सरकार ने कोयला ब्लॉक को निजी क्षेत्र के लिए उपलब्ध कराने का जो निर्णय लिया था, उस दिशा में सफर पिछले सप्ताह कामयाबी के साथ शुरू हुआ। सरकार को इसके लिए उत्सुक और सुग्राही प्रत्याशी मिलने लगे हैं। केंद्र सरकार द्वारा घोषित आर्थिक सुधार पैकेज के एक हिस्से के रूप में यह उपलब्धता नई सरलीकृत प्रक्रियाओं के अधीन डिजाइन की गई है। जो 38 कोयला ब्लॉक नीलामी के लिए प्रस्तुत थे उनमें से 19 की नीलामी हो गई है। नए नियमों के तहत तमाम तरह के निजी कारोबारी इनमें अपनी रुचि जाहिर कर सकते थे। जिनके पास कोई पुराना अनुभव नहीं था उन्हें भी कोयले की वाणिज्यिक बिक्री की अनुमति दी गई। किसी खास संयंत्र या कारोबार की जरूरत के लिए कच्चे माल के रूप में कैप्टिव माइन (निजी खदान) की अनुमति भी इसमें शामिल थी। सरकार अगले वर्ष के आरंभ में नीलामी के एक और दौर का प्रयास कर सकती है। गत पखवाड़े मिली आंशिक सफलता ने सरकार के इस विचार को भी मजबूती दी है कि वह अपने नियंत्रण वाले अन्य बड़े खनिजों के खनन के लिए भी नए सिद्धांत पेश कर सके।
सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के पुराने एकाधिकार को तोडऩा सही कदम है। ऐसा करने से संसाधनों के क्षेत्र में निवेश के नए माध्यम भी सामने आ रहे हैं। यह आवश्यक है कि सरकारी क्षेत्र की निरंतर मौजूदगी को देखते हुए इस क्षेत्र में समुचित बाजार उभरे जो व्यापक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल सुनिश्चित हो सके। परंतु ऐसे व्यापक क्षेत्र के विकास का एक अहम घटक अब भी नदारद है और वह है कोयला क्षेत्र या खनन क्षेत्र के लिए एक समुचित नियामक का होना। किसी सशक्त स्वतंत्र नियामक के अभाव में निजी क्षेत्र की भागीदारी और निजी-शासकीय प्रतिस्पर्धा एक त्रासद स्थिति का निर्माण करेगी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की महत्ता से हम सभी अवगत हैं कि कैसे ये दोनों नियामक उन क्षेत्रों की निगरानी कर रहे हैं जहां निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच प्रतिस्पर्धा है। इससे पता चलता है कि ऐसे कारोबार में स्वतंत्र नियामक की कितनी अहम भूमिका है?
इतिहास को देखते हुए यकीनन संसाधनों के खनन के क्षेत्र में ऐसे स्वतंत्र नियामक की और भी अधिक आवश्यकता है। इसलिए भी क्योंकि यह क्षेत्र नागरिक उड्डयन और दूरसंचार क्षेत्र से एकदम अलग है। खनन, पर्यावरण को कई तरह से प्रभावित करता है। यह लोगों के जीवन, उनकी आजीविका और स्थानीय समुदायों की जीवनशैली को भी प्रभावित कर सकता है। कुछ मामलों में तो लोगों को विस्थापित भी होना पड़ता है। नियामक को इतना अधिकार होना चाहिए कि वह इन तथा अन्य मसलों को हल कर सके तथा वैज्ञानिक तरीके से खनन सुरक्षित कर सके। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि खनन लाइसेंस धारक अपने लिए निर्धारित इलाके में ही खनन करें। देश में जिंस कारोबार में उछाल के दौरान खनन गतिवधियों को ध्यान में रखें तो भी यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में एक राष्ट्रीय प्राधिकार आवश्यक है।
उदाहरण के लिए जब चीन से लौह अयस्क की मांग अधिक थी तब बिना किसी नियामकीय प्रतिरोध के रियायतग्राहियों ने नियम तोड़े थे। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने सन 2000 के दशक में जिंस कीमतों में उछाल के दौर में अवैध खनन पर एक कड़ी रिपोर्ट लिखी थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में अवैध खनन, विभिन्न राज्यों के बीच मालवहन, लाइसेंसी दावों से परे विस्तार और पर्यावरण को क्षति आदि तमाम बातों का उल्लेख किया था। भारत ऐसे अहम और संवेदनशील क्षेत्र में यदाकदा निगरानी के भरोसे नहीं रह सकता। इस क्षेत्र में एक स्वतंत्र नियामक की आवश्यकता लंबे समय से है। सरकार को पहली प्राथमिकता के साथ यह नियुक्ति करनी चाहिए।
