पर 300 करोड़ रुपये से 350 करोड़ रुपये खर्च किया जाता है।
सर्च इंजनों पर जो विज्ञापन आते हैं, उनके लिए 150 से 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं जबकि मोबाइल पर विज्ञापनों के लिए 50 से 80 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। फिलहाल मुल्क में ऑनलाइन विज्ञापनों का बाजार 250 करोड़ रुपये का है। उम्मीद जताई जा रही है कि देसी ऑनलाइन विज्ञापनों का बाजार वर्ष 2011 तक 10 गुना बढ़कर 2,500 करोड़ रुपये तक हो जाएगा। मोबाइल पर विज्ञापनों का बाजार फिलहाल 40 करोड़ रुपये तक है।
उम्मीद तो है कि अगले पांच सालों में यह बढ़कर 500 करोड़ रुपये हो जाएगा। दुपहिया वाहनों और बड़ी गाड़ियां बनाने वाली कंपनियों से लेकर उपभोक्ताओं की जरूरतों के लिए सामान बनाने वाली कंपनियां भी ऑनलाइन विज्ञापन देती हैं। मिसाल के तौर पर मारुति, टाटा मोटर्स और फिएट भी अपने मॉडलों के लिए ऑनलाइन विज्ञापन कराती हैं। अर्नेस्ट एंड यंग, मीडिया एंड इंटरटेनमेंट के नेशनल सेक्टर लीडर फारुख बलसर का कहना है, ‘कार जैसी चीजों की मौजूदगी इंटरनेट पर बड़े पैमाने पर नजर आती है।
हम ये तो बहुत आसानी से समझ सकते हैं कि कार का बाजार सामान्य लोगों के लिए नहीं होता। इसीलिए यह बेहतर है कि हम एक खास उपभोक्ता वर्ग के लिए विज्ञापन करें।’ ऑगिल्वी वन वर्ल्डवाइड की डिजिटल सेवा से जुड़े कार्यकारी निदेशक प्रशांत मोहनचंद्रन के मुताबिक एफएमसीजी उत्पादों का बाजार काफी बढ़ रहा है। इसी वजह से ऑनलाइन विज्ञापनों के लिए एफएमसीजी सेक्टर भी अच्छी खासी रकम खर्च कर रहा है। आजकल कंपनियां टीवी पर तो अपने विज्ञापन देती ही हैं, साथ-साथ माइक्रोसाइट्स पर भी ऑनलाइन विज्ञापन देती हैं।
जैसे सनसिल्क, मेंटोज, पेप्सी, पॉन्डस, हैप्पीडेंट, सेवनअप, कैडबरी और क्वालिटी वॉल्स भी इसमें शामिल हैं। माइक्रोसाइट्स का जीवन काल बेहद छोटा है और साधारण साइट की कीमत 2.5 लाख रुपये है। एजेंसियों के लिए तो यह बेहद अच्छा कारोबार साबित हो सकता है। देश की 10 बेहतरीन विज्ञापन एजेंसियां खुद की डिजिटल कंपनी बनाना चाहती हैं या फिर कोई स्वतंत्र इंटरनेट विज्ञापन एजेंसी खोलना चाहती है। अब तो ब्लॉगपोस्ट भी डिजिटल मार्केटिंग रणनीति में शामिल होने के लिए रास्ता बना रहे हैं।
मिसाल के तौर ऑनलाइन बाइकिंग कम्युनिटी जैसे एक्सबीएचपी डॉट कॉम को लें जिसे कैस्ट्रोल अपना पूरा सहयोग देती है। इसके अलावा बाइकिंग दी वर्ल्ड और मोटर साइकिल डायरीज भी हैं। टीवीएस और हीरो होंडा ने अपने लिए अपाचे और सीबीजेड एक्सट्रीम नाम से वेबसाइट बनाई है। अपाचे ने अपने फैन के लिए अपाचे ट्राइब कम्युनिटी भी बनाई है। विज्ञापनदाताओं की कोशिश यह होती है कि उपभोक्ता सकारात्मक ब्लॉग समीक्षा लिखें। इसका असर टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के मुकाबले ज्यादा पड़ता है और भावी उपभोक्ता इसके लिए ज्यादा आकर्षित होते हैं।
पल्सर, सीबीजेड और अपाचे की ऑरकुट पर अपनी क म्युनिटी भी है। पल्सर क म्युनिटी के ही 10,000 हजार सदस्य हैं। इस तरह की सोशल नेटवर्किंग साइट पर विज्ञापनों का चलन तब जोर-शोर से शुरू हुआ जब वर्ष 2006 में माइस्पेस की साइट पर हॉलीवुड की मशहूर फिल्म एक्स-मैन थ्रीज का विज्ञापन दिया गया था। इसी वजह से माइस्पेस के सोशल नेटवर्किंग के जरिए इसके प्रोफाइल से 32 लाख लोग जुड़ गए। उसी तरह दूसरी सोशल नेटवर्किं ग साइट मसलन नाइक सॉकर से 43,000, एक्वाफिना से 16,302 लोग और होंडा एलीमेंट से 43,159 लोग जुडे हैं।
इस तरह की मार्केटिंग रणनीति में गेमिंग का भी असर खासा हो रहा है। इसके तहत बेहद योजनाबद्ध तरीके से उत्पादों का विज्ञापन दिया जाता हैं जो एक तरह से मनोरंजन का साधन भी बन जाता है। जिलेट भी अपनी गेमिंग वेबसाइट जिलेटविनर्स डॉट कॉम को रेडियो चैनलों के जरिए प्रमोट कर रही है। यहां यूजर इनके ब्रंाड एंबेसडर के साथ गेम खेल सकते हैं। नोकिया ने भी अपनी माइक्रोसाइट पर एक तकनीकी कॉन्टेस्ट शुरू किया है।