सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि हाल के समय में औद्योगिक श्रमिकों के रोजगार में काफी सुधार हुआ है। ये वेतनभोगी कर्मचारी हैं जो औद्योगिक श्रमिकों के रूप में काम करते हैं। ये आमतौर पर फैक्टरी में काम करते हैं। आंकड़ों में कारखानों में काम करने वाले दैनिक वेतनभोगी श्रमिक शामिल नहीं हैं लेकिन अनुबंधित श्रमिक इसमें शामिल हैं। इसमें कारखानों के कर्मचारी और प्रशिक्षक, प्लांट ऑपरेटर, असेंबलर और असेंबली लाइन में काम करने वाले, मिल श्रमिक, खदान कर्मी, औद्योगिक मशीन संचालक और औद्योगिक उपकरण ऑपरेटर आदि शामिल होते हैं। बंदरगाहों में काम करने वालों को भी औद्योगिक श्रमिक माना गया है। ये अपेक्षाकृत अच्छे काम होते हैं, इसलिए हाल के दिनों में इनकी तादाद में बढ़ोतरी प्रसन्न करने वाली घटना है।
सीपीएचएस में पेशे की प्रकृति के हिसाब से रोजगार को अलग-अलग करने पर यह उभरता रुझान सामने आया। आकलन की आवृत्ति चार माह की अवधि की है जिसे वेव कहते हैं। इस दौरान सीपीएचएस का 178,600 परिवारों पर आधारित सर्वे किया गया। ऐसे सर्वेक्षण के आंकड़े यह अनुमति देते हैं कि इनकेआधार पर वैसा अनुमान लगाया जा सके जो सीपीएचएस के मासिक नमूने के साथ संभव नहीं है। मासिक नमूने में केवल 44,500 परिवार शामिल होते हैं। ताजा सीपीएचएस वेव जनवरी-अप्रैल 2022 के दौरान हुई। इसके आंकड़े बताते हैं कि सितंबर-दिसंबर 2021 की पिछली वेव की तुलना में औद्योगिक श्रमिकों की तादाद 4.4 प्रतिशत बढ़ी। सितंबर-दिसंबर 2021 की वेव में औद्योगिक कर्मियों की तादाद में 11 फीसदी का इजाफा हुआ था। रोजगार में यह इजाफा अहम है। इसके अलावा बीती दो वेव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इस दौरान यह कोविड के पहले के समय से अधिक स्तर पर रहा।
औद्योगिक श्रमिकों का रोजगार जनवरी-अप्रैल 2019 में शीर्ष स्तर पर था। यह कोविड के कारण लगने वाले लॉकडाउन से एक वर्ष पहले की बात है। उस लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया था। जनवरी-अप्रैल 2019 की वेव में 1.94 करोड़ श्रमिक इस क्षेत्र में रोजगारशुदा थे। इसके बाद गिरावट का सिलसिला शुरू हुआ। मई-अगस्त 2019 में इस क्षेत्र में श्रमिकों की तादाद घटकर 1.92 करोड़ और सितंबर-दिसंबर 2019 में 1.91 करोड़ रह गई। जनवरी-अप्रैल 2020 की अगली सीपीएचएस वेव पहले लॉकडाउन से आंशिक तौर पर प्रभावित थी। इस वेव के दौरान औद्योगिक श्रमिकों का रोजगार घटकर 1.87 करोड़ रह गया। लॉकडाउन का पूरा असर मई-अगस्त 2020 की वेव में नजर आया जब औद्योगिक श्रमिकों में से करीब एक तिहाई ने रोजगार गंवा दिया और उनकी तादाद घटकर 1.42 करोड़ रह गई। यह आंकड़ा जनवरी-अप्रैल 2019 के उच्चतम स्तर से 52 लाख कम था।
