कोविड-19 महामारी से उपजे आर्थिक संकट और लद्दाख में चीन की घुसपैठ की दोहरी चुनौती के बीच चालू वित्त वर्ष में सरकार ने रक्षा बजट का जिस तरह प्रबंधन किया वह काबिलेतारीफ है। पहली बात, सेना ने बिना राजस्व बजट में अनावश्यक इजाफा किए चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दूरस्थ इलाकों में 40,000 सैनिक तैनात किए। सैनिकों की गतिविधि, प्रशिक्षण और बुनियादी निर्माण इसी बजट से होता है।
दूसरी बात, तीनों सेनाओं ने चीन के साथ संकट का प्रबंधन बिना पूंजीगत बजट बढ़ाए किया है। थलसेना, नौसेना और वायुसेना ने मिलकर पूंजीगत बजट में महज 20,776 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय किया है। तीसरा, तीनों सेनाओं ने पेंशन भुगतान में कमी कर संसाधन जुटाए हैं। यह आवंटन बजट में उल्लिखित 133,825 करोड़ रुपये से घटाकर 125,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। यानी 8,825 करोड़ रुपये की बचत। सन 2021-22 के लिए पेंशन आवंटन राशि महज 115,850 करोड़ रुपये है जो पहले से 9,150 करोड़ रुपये कम है। इससे पता चलता है कि हमारी थलसेना ने दुनिया की दूसरी सबसे ताकतवर सेना को मुश्किल हालात में केवल पेंशनरों की राशि से की जाने वाली आपातकालीन खरीद के बूते रोक दिया। क्या ऐसा संभव है, आइए देखते हैं यह अनुमान किन बातों पर आधारित है।
पहली बात, चूंकि पेंशन बजट सावधानीपूर्वक जुटाए आंकड़ों पर आधारित होता है तो 8,825 करोड़ रुपये कैसे बच गए? या तो फरवरी 2020 के बजट में उल्लिखित महंगाई भत्ते की दो किस्तों का भुगतान नहीं किया गया या फिर सरकार सैनिकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से रोक रही है जिससे वह राशि बच रही है जो सामान्य हालात में इन सैनिकों के सेवानिवृत्त होने पर देनी होती।
मुझ समेत कई रक्षा विश्लेषक कहते रहे हैं कि पेंशन बजट कम करना जरूरी है ताकि उपकरणों के आधुनिकीकरण जैसे काम के लिए संसाधन जुटाए जा सकें। हालांकि इसे हासिल करने के लिए सेवा अवधि कम की जानी चाहिए ताकि पेंशन के हकदार सेवानिवृत्त कम हो सकें। इसके विपरीत महंगाई भत्ता रोकना या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को रोकना आदि अस्थायी उपाय हैं। बहुत संभव है कि वित्त वर्ष 2021-22 में महंगाई भत्ते में इजाफा होगा और ऐसे में पेंशन आवंटन बढ़ाना होगा।
इस सवाल पर वापस आते हैं कि बिना राजस्व बजट में इजाफा किए इतने सैनिकों की तैनाती कैसे संभव है। इसका जवाब यह है कि यदि यह तैनाती मौजूदा संसाधनों के जरिये की जाए तो व्यय में बहुत अधिक इजाफा नहीं होता है। किसी इन्फैंट्री बटालियन या टैंक दस्ते को उड़ान के माध्यम से एक से दूसरे स्थान पर ले जाने में बहुत अधिक लागत आती है। इसका भुगतान थलसेना द्वारा वायुसेना को किया जाता है और यह मामला आपसी रह जाता है।
