पंजाब विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि हरित क्रांति के बाद वहां आयी समृध्दि व गहन खेती के प्रचलन से अधिकाधिक मजदूरों की मांग होने लगी।
1960-61 में जहां 21 फसलों की खेती होती थी वह 90-91 में घटकर मात्र 9 रह गयी। अब तो मुख्य रूप से दो ही प्रकार की खेती हो रही है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शिक्षकों के मुताबिक पंजाब में हरित क्रांति से किसानों की समृद्धि में इजाफा हुआ।
पंजाब के किसान कृषि मैनेजर बन गए। वर्तमान में पंजाब के 70 फीसदी किसानों के पास 10 एकड़ से अधिक जमीन है। गहन खेती की शुरुआत के बाद वहां मुख्य रूप से चावल व गेहूं की खेती होने लगी। 2004-05 तक पंजाब की 63.02 फीसदी खेती लायक जमीन पर सिर्फ चावल की खेती होने लगी।
पीएयू के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष कहते हैं, ‘इस साल 26 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की बुआई की जानी है। ऐसे में बाहर के मजदूरों की जरूरत तो पड़ेगी ही।’ प्रवासी मजदूरों पर पंजाब विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक 1981 तक पंजाब में बिहार के मजदूरों की संख्या काफी कम थी। तब वहां हरियाणा के श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक 31 फीसदी थी।
प्रवासी मजदूरों की संख्या में 28 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर था तो हिमाचल प्रदेश के मजदूरों की हिस्सेदारी 14.37 फीसदी थी। उस समय बिहार के मजदूरों की संख्या मात्र 6.43 फीसदी थी। लेकिन समय के साथ बिहार व उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रमिकों की संख्या बढ़ती गयी और अन्य प्रांतों की हिस्सेदारी कम होने लगी।
2001 तक बिहार से आने वाले श्रमिकों की संख्या कुल प्रवासी मजदूरों में 17 फीसदी से अधिक हो गयी थी तो उत्तर प्रदेश के मजदूरों की संख्या 32 फीसदी हो गयी। पीएयू के वरिष्ठ अर्थशास्त्री कहते हैं कि अब तो पंजाब में मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के ही मजदूर बचे हैं। पंजाब के शहरी इलाकों में भी उत्तर प्रदेश व बिहार से आने वाले मजदूरों की संख्या सबसे अधिक है।
40 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश सबसे आगे है तो बिहार 20 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है। 17 फीसदी मजदूरों के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर है। कृषि के कामों में लगे कुल लोगों में प्रवासी मजदूरों की हिस्सेदारी 23 फीसदी है।
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