जनवरी में विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी 218 किलोमीटर लंबी जरंज-देलाराम सड़क परियोजना का उद्धाटन करने के लिए अफगानिस्तान गए थे।
इस परियोजना को भारत ने लगभग 750 करोड़ रुपये की लागत से पूरा किया है। उसके बाद उन्होंने हेलीकॉप्टर से काबुल से अफगानिस्तान-ईरान सीमा तक की यात्रा की। उस समय उनके साथ अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई भी थे।
इस पूरी यात्रा के दौरान इन दोनों की सुरक्षा के लिए मात्र 4 जवान हेलीकॉटर की चारों खिड़कियों पर राइफल लेकर खड़े हुए थे। आधे घंटे के इस समारोह के लिए लगभग 8,000 ब्रिटिश अधिकारी परिसर की सुरक्षा कर रहे थे।
यह सिर्फ एक उदाहरण है जो अफगानिस्तान में भारत की निर्माण योजनाओं को पूरा करने की प्रतिबद्धता दर्शाता है। ऐसे समय में जब अमेरिका वहां से धीरे धीरे निकल रहा है, भारत वहां पर चल रहे अपने निर्माण कार्यों के कारण ऐसा नहीं कर सकता है।
दरअसल भारत-अफगानिस्तान नीति में वहां भारत के निर्माण कार्यक्रम को काफी महत्त्व दिया गया है। काम करने और रहने के लिए अफगानिस्तान बिल्कुल भी सुरक्षित जगह नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर भारतीय की जान खतरे में है।
अकाउंटेंसी कंपनी डिलॉयट ने एक ऑडिटिंग करार के कारण पिछले साल लगभग 12 भारतीयों को अफगानिस्तान भेजा था। उन सभी ने अपना काम पूरा किया और घर वापस आ गए। हालांकि हर भारतीय को सुरक्षा मिल पाना भी मुमकिन नहीं है।
दिल्ली स्थित थल युद्ध अध्ययन केंद्र में शोध करने वाली स्वप्ना कोना नायडू ने बताया, ‘अगर व्यक्ति आसान लक्ष्य बनने से बचे तो वह सुरक्षित है।’ स्वप्ना इससे पहले अफगानिस्तानी संसद के वोलसेई जिरगा के साथ भी काम कर चुकी हैं।
फिलहाल अफगानिस्तान में लगभग 3,500-4,000 भारतीय संस्थान, बुनियादी ढांचा, शिक्षा, ऊर्जा, दूरसंचार जैसी सेवाएं मुहैया कराने के लिए विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। नवंबर 2005 से फरवरी 2009 तक वहां लगभग 13 भारतीय मारे जा चुके हैं।
2008 में भारतीय दूतावास पर हुए बम हमले के बाद एक बार सरकार ने वहां रह रहे भारतीयों की सुरक्षा पर चिंता जताई थी। फिलहाल वहां काम कर रहे भारतीयों और भारतीय दूतावास की सुरक्षा का जिम्मा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल पर है। अफगानिस्तान के पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र में काम करना ज्यादा सुरक्षित है।
अफगानिस्तान इन्वेस्टमेंट सपोर्ट एजेंसी की उपनिदेशक (इन्वेस्टर सपोर्ट डिपार्टमेंट) सिमरन कौर ने बताया अफगानिस्तान में लगभग 43 पंजीकृत भारतीय और भारत-अफगानिस्तान संयुक्त उपक्रम हैं। भारत के सहायता कार्यक्रम के तहत वहां सड़क और बिजली ट्रांसमिशन लाइन लगाने में उसे वहां की सरकार की मदद करनी है।
हाल ही में मॉस्को में शांघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन द्वारा कराए गए एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री के विशेष दूत ने कहा था, ‘इतिहास पर नजर डाले तो जब अफगानिस्तान के केंद्रीय और दक्षिणी एशिया के साथ अच्छे कारोबारी संबंध बने हैं, तब उसने काफी तरक्की की है।’ पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया जल्द ही काबुल को जाने वाली पुल-ए-खुमरी ट्रांसमिशन लाइन का काम पूरा कर लेगी।