अधिकांश सुधार बाद वाली दो वेव में हुआ। मई-अगस्त 2021 तक औद्योगिक श्रमिकों का रोजगार दोबारा बढ़कर 1.84 करोड़ हो गया। अगली वेव में यानी सितंबर-दिसंबर 2021 तक औद्योगिक श्रमिकों का रोजगार और सुधरकर 2.05 करोड़ पहुंच गया। यह आंकड़ा 1.94 करोड़ के पिछले उच्चतम स्तर से 10 लाख अधिक था। जनवरी-अप्रैल 2022 में इसमें 10 लाख का और इजाफा हुआ और इनकी तादाद बढ़कर 2.14 करोड़ पहुंच गई। यह पिछले उच्चतम स्तर से 20 लाख अधिक था। सीपीएचएस के आंकड़ों में जो 2.14 करोड़ औद्योगिक श्रमिक नजर आते हैं उनमें संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों के श्रमिक शामिल हैं। तुलना के लिए संगठित क्षेत्र के औद्योगिक श्रमिकों की तादाद 2018-19 में 1.28 करोड़ थी (ताजा आंकड़े इसी वर्ष के उपलब्ध हैं)। सीपीएचएस के अनुसार उसी वर्ष संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक कुल मिलाकर 1.81 करोड़ रहे। प्रथम दृष्ट्या यह लगता है कि असंगठित क्षेत्र में 2018-19 में 53 लाख वेतनभोगी औद्योगिक श्रमिक शामिल हुए।
औद्योगिक क्षेत्र के रोजगारों में केवल औद्योगिक श्रमिक शामिल नहीं होते। इनमें प्रबंधक, कार्यालयों में काम करने वाले और दैनिक वेतनभोगी श्रमिक भी शामिल होते हैं। सीपीएचएस के अनुसार जनवरी-अप्रैल 2020 के दौरान औद्योगिक क्षेत्र में 9.96 करोड़ लोग रोजगारशुदा थे। यानी वेतनभोगी औद्योगिक श्रमिक कुल रोजगारशुदा लोगों का केवल 21.5 फीसदी थे। परंतु यह कम हिस्सेदारी इसलिए कि औद्योगिक क्षेत्र में करीब 60 फीसदी रोजगार विनिर्माण गतिविधियों में है। इसमें ज्यादातर दैनिक वेतनभोगी शामिल हैं। वेतनभोगी औद्योगिक कामगारों की तादाद में हुई वृद्धि गैर विनिर्माण औद्योगिक गतिविधियों में इजाफे का प्रतिबिंब है। इसमें निर्माण, खनन और उपयोगिता क्षेत्र आते हैं। व्यापक तौर पर ये वही क्षेत्र हैं जो आधिकारिक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में नजर आते हैं। परंतु आईआईपी मोटे तौर पर संगठित क्षेत्र तक सीमित है जबकि सीपीएचसी संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों तक विस्तारित है।
सीपीएचएस में जो औद्योगिक श्रमिकों के रोजगार में जो वृद्धि नजर आती है और आईआईपी में जो वृद्धि नजर आती है उनमें सकारात्मक सह संबंध है। आईआईपी और सीपीएचएस आधारित वेतनभोगी औद्योगिक श्रमिकों के रोजगार की सालाना वृद्धि से यही संकेत मिलता है कि सीपीएचएस आधारित वृद्धि अधिक अस्थिर है। 2021-22 में आईआईपी ने 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की। मोटे तौर पर औद्योगिक श्रमिकों के रोजगार में तदनुरूप वृद्धि 24.4 फीसदी के साथ दोगुनी से अधिक थी। सन 2020-21 में जहां आईआईपी में 8.5 फीसदी की गिरावट आई वहीं वेतनभेगी औद्योगिक श्रमिकों का रोजगार अधिक तेजी से यानी 16 फीसदी गिरा। प्रथम दृष्ट्या इससे यही संकेत निकलता है कि असंगठित औद्योगिक क्षेत्र में 2020-21 में तेज गिरावट आयी और 2021-22 में उसमें इसी अनुरूप तेज सुधार देखने को मिला। लेकिन दोनों आंकड़ों का अध्ययन बताता है कि 2021-22 में औद्योगिक क्षेत्र में मजबूत सुधार नजर आ रहा है।
