केंद्रीय वित्त मंत्रालय अगले वित्त वर्ष का बजट तैयार करने की प्रक्रिया में लगा है जिसे दो महीने से भी कम समय में पेश किया जाना है। चालू वर्ष के लिए राजस्व की स्थिति काफी अच्छी है लेकिन सरकार व्यय में काफी इजाफा करना चाहती है। उसने संसद से अलग-अलग मदों में 3.74 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि खर्च करने की मंजूरी मांगी है। हालांकि वास्तविक रूप से व्यय होने वाली राशि कम रहेगी क्योंकि अन्य मदों में राशि की बचत हुई है। फिलहाल यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि आखिर घाटे को किस हद तक बढ़ाया जाएगा और सरकारी उधारी की जरूरतों में कितना इजाफा होगा। कुल उधारी आवश्यकता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि वर्ष की बची हुई अवधि में राजस्व की स्थिति कैसी रहती है और सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य में किस हद तक कामयाब रहेगी।
चालू और अगले वित्त वर्ष के राजकोषीय आकलन के अलावा यह देखना भी महत्त्वपूर्ण होगा कि सरकार कर सुधार के मोर्चे पर किस प्रकार आगे बढ़ती है ताकि मध्यम अवधि में अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत कर सके। वस्तु एवं सेवा कर के संदर्भ में बात करें तो केंद्र अकेले उसमें बदलाव नहीं कर सकता इसलिए राज्यों के मंत्रियों का एक समूह गठित किया गया है ताकि कर संग्रह सुधार के लिए दरों को तार्किक बनाने की संभावना तलाशी जा सके। केंद्रीय बजट में प्रत्यक्ष कर पर ध्यान दिया जाएगा और सरकार आय कर को और अधिक सहज बनाकर सुधारों की प्रक्रिया को आगे ले जा सकती है। सरकार को वह भेद समाप्त करना चाहिए जो अभी श्रम और पूंजी के माध्यम से होने वाली आय पर कर लगाने में दिखता है। विभिन्न प्रकार के निवेश से होने वाली आय के साथ भी अलग-अलग व्यवहार होता है और इस भेद को भी समाप्त किया जाना चाहिए। समस्त आय पर कम दर पर कर लगाया जा सकता है।
इससे न केवल कर ढांचा सहज होगा बल्कि व्यवस्था की विसंगतियां भी दूर होंगी जो व्यक्तिगत परिसंपत्ति आवंटन को प्रभावित करती हैं। निवेश हमेशा व्यक्तिगत जोखिम के आधार पर किया जाना चाहिए, निवेश करते समय योजना तथा परिसंपत्ति आवंटन की समझ होनी चाहिए। निवेश से जुड़े निर्णय इस बात से तय नहीं होने चाहिए कि एक खास योजना पर किस तरह कर लगाया जाता है। कराधान की बात करें तो अक्सर यह दलील दी जाती है कि शेयरों में किए जाने वाले निवेश पर डेट में होने वाले निवेश की तुलना में अलग तरह से कर लगाया जाना चाहिए क्योंकि दोनों तरह के निवेश में जोखिम अलग-अलग होता है। परंतु निवेश करने वालों को घाटे की भरपाई करने की अनुमति देकर भी जोखिम के पहलू का निराकरण किया जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि शेयर में किए जाने वाले निवेश को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है और ज्यादा कर लगाने से निवेशक हतोत्साहित होंगे। परंतु लगता नहीं कि दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर ने शेयर बाजार को प्रभावित किया है। इसके विपरीत फंडों की आवक ने भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन अन्य समकक्ष बाजारों की तुलना में काफी अधिक बढ़ाया है।
निवेश से आय पर कम कर लगाने से कर राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी। अमीर नागरिकों को उनकी आय का बड़ा हिस्सा परिसंपत्तियों से मिलता है और उन्हें कर रियायत की आवश्यकता नहीं है। सरकार को रियायतों की भी समीक्षा करनी होगी। सरकार ने बिना रियायत के कम कर दर का विकल्प दिया है लेकिन पूरी प्रक्रिया को सहज बनाने की आवश्यकता है। रियायतों से भी आबादी के उसी हिस्से को लाभ मिलता है जो बेहतर स्थिति में है। इससे न केवल कर व्यवस्था सहज होगी बल्कि राजस्व और समता दोनों बढ़ेंगे। हालांकि सुधार कर राजस्व बढ़ाने का केवल एक पहलू है। सरकार को कर आधार बढ़ाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर व्यक्ति अपने हिस्से का कर चुकाए।
