वर्ष 2021 समाप्त होने जा रहा है, इसलिए कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है। इनमें सबसे प्रमुख कोविड है। लेकिन एक अन्य मुद्दा जो बीते एक साल में भारत की अवचेतना में प्रमुख रहा, वह चीन है।
चीन बहुत से तरीकों से अपनी धौंस दिखा रहा है। निस्संदेह सीमा का घटनाक्रम पूरी तरह बाहर नहीं आया है, जिस पर अभी भारतीय संसद ने भी चर्चा नहीं की है। सरकार ने इस मुद्दे पर बजट सत्र में चर्चा का वादा किया था। साल खत्म होने को है, लेकिन देश को अभी सरकार की तरफ से यह नहीं बताया गया है कि चीन ने कितने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। क्या भारत के कुछ ऐप पर रोक लगाने की जवाबी कार्रवाई चीन सरकार को अपने आक्रामक सैन्य रुख से रोक पाई है और भारत को आरसेप से बाहर रहने से कितना फायदा हुआ है।
लेकिन एक चीज साफ है। श्रीलंका, मालदीव या नेपाल के मामले में भारत धीरे-धीरे ही सही मगर लगातार वह जमीन हासिल कर रहा है, जो उसने चीन को गंवा दी थी। यह दो रणनीतियां अपना रहा है- टेलीविजन एंकरों की अनुचित सलाह की अनदेखी कर रहा है और न केवल भारत के निकट पड़ोसी देशों की सरकारों बल्कि वहां के लोगों का भी दिलो-दिमाग जीतने के लिए ईमानदारी से कोशिश कर रहा है।
वर्ष 2015 हाल के वर्षों में भारत-नेपाल संबंधों में सबसे खराब वर्ष रहा है। उस समय प्रधानमंत्री ने पदभार संभाला ही था और उनकी काठमांडू की पहली यात्रा के दौरान जन प्रतिनिधियों को उनके संबोधन ने नेपाली जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया था। हालांकि उसके बाद सब कुछ ठीक नहीं रहा। वर्ष 2015 में आर्थिक नाकेबंदी और भारत के 2015 के संविधान को स्वीकार करने में दृढ़ निश्चय के अभाव ने वहां के जनमत को भारत के खिलाफ बना दिया। यह चीन के लिए फायदेमंद था। लेकिन उसके बाद चीन ने भी नेपाली राजनीति में ज्यादा दखल देकर ठीक वही गलती की, जो भारत ने की थी।
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 2019 में नेपाल की अपनी पहली यात्रा में नेपाल को बताया कि उसके बारे में उनका देश क्या सोचता है। वह भी उस देश (नेपाल) को, जिसे कोई अपना उपनिवेश नहीं बना पाया। खबरों के मुताबिक शी ने कहा कि जो कोई चीन को विभाजित करने की कोशिश करेगा, उसे कुचल दिया जाएगा और जो कोई चीन विरोधी गतिविधियों की कोशिश करेगा, उसकी हड्डियां चकनाचूर कर दी जाएंगी। कहने का मतलब यह है कि एक समय था, जब चीन के लोग नेपाल के बहुत से स्कूलों में देखे जा सकते थे। वे स्थानीय लोगों के साथ रहते थे और बच्चों को मंदारिन सिखाते थे। वे लोग अब नेपाल से चले गए हैं। पूरे नेपाल में भोटे (तिब्बती मूल के बौद्धों को कहा जाता है) चुपके-चुपके जमीन खरीद रहे हैं और गुंबा (पूजा स्थल) बना रहे हैं। बाद में वे देश में मधेशियों की तरह एक शक्तिशाली चीन विरोधी ताकत बन जाएंगे।
वर्ष 2017 में नेपाल में 18 घंटे बिजली कटौती होती थी। लेकिन अब वह भारत को बिजली का निर्यात (केवल 39 मेगावॉट लेकिन यह शुरुआत है) करने और पारेषण लाइनों के विकास से अपनी बिजली क्षमता को बढ़ाने की स्थिति में है। यह सही है कि भारत के कालापानी क्षेत्र को नेपाल के नक्शे में शामिल करने को लेकर तनाव है, जिसे पूरे सदन ने मंजूरी दी थी। नेपाल उस क्षेत्र में अपनी 12वीं राष्ट्रीय जनगणना करने के तरीके के बारे में विचार कर रहा है, लेकिन अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किए बिना। अच्छी बात यह है कि भारतीय न्यूज एंकरों को अभी इसकी जानकारी नहीं है। कारोबारी-योगी बाबा रामदेव पिछले महीने काठमांडू में थे और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा ने योग के लिए समर्पित पतंजलि टीवी स्टेशन का उद्घाटन किया। अगर नेपाल के हिंदू राष्ट्र बनने की चर्चा हो रही है तो ऐसा केवल कुछ नेपाली कह रहे हैं। इस सप्ताह सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के सम्मेलन में शरीक होने का आमंत्रण न केवल रामदेव बल्कि हिंदू राष्ट्र के विचार की कटु आलोचक ममता बनर्जी को भी मिला है, जो इसमें शामिल होने के लिए यह आलेख लिखे जाने तक सरकार की मंजूरी का इंतजार कर रही थीं।
श्रीलंका में चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी नहीं बल्कि अदाणी समूह वेस्ट कंटेनर टर्मिनल बनाएगा और पवन एवं नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अहम निवेश करेगा। कोलंबो में भारत के राजदूत हर उस बैठक में मौजूद रहे, जो गौतम अदाणी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ की। इसके बाद कुशीनगर हवाई अड्डे के उद्घाटन हुआ, जिसमें सांसद और प्रधानमंत्री के बेटे नमल राजपक्षे मुख्य अतिथि थे। इसके बाद लंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने चुपके से दिल्ली की यात्रा की। जब श्रीलंका के पास महज तीन सप्ताह के आयात की विदेशी मुद्रा थी तो उसने चीन या आईएमएफ के बजाय भारत का रुख किया। इतिहास में पहली बार भारतीय सेना की एक यूनिट ने श्रीलंकाई सेना की गजाबा रेजिमेंट की एक यूनिट की सह-बटालियन बनने के लिए करार किया है। संयोग से गजाबा रेजिमेंट राष्ट्रपति की रेजिमेंट है।
मालदीव की एक अदालत द्वारा विपक्षी नेता अब्दुल्ला यामीन (जो चीन का पथ प्रदर्शक थे) को भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त किए जाने के बाद भारत इस पड़ोसी देश के घटनाक्रम पर नजर रखेगा। भाजपा में बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनका मानना है कि वे विदेश मंत्री एस जयशंकर का काम ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते थे। जयशंंकर भाजपा में आने वाले नए व्यक्ति हैं। विदेश मंत्री ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान प्रचलित विनम्रता को छोड़कर भारत की मानवाधिकार नीति के डेमोक्रेटिक आलोचकों को आड़े हाथ लेते समय शायद महसूस किया होगा कि इसका ज्यादा हर्जाना चुकाना पड़ रहा है। लेकिन कम से कम उपमहाद्वीप में शांति और संतुलन है।
