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  लेख  बिजली नियामक चाहे तो घटा सकता है बिजली बिल
लेख

बिजली नियामक चाहे तो घटा सकता है बिजली बिल

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —March 15, 2009 11:46 PM IST0
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पिछली बार आपने प्याज कब खरीदा था, ये तो मैं नहीं जानता लेकिन बिजली बिल के मुकाबले किसी भी घर के बजट का बहुत ही कम हिस्सा प्याज के नाम पर खर्च होता है।
ऐसे में जब प्याज की कीमतें आसमान पर पहुंचती है तो फिर सरकार क्यों गिर जाती है जबकि बिजली का बिल जब बढ़ता है तो सब कुछ सामान्य रहता है? बिजली के बिल में होने वाली बढ़ोतरी का कुछ हिस्सा ईंधन की कीमतों में इजाफे की वजह से होता है, लेकिन ज्यादातर बढ़ोतरी की वजहें राज्यों द्वारा प्रतियोगिता की इजाजत नहीं देना है।
खुले बाजार में बिजली की कीमतें (दिल्ली केमामले में बीएसईएस) साल 2004-05 के 2.3 रुपये प्रति यूनिट के मुकाबले साल 2007-08 में बढ़कर 4.52 रुपये प्रति यूनिट हो गई है। कुछ हफ्ते पहले 13 रुपये प्रति यूनिट के कारोबार की खबरें आई हैं। फिलहाल यह कुल बजट का 2-3 फीसदी होता है, लिहाजा उपभोक्ता को चुभन नहीं होती।
शायद यही वजह है कि मैंने दो हफ्ते पहले अपने स्तंभ में ओपन एक्सेस पिटिशन की चर्चा की थी। ओपन एक्सेस यानी खुली पहुंच के जरिए कोई भी उपभोक्ता किसी से भी बिजली खरीद सकता है और इसके लागू होने के बाद इस सेक्टर का हाल भी टेलीकॉम जैसा हो जाएगा, जहां प्रतियोगिता बढ़ने केसाथ ही दरें काफी कम हुई हैं। इस याचिका में समस्याएं गिनाई गई हैं।
इसमें कहा गया है कि अगर बिजली पैदा करने वाली कंपनी के पास ज्यादा बिजली होती है तब भी राज्य सरकार उसे राज्य से बाहर बेचने की इजाजत नहीं देती। इसके बदले राज्य सरकार की ट्रेडिंग कंपनी अतिरिक्त बिजली को मोटे मुनाफे  पर बेच देती है।
याचिकाकर्ता ने केंद्रीय बिजली नियामक बोर्ड से इस बाबत हस्तक्षेप करने की मांग की है ताकि अतिरिक्त बिजली की बिक्री की इजाजत राज्य दे सके। यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि यह साफ न हो जाए कि सीईआरसी का न्यायाधिकार क्षेत्र राज्यों तक है या नहीं।
दिल्ली की बीएसईएस मुंबई की टाटा पावर से सीधे बिजली खरीद सकने में सक्षम है (यह बिजली ट्रांसमिशन लाइन के जरिए आएगी और याचिकाकर्ता के मुताबिक यह सीईआरसी के न्यायाधिकार क्षेत्र में है)। लेकिन यह कैसे सुनिश्चित होगा कि दक्षिणी दिल्ली का अंसल प्लाजा मॉल उसी टाटा पावर से बिजली खरीदने में सक्षम हो पाएगी? (दिल्ली-मुंबई के ट्रांसमिशन लाइन के अलावा उसे दिल्ली के डिस्ट्रिब्यूशन लाइन तक पहुंच की जरूरत पड़ेगी, जो सीईआरसी के न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं है।)
ओपन एक्सेस के संचालन से जुड़े टास्क फोर्स ने हाल ही में इसे सुलझाने की कोशिश की थी। दिलचस्प रूप से टास्क फोर्स की रिपोर्ट का शुरुआती अंश पढ़ने केबाद ऐसा लगता है कि ओपन एक्सेस सच्चाई है। इसमें कहा गया है कि 21-23 राज्य ओपन एक्सेस रेग्युलेशन को अधिसूचित कर चुके हैं।
