शेयर बाजार के ताजा उछाल से ज्यादातर लोग और मैं भी आश्चर्यचकित हूं और यह स्वीकार करने वाला मैं पहला व्यक्ति हूं।
निश्चित रूप से ज्यादा बिकवाली से बाजार जिस तरह का हो गया था, हम मंदी के इस बाजार में थोड़े-बहुत उछाल की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कोई भी इस तरह के उछाल की उम्मीद नहीं कर रहा था, जैसा कि हम देख रहे हैं।
पिछले छह हफ्ते में शेयर बाजार की चाल 35 फीसदी से ज्यादा तेज हुई है और इसने मंदड़ियों को भी अपना जोखिम कम करने और इस तरफ नजर फेरने के लिए बाध्य किया है। इसके अलावा जैसे-जैसे गिरावट का दौर खत्म हुआ तो प्रतिशत के हिसाब से इसकी चाल सबसे ज्यादा रही, ऐसे में इस बात पर चिंतन करने की जरूरत आ पड़ी है कि आखिर हो क्या रहा है।
इस उछाल से लोग परेशान भी हुए हैं क्योंकि ज्यादातर इसमें पूरी तरह हिस्सा नहीं ले पाए, या तो उन्होंने कम निवेश किया या कम जोखिम वाले सेक्टर और शेयरों में उन्होंने निवेश किया। इस डरावने अहसास को दरकिनार कर दिया गया है और कुछ पर्यवेक्षक अब भी बाजार में उछाल की बात कर रहे हैं।
सवाल यह है कि अब हमें क्या करना चाहिए? अगर आपने कम निवेश किया है तो क्या आपको बाजार का पीछा करना चाहिए? या उछाल के इस दौर में हम वैसे शेयर पर दांव लगाएं जो हम मंदी के बाजार में नहीं खरीद पाए थे? भारत और वैश्विक दोनों बाजार फिलहाल मंथन के दौर से गुजरते हुए दिख रहे हैं, जहां वह थोड़े समय तक रुकेंगे, सांस लेंगे और हम तेजड़िये और मंदड़िये के बीच संघर्ष देखेंगे।
मैं महसूस करता हूं कि अभी हमें पूंजी बचाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, न कि बाजार का पीछा करते हुए अतिरिक्त जोखिम उठाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर भारत में आपका महत्त्वपूर्ण निवेश है, जैसा कि हम करते हैं तो फिर मेरे विचार से इस समय जोखिम को दोगुना करने की दरकार नहीं है।
कितनी रकम अब भी बची हुई है इसे छोड़ भी दें तो निफ्टी 2500 के स्तर पर वापस नहीं आ सकता, लेकिन छोटी अवधि में मैं इसमें और आगे बढ़ने की संभावना नहीं देख रहा हूं। फिलहाल यहां चुनाव हो रहे हैं और कम से कम छह नेता प्रधानमंत्री की दौड़ में हैं। कौन सरकार बनाएगा, यह निश्चित नहीं है, लेकिन लग रहा है कि तीन में से एक गठबंधन सत्ता संभालेगा।
मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो ये समझते हैं कि राजनीति का कोई महत्त्व नहीं है। उन्हें इसका महत्त्व समझ में नहीं आया होगा जब विश्व की विकास दर 4-5 फीसदी थी और पिछले सुधार के फायदे व जोखिम के बावजूद हवा का रुख अपनी ओर होने की वजह से भारत 8 फीसदी से ज्यादा विकास दर पाने में कामयाब रहा था।
हालांकि आज इसका महत्त्व है क्योंकि दुनिया भर में मंदी छाई हुई है, ऐसे में हमारे पास संरचनात्मक राजकोषीय मुद्दे हैं और वक्त है कठिन आर्थिक फैसले लेने का। भारत के पास पर्याप्त नीति है कि इसकी विकास दर उच्चस्तर पर भी बरकरार रह सकती है। लेकिन क्या हमें नीतियों में सुधार देखने को मिलेगा?
