हाल ही में आई आर. सी. भार्गव समिति की रिपोर्ट को लेकर देश के सातों भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के निदेशक और फैकल्टी चुप्पी साधे हुए हैं।
लेकिन निजी तौर पर एक दूसरे से बातचीत में भी लगे हुए हैं। आईआईएम के एक फैकल्टी सदस्य का कहना है, ‘हम इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि एक पैन यानी एकल आईआईएम बोर्ड कैसे आईआईएम के आंतरिक प्रबंधन के साथ तालमेल बिठा पाएगा? यह समिति की मुख्य सिफारिशों में से एक है। ‘
रिपोर्ट की कुछ बातों को लेकर आईआईएम में भी नाराजगी है। रिपोर्ट में आईआईएम के निदेशकों की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।रिपोर्ट के मुताबिक, ‘निदेशक इन संस्थानों के विकास के लिए कारगर रणनीति नहीं बना पा रहे हैं। इसके अलावा नीतियों को बनाने के लिए उन्हें यह पता नहीं लग पाता कि उन्हें सरकार से मदद लेनी चाहिए या फिर बोर्ड का सहयोग लेना चाहिए। इसके अलावा ये निदेशक जरूरी सहायता या संसाधन मुहैया कराने के लिए भी सरकार को प्रभावित नहीं कर पाते।’
वैसे आईआईएम के निदेशकों ने तो रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से तो मना कर दिया लेकिन अंदरखाने से आ रही खबरों की मानें तो इस रिपोर्ट को लेकर इन संस्थानों में बेहद नाराजगी है। आईआईएम से ही जुड़े एक सूत्र ने तो समिति की रिसर्च को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए जिसके आधार पर रिपोर्ट को अमली जामा पहनाया गया है।
आईआईएम से जुड़े एक सूत्र का कहना है, ‘पुरानी समितियों की ही तरह नई समितियों का भी आईआईएम से कोई सरोकार नहीं रहा। यहां तक कि एक आईआईएम के चेयरमैन की नियुक्ति तो हाल ही में हुई है। हमें इस बात को लेकर संदेह है कि इन सिफारिशों को करने से पहले कोई उचित अध्ययन भी किया गया है।
‘ समिति की कई सिफारिशों को आईआईएम के लिए पचा पाना मुश्किल हो रहा है। उदाहरण के तौर पर फैकल्टी और प्रशासनिक स्टाफ के रहने की व्यवस्था कैंपस से दूर करने की समिति की सिफारिश किसी के भी गले नहीं उतर रही है। आईआईएम से जुड़े एक सूत्र का कहना है, ‘समिति की सिफारिशों से साफ झलकता है कि समिति ने आईआईएम की बुनियादी संरचना और जरूरतों का ध्यान नहीं रखा है। ‘