जो उपभोक्ता सरकारी आपूर्तिकर्ता से छुटकारा पाना चाहते हंर उनके लिए 18 राज्यों ने क्रॉस सब्सिडी सरचार्ज तय कर दिया है। (यह सरचार्ज उस नुकसान की भरपाई के लिए है क्योंकि वाणिज्यिकऔद्योगिक उपभोक्ता से ज्यादा वसूला जाता है ताकि घरेलू उपभोक्ता को सब्सिडी दी जा सके।) इतना होने के बाद भी ऐसे उदाहरण सामने नहीं दिखते जिसमें उपभोक्ता को ओपन एक्सेस की सुविधा मिली हो।
इसके कारण स्पष्ट हैं – राज्यों द्वारा राज्य से बाहर बिजली बेचने की अनुमति नहीं देने के अलावा कुछ ग्राहक राज्य बिजली बोर्ड या निजी कंपनियों से मुकाबला करना चाहते हैं। अगर हम कहें कि अंसल प्लाजा निजी कारणों से मुंबई से बिजली खरीदती है तो फिर मुंबई पावर सामने नजर नहीं आती। हमें बीएसईएस से बैक-अप पावर की दरकार है, लेकिन वह हमें नहीं देती।
इसके अलावा बीएसईएस के पास अंसल प्लाजा को तंग करने के लाखों कारण हैं, ऐसे में अंसल प्लाजा शायद ही ओपन एक्सेस की मांग करे। ओपन एक्सेस नहीं होना सुनिश्चित करने का दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि क्रॉस सब्सिडी सरचार्ज और वीलिंग चार्ज की दर ऊंची कर दी जाए।
विडंबना से समस्या यह है कि जो राज्य ओपन एक्सेस की इजाजत देने की चाहत रखते हैं वहां बिजली खरीदार नहीं है क्योंकि बिजली की दरें काफी ऊंची हो गई हैं (हाल के मामलों में 13 रुपये प्रति यूनिट), ऐसे में शायद ही कोई इस दर पर खुले बाजार में बिजली खरीद सकता है। कीमतें इतनी ऊंची कैसे हो गईं? इसी जगह पर बिजली कानून की आत्मा का उल्लंघन हुआ है।
कानून के तहत ज्यादातर उत्पादक कंपनियां वही कीमतें पाती हैं जो तय की गई हैं। अगर इसे दूसरे राज्यों को बेचा जाता है तो सीईआरसी प्रति यूनिट 4 पैसे की ट्रेडिंग मार्जिन की अनुमति देती है। हर राज्य के राज्य बिजली नियामक को अपना मार्जिन तय करना होगा।
सीईआरसी में याचिका दायर करने वालों में से एक हैं आर. वी. शाही जो बिजली सचिव रह चुके हैं। बतौर बिजली सचिव वह राज्यों को विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम के लिए हजारों करोड़ रुपये देने के प्रभारी थे, लेकिन उन्होंने उस वक्त ऐसे अनुचित कारोबार को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा उत्पादित बिजली में केंद्र का विवेकाधीन कोटा होता है, ऐसे में बिजली मंत्रालय केंद्रीय पूल में 4-5 हजार मेगावाट बिजली रख सकती थी और ओपन एक्सेस के जरिए इसे दो रुपये या इससे भी कम दर पर बेचा जा सकता था। अगर ऐसा हुआ होता तो बिजली की कीमतें निश्चित रूप से घटती। लेकिन मंत्रालय ने ऐसा कुछ नहीं किया।
इसी तरह राज्य बिजली नियामक बिजली सप्लायर मसलन बीएसईएस को बिजली और वीलिंग चार्ज को अलग-अलग रखने को कह सकती थी। इससे यह सुनिश्चित हो सकता था कि जो कोई ओपन एक्सेस के जरिए बिजली लेना चाहते हों उन्हें एक सा वीलिंग चार्ज देना पड़ता। एसईआरसी को ओपन एक्सेस को स्वत: लागू करना चाहिए था, लेकिन याचिकाकर्ता वी. एस. अलवाडी ने हरियाणा एसईआरसी के मुखिया रहते हुए ऐसा नहीं किया।
दूसरे शब्दों में जो लोग ओपन एक्सेस को लागू कर सकते थे, जब उनके पास शक्ति थी तब उन्होंने ऐसा नहीं किया।  अगर अब भी कुछ नहीं किया गया तो फिर बिजली की दरें बढ़ती रहेंगी और एक समय ऐसा भी आएगी जब प्याज की बजाय बिजली की दरें सरकार को धराशायी करने में सक्षम हो जाएंगी।

electricity authority might be reduce bill of electricity
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