मूल्यांकन में बढ़ोतरी का एक ही रास्ता है, अगर हमें मजबूत नीतिगत क्रियाकलाप देखने को मिले। चाहे कोई भी गठबंधन सरकार बने और चाहे कोई भी प्रधानमंत्री बने, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हमें जरूरत के मुताबिक नीतिगत क्रियाकलाप की खुराक मिलेगी। इस बात की संभावना कम नहीं है कि हमें एक ऐसी कमजोर और अप्रभावी सरकार मिले जो अपना कार्यकाल भी पूरा न कर पाए। ऐसा परिणाम सही मायने में ठीक नहीं होगा।
दूसरी बात यह है कि वर्तमान स्तर पर बाजार मार्च 2010 की आय के हिसाब से 13-14 गुना ज्यादा है, जो कि वास्तव में सस्ता नहीं है। मिडकैप में हमें कई ऐसी कंपनियां मिल जाएंगी जिनकी कीमतें उचित हैं, लेकिन स्पष्ट तौर पर बड़ी कंपनियों के मामले में ऐसा नहीं है। ये इतनी सस्ती नहीं हैं कि सचमुच का तेजड़िया बाजार यहां से शुरू हो सके।
कमाई के मामले में हम गलत हो सकते हैं, जो कि ऊपर की तरफ आश्चर्यचकित कर सकता है और वर्तमान में बाजार जैसा दिख रहा है, वहां से यह और सस्ता हो सकता है। इस विचार को हम कॉरपोरेट इंडिया की वास्तविक आय की शक्तियों के सबूत से जांच सकते हैं। इस चक्र में हममें से ज्यादातर लोगों ने दीर्घावधि की आय के संबंध में जांच नहीं की है।
पिछले कारोबारी चक्र में ज्यादा पाने वाले निवेशक निश्चित रूप से अब सतर्क होना चाह रहे होंगे और आज दीर्घावधि की आय के बारे में आकलन कर रहे होंगे। तीसरी बात यह है कि अगर बाजार इस स्तर पर टिका रहता है तो बड़ी संख्या में शेयर जारी होंगे। छोटी अवधि के लिए ही सही, बाजार में बाढ़ आ जाएगी और बाजार पूंजीकरण भी ऊपर की तरफ जाएगा।
पिछले 15 महीने से कॉरपोरेट इंडिया शेयर पूंजी से इनकार करती रही है और विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी संरचना के सही होने का इंतजार कर रही है। संभावित शेयर इतना ज्यादा होगा कि बाजार से बाहर रही पूंजी यह अच्छी तरह से सोख लेगा।
इस उछाल की एक और विशेषता यह है कि इसमें वैसे शेयर और सेक्टर शामिल रहे हैं जिसकी सबसे ज्यादा पिटाई हुई थी। जिस मंदडिये बाजार की हम बात कर रहे हैं, वह साफ-सफाई और नेतृत्व परिवर्तन के मकसद को पूरा करता है। यह पूरी तरह नामुमकिन है कि जिस शेयर और सेक्टर की बदौलत साल 2007 में बाजार में उछाल आया था, वह एक बार फिर बाजार को नेतृत्व देगा जब हम दीर्घावधि वाले बढ़त के दौर में प्रवेश कर रहे हों।
इस उछाल में जिन शेयरों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमें अभी भी छोटी अवधि के खिलाड़ी और शॉर्ट कवरिंग का ही बोलबाला है। ऐसे स्टॉक और सेक्टर की चाल यह संकेत नहीं दे पा रहे हैं कि दीर्घावधि के तेजड़िये बाजार की शुरुआत हो गई है। उपरोक्त सभी कथनों के बावजूद वास्तविकता यह है कि बाजार से बाहर अभी भी बड़ी रकम पड़ी हुई है और उनमें मजबूती से बाहर ही रहने का माद्दा नजर आ रहा है।
यह भी नामुमकिन है कि बाजार उस स्तर पर वापस जाएगा जैसा कि हमने मार्च की शुरुआत में देखा था और हो सकता है कि वह निचला स्तर हो। गिरावट के अगले दौर में बाजार से बाहर पड़ी रकम बाजार में आएगी और निफ्टी को वापस 2500 के स्तर पर जाने से रोकेगी। मेरा मानना है कि बाजार में हम समय-समय पर करेक्शन देखेंगे।
कीमतों में कमी का सिलसिला पूरा हो गया है, लेकिन इस चाल पर हमें थोड़े समय नजर रखने की जरूरत है। बाजार छोटे दायरे में कारोबार करेगा और उतार-चढ़ाव में कमी आएगी। अंतत: छोटी अवधि में तरलता ही बाजार का संचालन करता है और हमें यह जोखिम उठाना ही होगा कि उभरते हुए बाजार में शेयरों का बहाव जारी रहेगा और यह आगे बढ़ेगा।
बाजार की चाल की खोज में संपत्ति का आवंटन करने वाले ढेर जमा कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में उनके दृढ़ विश्वास के बावजूद निवेशकों को खरीदने के लिए बाध्य किया जाएगा। अगर वैश्विक बाजार में बढ़त जारी रही तो लंबी अवधि के वैसे निवेशकों का आत्मसमर्पण देख सकते हैं जो आज की तारीख में बाहर बैठे हैं और उन्हें सहभागी बनने के लिए बाध्य किया जाएगा।
अगले कुछ हफ्ते एसऐंडपी-500 में 850-860 का स्तर संकटपूर्ण है। भारत में मैं अब भी महसूस करता हूं कि हम चुनाव संपन्न होने तक इंतजार कर सकते हैं और उसके बाद ही फैसला लें। मैं इस समय बाजार का पीछा नहीं कर सकता। मुझे लगता है कि फिलहाल इस स्तर पर आगे बढने के बजाय पूंजी को बचाए रखना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
