पश्चिम बंगाल में कोलकाता के 24 परगना जिले की जयंती एक ऐसे गांव की रहने वाली है जहां खेती-बाड़ी होती है। उसने सिंगुर के बारे में नहीं सुना है।
उसके पास एक सेल फोन भी है, लेकिन उसे नहीं मालूम कि वह वोडाफोन कंपनी का है। वह एसएमएस भी नहीं पढ़ सकती है, लेकिन बांग्ला जानती है। उसने चौथी कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और उसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी। वह एक प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से दिल्ली आई और यहां पर घरेलू नौकरानी का काम करने लगी।
हो सकता है कि आने वाले समय में जयंती बेहतरीन कुक बन जाए और इसके साथ ही वह अपने तमाम नियोक्ताओं के माध्यम से ठीक ठाक अंग्रेजी भी सीख जाए। लेकिन अगर वह इन चीजों में दक्ष हो भी जाती है तो उसकी इस योग्यता के लिए उसके पास कोई प्रमाणपत्र नहीं है, जिसके माध्यम से वह अच्छी नौकरी पा सके। न तो उसके पास कोई उचित मंच है, जिसके माध्यम से वह अपने अन्य गुणों को विकसित कर सके।
राष्ट्रीय कौशल विकास नीति कैबिनेट में पेश किए जाने के लिए तैयार है। इस नीति की बदौलत जयंती जैसी युवतियों को अपने काम का चयन करने का मौका मिल जाएगा। जयंती जैसे कामगार जो अपने कौशल का विकास करने से वंचित रह गए हैं, वे इस नीति के माध्यम से उसे पूरा करने में सक्षम होंगे।
नीति में प्रमाणपत्र और नियुक्ति के साथ घरों में काम करने तथा नौकरी करने के लिए अन्य जरूरी शिक्षा देने की बात की गई है। वास्तव में उसके जैसे अन्य लोग इस बात की उम्मीद कर सकते हैं कि वे पश्चिम बंगाल में स्थित अपना गांव छोड़ने से पहले वहां के स्कूलों में अपने काम से संबंधित योग्यता और उसका प्रमाणपत्र, अंग्रेजी का प्रारंभिक ज्ञान और अन्य जानकारियां हासिल कर सकेंगे।
नई दिल्ली के लिए रेलगाड़ी पकड़ने के पहले उनको फिक्की या सीआईआई जैसे वाणिज्य एवं उद्योग संगठन कोलकाता में ही प्रशिक्षण देने के लिए भर्ती करेंगे। इसमें न केवल औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं बल्कि 50,000 और इससे भी ज्यादा कौशल विकास केंद्रों में मांग पर आधारित शिक्षा दी जाएगी।
यह कम समय वाले कोर्स में प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई छोड़ चुके छात्रों की जरूरतों को पूरा करेंगे, जो 120 लाख प्रति वर्ष नई नौकरियां पाने वाले लोगों के 25 प्रतिशत लोगों में शामिल हैं। यह उन अशिक्षितों के लिए है, जिनकी संख्या इस तरह की नौकरियां पाने वालों की कुल संख्या की आधी है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य है कि हर साल 150 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया जाए। श्रम और अन्य मंत्रालय इस समय कहीं बहुत कम, करीब 26 लाख लोगों को प्रशिक्षित करते हैं।
इस नीति की खास विशेषता यह है कि उद्योग जगत को इसमें प्रमुख भूमिका दी गई है। इसके बारे में उद्योग जगत ही फैसला करेगा कि किस तरह से क्षेत्र के आधार पर स्किल काउंसिल का गठन किया जाए। इन सेक्टरों का निर्धारण फिक्की द्वारा किया जाएगा, जो इस मामले में सरकार का अधिकृत सहयोगी है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, पर्यटन, इलेक्ट्रिकल, हॉस्पिटेलिटी और आईटी शामिल हैं।
वास्तव में फिक्की का काम यह होगा कि वह स्किल डेवलपमेंट फोरम के माध्यम से नियोक्ता की जरूरतों के मुताबिक कुशल मानव संसाधन उपलब्ध कराए। इसमें न केवल निश्चित रूप से रोजगार की गारंटी दी गई है बल्कि विभिन्न कार्यक्रम कराने और एलुमिनी एसोसिएशन को संचालित किए जाने की योजना है। श्रम सचिव सुधा पिल्लई द्वारा अक्टूबर में तैयार किया गया मंच एक नमूना मात्र था कि व्यवहार में कौशल विकास नीति किस तरह से काम करेगी।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) पहले से ही इस तरह के कार्यक्रमों का संचालन करता रहा है। लेकिन पहली बार इस तरह की योजना बन रही है कि सरकार और विभिन्न मंत्रालय, उद्योग जगत के साथ मिलकर इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करेंगे। इससे प्रशिक्षण पाने वाले लोगों को रोजगार की गारंटी तो मिलेगी ही, उद्योग जगत को भी बेहतरीन कामगार मिल सकेंगे।
यह सभी कवायद कौशल विकास पर बनी प्रधानमंत्री की समिति के निर्देशन में हो रही है। इसमें प्रमुख उद्योगपतियों के साथ पहली बैठक में विचार किया जाएगा। इसके बाद ही अन्य मंत्रालय भी कौशल विकास कार्यक्रमों के संचालन के बारे में काम को आगे बढ़ाएंगे। ये भी इस कार्यक्रम के सदस्य हैं और कार्यक्रम की सफलता को सुनिश्चित करने में पूरा सहयोग देंगे।
अब तक श्रम मंत्रालय ही कुशल कर्मचारियों की उपलब्धता के लिए अधिकृत था। मंत्रालय ने इसके पहले कभी भी इस तरह के कार्यक्रमों का संचालन नहीं किया है। मंत्रालय का कौशल विकास का बजट 101 करोड़ रुपये से बढ़कर 2007-08 में 1,094 करोड़ रुपये हो गया है।
औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों (आईटीसी) की क्षमता बढ़ाने और 300 औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों के साथ उद्योग जगत को जोड़ने के बाद इनकी क्षमता बढ़ी है। नेशनल काउंसिल आफ वोकेशनल ट्रेनिंग से मान्यता प्राप्त इन विषयों में सीटों की उपलब्धता 2004 के 20,000 से बढ़कर इस साल 2,5000 हो गई है।
करीब 1,00,000 सीटें अकेले इसी साल जुड़ी हैं। इसके कौशल विकास की पहल और अन्य महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों में 50,000 कौशल विकास केंद्रों और अन्य कार्यक्रमों की परियोजना अभी भी कार्यान्वित होनी है।
भारत में केवल 2 प्रतिशत लोग ही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और 10 प्रतिशत अन्य तरह के प्रशिक्षण पाते हैं। इसकी तुलना में कोरिया में 96 प्रतिशत (4.44 करोड़), जर्मनी में 75 प्रतिशत (4.35 करोड़), जापान में 80 प्रतिशत (6.67 करोड़), ब्रिटेन में 68 प्रतिशत (3.09 करोड़) लोग व्यासायिक प्रशिक्षण पाते हैं। इन आंकडों से ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि भारत में इस क्षेत्र में कितना ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है।