तीसरा पूंजीगत व्यय की बात करें तो रक्षा मंत्री ने पूंजीगत आवंटन में 18.75 फीसदी इजाफा किया है जो गत 15 वर्षों में सबसे अधिक है। लेकिन सच यह है कि 20,777 करोड़ रुपये की यह राशि बजट में उल्लिखित नहीं थी। यह चीन की घुसपैठ का पता चलने के बाद के महीनों में हुआ। इस राशि से अत्यधिक ठंड में पहनने वाले कपड़े, हथियार और अन्य सैन्य उपकरण खरीदे गए। यदि पूंजीगत बजट में सालाना बदलाव की तुलना की जाए और एक वर्ष के बजट आवंटन की तुलना अगर आगामी वर्ष के आवंटन से की जाए तो इसमें 2,700 करोड़ रुपये की कमी आई है।
यह संभव है कि एलएसी पर हालात सामान्य हो जाएं और तीनों सेनाओं को अगले वर्ष पूंजीगत बजट से 20,000 करोड़ रुपये की आपात खरीद न करनी पड़े। इससे तीनों सेनाओं को 2 लाख करोड़ रुपये की पूंजीगत खरीद शुरू करने का अवसर मिलेगा क्योंकि हस्ताक्षर के समय कुल राशि का केवल 10 फीसदी चुकाना होता है। यदि मान लें कि सरकार आने वाले वर्षों में पूंजीगत व्यय इसी स्तर पर रखेगी तो देश के हथियार और उपकरण आधुनिकीकरण में आमूलचूल बदलाव आ सकता है। यदि सरकार का सेना और रक्षा क्षेत्र की सरकारी कंपनियों मसलन हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड आदि की जमीन बेचने का प्रस्ताव फलीभूत होता है तो यह बदलाव और क्रांतिकारी हो सकता है। इससे सेना के पुराने पड़ चुके हथियारों के आधुनिकीकरण की राह भी आसान हो सकती है।
बीते आठ वर्ष के औसत पूंजीगत बजट आवंटन की बात करें तो थलसेना को औसतन 29 फीसदी, नौसेना को 29 फीसदी और वायुसेना को 42 फीसदी आवंटन हुआ। नौसेना एक ऐसी सेना है जहां अधिकांश खरीद परियोजनाएं निर्णायक मोड़ पर हैं। सरकार के आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को देखें तो बीते दो वर्ष में बहुत कम विदेशी अनुबंध पूरे हुए हैं। नौसैनिक नियोजकों का मानना है कि इससे 13,000 करोड़ रुपये मूल्य की अगली पीढ़ी के मिसाइल क्षमता संपन्न पोत खरीदने के लिए अनुकूल हालात बन सकते हैं। इसके अलावा दो प्रशिक्षण पोत, एक तेज हमला करने में सक्षम पोत और 9,000 करोड़ रुपये में 11 नौसैनिक गश्ती पोत का अनुबंध किया जा सकता है। ये सारे अनुबंध बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
इसी प्रकार वायुसेना जिसे पूंजीगत व्यय बजट में सबसे अधिक हिस्सेदारी मिलती है, वह एचएएल के साथ 83 तेजस मार्क 1ए लड़ाकू विमान और कुछ तादाद में सुखोई-30एमकेआई जंगी जहाज बनाने के लिए 45,000 करोड़ रुपये का अनुबंध कर सकती है। पूंजीगत व्यय बजट में 3,200 करोड़ रुपये के इजाफे के साथ थलसेना तोपखाने के लिए जरूरी चीजें खरीद पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। वह पिनाका रॉकेट लॉन्चर की दोबारा खरीद और के-9 वज्र तोप खरीद सकती है जिसे भारत में लार्सन ऐंड टुब्रो दक्षिण कोरियाई तकनीक से बना रही है।
जरूरत यह है कि रक्षा मंत्रालय अपनी खरीद प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय करे। कहा जाता रहा है कि सैन्य परिचालन प्राथमिकताएं रक्षा बजट के अनुरूप होनी चाहिए। यह बात भारत पर लागू नहीं होती जहां सैन्य खरीद का परिचालन जरूरतों से कोई लेनादेना नहीं होता बल्कि लंबे समय से लंबित खरीद को सिलसिलेवार ढंग से निपटाया जाता है।
