काफी समय पहले मार्क ट्वेन ने अपने देशवासियों को जमीन खरीदने की सलाह दी थी। जिसने इस पर गौर किया, उसकी किस्मत संवर गई।
किसी और देश में ऐसा करना लाभदायक और खतरनाक दोनों हो सकता है, लेकिन यह निवेशकों को रोक नहीं पाया। साल 2007 और 2008 में जिस तरह से कृषि जिंसों की कीमतों में जैसी तेजी आई, उसके बाद से खाद्य सुरक्षा की खातिर विदेश में जमीन का अधिग्रहण कर अनाज और दूसरी फसलें उगाने का चलन जोर पकड़ रहा है, लेकिन यह काफी पहले शुरू हो चुका था।
काफी कम कृषि योग्य जमीन और खाद्यान्न आपूर्ति की चिंता से निपटने के लिए जापान दशकों से दूसरे देशों में कृषि भूमि में निवेश करता आ रहा है। इस प्रक्रिया में वह अपनी घरेलू कृषि भूमि के मुकाबले तिगुनी जमीन का अधिग्रहण कर चुका है। खाद्यान्न आपूर्ति के लिए चीन भी दशकों से ऐसा ही कर रहा है।
लेकिन अमीर खाड़ी देशों और बड़ी आबादी वाले देश भारत समेत कई दूसरे देशों द्वारा विदेश में जमीन अधिग्रहण का मामला हाल में शुरू हुआ है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) ने कहा है कि जमीन और पानी की कमी का सामना कर रहे देशों ने पिछले तीन सालों में अफ्रीका, एशिया और दूसरी जगह 20 से 30 अरब डॉलर की जमीन अधिग्रहित की है।
भारतीय कंपनियों ने इथियोपिया और दूसरे देशों में करीब 10 हजार करोड़ रुपये की जमीन खरीदी है और उद्यमी विदेश में मौके की तलाश जारी रखे हुए हैं। आवश्यक रूप से यह गैर-स्वागतयोग्य चलन नहीं है। लेकिन औपनिवेशीकरण के खतरे स्वाभाविक रूप से हैं और राष्ट्रीय राजनीति (जहां से बनाना रिपब्लिक का उद्भव हुआ है) पर कंपनियों के नियंत्रण के किस्से भी पर्याप्त हैं।
ऐसे में अहम बात यह है कि इस तरह के सौदों में पारदर्शिता हो और नियमों का पालन हो। जैसे खुली वार्ता, उचित कीमत और जमीन का इस्तेमाल उसी तरह हो जिससे स्थानीय आबादी को फायदा मिले। अन्यथा, ऐसे सौदे स्थानीय समुदाय को जमीन से अलग कर सकते हैं और मोजाम्बिक और मेडागास्कर की तरह सामाजिक-आर्थिक अशांति पैदा हो सकती है।
सकारात्मक पहलू यह है कि जमीन में विदेशी निवेश अतिरिक्त रोजगार पैदा कर सकता है, कृषि संबंधी नई तकनीक मिल सकती है, ग्रामीण आधारभूत संरचना के साथ-साथ स्कूल व स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के जरिए गरीबी मिटाने में मदद मिल सकती है। लेकिन बिना मुआवजा व जीविका के वैकल्पिक साधन के स्थानीय लोगों को हटाना विस्फोटक हो सकता है।
ऐसे में उनकी रक्षा के पर्याप्त उपाय और कंपनियों के लिए प्रभावी कानून होने चाहिए। इस नजरिए से आईएफपीआरआई ने हाल में पेश अपने प्रस्ताव में कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए आचार संहिता की बात कही है।
इसमें सौदे की बातचीत में पारदर्शिता, मौजूदा भूमि अधिकार का सम्मान, स्थानीय समुदाय के साथ इससे मिलने वाले लाभ का बंटवारा, पर्यावरण और राष्ट्रीय व्यापार नीति के पालन की बात भी कही गई है। निश्चित रूप से ऐसी जमीन की खातिर सबसे अच्छा कदम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का होगा।
राष्ट्रीय आपातकाल मसलन अकाल और स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न की कमी के दौरान मेहमानदारी करने वाले देश की सरकार का वहां पैदा होने वाले अनाज पर पहला अधिकार होना चाहिए।
