चॉकलेट बाजार की जानी-मानी कंपनी कैडबरी अब डार्क चॉकलेट के सेगमेंट में उतरने की कोशिश कर रही है। मुमकिन है कि बाजार में आयातित चॉकलेट की मांग बढ़ने की वजह से ही कैडबरी ने ऐसा फैसला किया हो।
कैडबरी ने हाल ही में खूबसूरत पैकेजिंग के साथ 75 रुपये की कैडबरी बॉर्नविले फाइन डार्क चॉकलेट को बाजार में उतार कर, डार्क चॉकलेट के सेगमेंट में आने की घोषणा कर दी है।अगर पुराने दौर को याद करें तो चॉकलेट बनाने वाली कंपनी कैडबरी के लिए वर्ष 2003 तक तो सब कुछ मीठा-मीठा सा ही रहा।
लेकिन उसके बाद ही कैडबरी की चॉकलेट में कीड़े पाए जाने की शिकायत मिलने से उनकी चॉकलेट की बाजार में चमक फीकी पड़ गई। रात भर में ही भारत में कैडबरी का मार्केट शेयर 73 फीसदी से कम होकर 69.9 प्रतिशत रह गया।कैडबरी का मार्केट शेयर फिलहाल 71 फीसदी पर है।
पहले के मुकाबले यह केवल दो फीसदी ही कम है। अब तो कैडबरी ने चॉकलेट के दीवानों को लुभाने के लिए बेहतर पैके जिंग के साथ चॉक लेट देना शुरू किया है। अगर कीमतों की बात करें तो कैडबरी अब आपको 1 रुपये की कैडबरी एक्लेयर्स से लेकर 145 रुपये और 155 रुपये के सेलीब्रेशन गिफ्ट पैक भी उपलब्ध करा रही है।
दूसरा मौका है ये
बॉर्नविले लगभग 30 सालों से मुल्क में मौजूद थी लेकिन यह दूसरा मौका है जब इसे फिर से पेश किया जा रहा है। कैडबरी के संजय पुरोहित का कहना है, ‘हमें यह आभास हुआ है कि इसकी मार्केटिंग ठीक तरह से नहीं की गई और न ही इसका कोई प्रचार-प्रसार किया गया। इसीलिए अब हम इसे एक नए रंग में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।’
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम के जरिए कैडबरी ने आयात करके चॉकलेट बनाने वालों को एक अच्छा जवाब दिया है।मशहूर रिटेल आउटलेट मसलन स्पेन्सर्स और फूड बाजार में आयातित चॉकलेटों की बिक्री जबरदस्त तरीके से से होती है।
इन चॉकलेटों की कीमतें भी भारत में बनने वाले चॉकलेटों के बराबर ही है। स्पेन्सर्स रिटेल के वाइस प्रेसीडेंट(मार्केटिंग) समर सिंह शेखावत का कहना है, ‘स्पेन्सर्स में तो भारत में बनने वाली चॉकलेट और आयात की गई चॉकलेटों की बिक्री भी समान ही है।’ इसी तरह से फूड बाजार में बिकने वाली कुल चॉकलेटों में से 45 फीसदी हिस्सा आयात की गई चॉकलेटों की बिक्री का ही होता है।
सेठी का कहना है, ‘आजकल केवल बेहतरीन मानी जाने वाली स्विस और बेल्जियन चॉकलेटों की मांग ही नहीं बढ़ रही है बल्कि ऑस्टे्रलिया और श्रीलंका की चॉकलेटों की भी मांग बढ़ रही है। इसके अलावा भारतीय बाजार में दक्षिण एशिया से आयात की गई चॉकलेट भी पैठ बना रही है।’
फूड बाजार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सदाशिव नायक का कहना है, ‘अब आप इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य आयातित चॉकलेटों से अच्छा मुनाफा मिल रहा है जबकि स्थानीय तौर पर बनी चॉकलेट बहुत कम कारोबार कर पा रही हैं। ऐसे में घरेलू चॉकलेट कंपनियों के लिए आधुनिक कारोबारी गतिविधियों को बढ़ाना फायदेमंद होगा।’ नायक का कहना है, ‘उपभोक्ताओं को वही चीज भाती है जो अलग तरीके से बनाई गई हो।’
कौन हैं प्रतियोगी
कैडबरी के लिए यह चिंता की बात हो सकती है कि देश में इस सेगमेंट के कई विदेशी खिलाड़ी अपने ब्रांड को लॉन्च कर रहे हैं। इस साल सितंबर में मार्स स्निकर्स ने देश में टीवी पर अपना विज्ञापन देना शुरू किया।
हालांकि चॉकलेट बार देश में नहीं बनाया जाएगा लेकिन कंपनी ने यहां बाजार में अपनी पैठ बनाने के लिए मार्केटिंग टीम तैयार की है। हालांकि पुरोहित इस बात से असहमति जताते हुए कहते हैं, ‘जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है वैसे ही प्रतियोगिता भी बढ़ रही है। अगर आयातित चॉकलेटों की बात करें तो भारत में अब भी इसका मार्केट शेयर महज 1 फीसदी है।’