वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना स्थगित कर दी गई थी। जनगणना टलनी तय मानी जा रही थी। मगर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में आए तथ्य चौंकाने वाले हैं इसलिए अब जनगणना की प्रतीक्षा सभी बेसब्री से करेंगे। एनएफएचएस-5 में ऐसे दावे हैं जो यह बताते हैं कि देश की आबादी में दिखने वाले दीर्घ अवधि के रुझान बदल चुके हैं। पहले कुछ बातें स्पष्ट रूप से समझ लेते हैं। एनएफएचएस-5 में दो चरणों में 6 लाख परिवारों के 8 से 9 लाख लोगों का साक्षात्कार किया गया था। महिलाओं के लिए तैयार प्रश्नावली में 1,140 सवाल थे जबकि पुरुषों की प्रश्नावली में 843 प्रश्न थे। यह एक बड़ा नमूना है। मगर आबादी के प्रतिशत के लिहाज से यह छोटा है और हो सकता है कि यह पूर्वग्रह से भी ग्रसित हो।
सर्वेक्षण में लिंग अनुपात किसी खास दिन परिवार में मौजूद लोगों की संख्या पर आधारित होता है। लिहाजा वास्तविक अनुपात थोड़ा अलग भी हो सकता है। इसके अलावा एनएफएचएस-5 में दो चरण थे। दूसरा चरण कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान पूरा हुआ था। इस वजह से आंकड़ों में थोड़ी त्रुटियां हो सकती हैं। एनएफएचएस-5 का दावा है कि लिंग अनुपात 991 महिलाएं प्रति 1,000 पुरुष (एनएफएचएस-4) से सुधर कर 2020-21 में 1,020 महिलाएं प्रति 1,000 पुरुष हो गया है। 5 वर्ष से कम कम उम्र के बच्चों की बात करें तो यह अनुपात 1,000: 929 (लड़के एवं लड़कियां) है यानी यह पूर्व के 1,000:919 अनुपात से सुधरा है। कुपोषण का आंकड़ा 36 प्रतिशत के साथ ऊंचे स्तर पर है। वैश्विक मानक के अनुसार लड़के एवं लड़कियों का अनुपात जन्म के समय 1,000:952 होना चाहिए। इस लिहाज से लिंग अनुपात बहुत अच्छा तो नहीं माना जा सकता है। मगर यह भी सच है कि दशकों तक यह अनुपात बिगड़ी स्थिति में रहने के बाद अब सुधर रहा है।
एक बड़ा दावा यह भी किया जा रहा है कि प्रति महिला कुल प्रजनन दर (टीएफआर) कम होकर 2 रह गई है जो एनएचएफएस-4 में 2.2 और 2011 की जनगणना में 2.4 थी। अगर यह सच है तो यह एक बड़ा अंतर है। आबादी का अध्ययन करने वाले लोग 2.1 को विस्थापन अनुपात (रीप्लेसमेंट रेशियो) मानते हैं। इसमें आबादी बिना बढ़ोतरी या कमी के संतुलित रहती है। टीएफआर 2.1 रहने से आबादी में कमी आती है।
एक दशक के दौरान प्रति 10 महिला 24 संतान का अनुपात (2011 में टीएफआर 2.4) कम होकर प्रति महिला 20 संतान (टीएफआर 2.0) रह जाना आश्चर्यचकित करने वाला है मगर असंभव नहीं है। इसमें शक नहीं कि जनगणना आंकड़ों से इसकी पुष्टि करनी होगी। मगर यह 2001 और 2011 की जनगणना में दर्ज कम होती टीएफआर से मेल खाता है और इससे भी अहम बात यह है कि एनएफएचएस-5 आंकड़े भी इसका समर्थन करते हैं। एचएस-5 आंकड़े बताते हैं कि देश में 15 वर्ष से कम उम्र के लोगों की आबादी 2015-16 की 28.6 प्रतिशत से कम होकर 26.5 प्रतिशत रह गई है।
इसका क्या मतलब निकला जा सकता है? एक बेहतर लिंग अनुपात पुरुष-महिला की संख्या में असंतुलन दूर कर सकता है। चीन ने प्रति परिवार (शादी-शुदा जोड़ा) एक संतान का नियम लागू किया था मगर लड़के की चाहत के कारण वहां लिंगानुपात में काफी असमानता आ गई। इससे कई तरह की सामाजिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं और लिंग अनुपात पर भी इसका असर दिख रहा है। भारत भी ऐसी समस्या दिख सकती है मगर लिंग अनुपात सामान्य हो गया तो सामाजिक स्तर पर नुकसान कम होगा। टीएफआर 2 से कम रहने का मतलब होगा कि जनसंख्या में लगातार वृद्धि के बजाय इसमें कमी आएगी। भारत में शिशु मृत्यु दर अधिक है इसलिए यह गिरावट तेजी से आएगी। हालांकि इसका एक मतलब यह भी होगा कि तथाकथित अधिक आबादी का लाभ अधिक तेजी से गायब हो जाएगा।
15 से 60 वर्ष के दायरे में अधिक लोगों की संख्या जितनी रहेगी आर्थिक वृद्धि की रफ्तार उतनी ही तेज होगी। अगर प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ती है तब भी कार्य बलों में वृद्धि से उत्पादन बढ़ जाता है। जिन देशों ने अधिक जनसंख्या का लाभ उठाकर आर्थिक वृद्धि तेज की है उन्होंने दो महत्त्वपूर्ण पहल की हैं। उन्होंने प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए युवा आबादी को शिक्षित करने पर जोर दिया है। उन्होंने अपने कार्य बलों के लिए उत्पादक रोजगार भी खोज लिए हैं।
भारत में इस समय तो युवा आबादी की संख्या अधिक है मगर टीएफआर रुझान सही हैं तो भविष्य में यहां युवा आबादी कायम नहीं रहेगी। भारत ने शिक्षा में सुधार के लिए कोई खास उपाय भी नहीं किए हैं और न ही यह रोजगार के अवसर सृजित कर पाया है। पिछले पांच वर्षों से बेरोजगारी दर और श्रम भागीदारी दर दोनों की हालत खस्ता रही है और पिछले दो वर्षों में यह और खराब हो गई है। अगर टीएफआर रुझान सही है तो भारत आबादी का लाभ उठाने में स्पष्ट रूप से असफल रहा है।
