प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम में संशोधन की घोषणा की। उन्होंने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के कुछ अन्य पहलुओं पर भी बात की। सबसे अहम घोषणा में प्रधानमंत्री ने कहा कि उदार टीका नीति के माध्यम से राज्यों के विकेंद्रीकृत रूप से टीके खरीदने संबंधी प्रयास को बदला जा रहा है। नीति के तहत कुछ राज्यों ने वैश्विक निविदा के जरिये टीके खरीदने का प्रयास किया था लेकिन विदेशी टीका निर्माता कंपनियों ने कहा कि वे केवल केंद्र सरकार के साथ ही बातचीत करेंगी। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि आगामी 21 जून से उपलब्ध टीकों का 75 फीसदी केंद्र सरकार खरीदेगी जबकि शेष 25 फीसदी टीके निजी क्षेत्र को बेचे जाएंगे। केंद्र सरकार द्वारा खरीदे गए टीके राज्य सरकारों को वितरित किए जाएंगे और सरकार द्वारा लगाए जाने वाले सभी टीके फिर चाहे वे 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए हों या 18 से 44 वर्ष के लिए, नि:शुल्क लगाए जाएंगे।
केंद्रीकृत खरीद की वापसी अच्छा कदम है क्योंकि यह स्पष्ट है कि यह खरीद का सबसे किफायती तरीका होगा। परंतु इस सवाल का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है कि इन टीकों का राज्यों के बीच वितरण किस प्रकार किया जाएगा। यह अत्यंत जटिल प्रश्न है। प्रधानमंत्री ने यह जरूर कहा कि राज्यों को दिए जाने वाले टीकों के बारे में अग्रिम सूचना दे दी जाएगी लेकिन इसके लिए पारदर्शी और निष्पक्ष फॉर्मूले की जरूरत है। इसके लिए राज्य सरकारों के साथ सहमति तैयार करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि आपूर्ति की कमी एक बड़ी समस्या है और ऐसे में वितरण का सवाल काफी अहम हो जाता है। यह निश्चित नहीं है कि केंद्र सरकार आपूर्ति के सवाल को कैसे हल करेगी। हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में उन टीकों की भी बात की जो बनने की प्रक्रिया में हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इन संभावित टीकों को नियामकीय मंजूरी कब मिलेगी और वर्ष के अंत तक 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीके लगाने का लक्ष्य हासिल हो सकेगा या नहीं? सरकार का आगामी लक्ष्य होना चाहिए टीकों की आपूर्ति बढ़ाना, टीकों की अतिरिक्त खुराक की उपलब्धता की स्पष्ट समय सीमा तय करना और केंद्र सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले टीकों का राज्यों में वितरण करने की एक पारदर्शी प्रणाली।
प्रधानमंत्री का यह निर्णय भी सराहनीय है कि एक चौथाई टीके निजी क्षेत्र के लिए होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि यह चैनल अक्सर सरकारी माध्यम की कमियों की भरपाई करता है और टीका निर्माताओं के भविष्य के निवेश के लिए जरूरी फंड का अहम जरिया भी है। यह खेद की बात है कि निजी क्षेत्र के लिए टीकाकरण के मामले में 150 रुपये सेवा शुल्क की सीमा तय कर दी गई है। अस्पतालों को आकर्षक सेवा शुल्क वसूलने की इजाजत दी जानी चाहिए ताकि वितरण में निवेश बढ़ सके।
प्रधानमंत्री ने टीकों के बारे में गलत सूचनाओं के सवाल को हल करके भी अच्छा किया लेकिन इस मामले में गंभीर अभियान चलाने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीण इलाकों में टीकों के बारे में फैले भ्रम और टीकों को लेकर हिचकिचाहट दूर की जा सके। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत खाद्यान्न वितरण को दीवाली तक बढ़ाने का निर्णय भी अच्छा है और बताता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की योजनाओं के जरिये केंद्र सरकार इस क्षेत्र में व्यापक पहुंच रखती है। मिसाल के तौर पर लोगों को टीके के बारे में शिक्षित करने को खाद्यान्न वितरण प्रणाली से जोड़ा जा सकता है। भ्रामक सूचनाओं से निपटने के लिए अन्य नए विचार भी तलाश करने होंगे।
