बाजार के ज्यादातर भागीदार वैश्विक इक्विटी बाजारों में जारी जोरदार तेजी को देखकर आश्चर्यचकित हैं और उन्हें इस तेजी का भरोसा नहीं हो रहा है।
ऐसा लगता है कि ज्यादातर हेज फंडों ने क्षमता से कम निवेश किया है और मोटे तौर पर आम लोग गलत क्षेत्रों के शेयरों में फंसे हुए हैं। हेज फंडों का रुख भी काफी रक्षात्मक है। लगातार उम्मीद से बेहतर आर्थिक आंकड़ों ने निवेशकों को एक बार फिर अपने पोर्टफोलियो को तैयार करने के लिए प्रेरित किया है।
और पोर्टफोलियो को फिर से संवारने की इस कवायद से बाजार में तेजी देखने को मिल रही है और अब मूल्यों के लिहाज से मौजूदा कीमतें आकर्षक लगने लगी हैं। पिछले बेहद मुश्किल 12 महीनों पर गौर करें तो निवेशक आगे और नुकसान उठाने को लेकर चिंतित हैं, और अब इस तेजी का फायदा उठाने के लिए तैयार नहीं हैं।
निवेशक इस स्तर पर निवेश करते हैं तो भी उन्हें लानत झेलनी पड़ सकती है और अगर नहीं करते हैं तो भी। अगर मौजूदा स्तर पर वे खरीदारी करते हैं और बाजार गिर जाता है, तो बाजार के पीछे भागने पर उनसे सवाल किए जाएंगे, और अगर वे खरीदारी नहीं करते हैं तो उन पर क्षमता से कम निवेश करने के लिए सवाल उठेंगे।
फंडों का प्रवाह शुरू होने के बाद ही स्थिरता आएगी। ऐसे कई निवेशक हैं जो बाजार में और गिरावट की उम्मीद कर रहे थे और बाजार को उठता हुआ देखकर नाखुश हैं। पूरी दुनिया में निवेशकों के बीच इस समय बाजार से दूर रहने की भावना है।
मौजूदा घटनाक्रमों के कारण लोगों को उम्मीद से अधिक समय तक तेजी बने रहने का अनुमान है, और किसी अप्रत्याशित बाहरी झटके के बिना बाजार में भारी गिरावट का अनुमान नहीं है। ऐसे महीने बहुत कम रहे हैं जबकि एमएससीआई वर्ल्ड इंडेक्स 10 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। पिछले महीने यानी अप्रैल में यह 11.6 प्रतिशत बढ़ा है।
ऐसी बढ़ोतरी पर निवेशकों ने नहीं के बराबर ध्यान दिया है। 1969 में यह सूचकांक शुरू होने के बाद सिर्फ पांच ऐसे मौके आए हैं जब यह 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है और हर बार की बढ़ोतरी 12 महीने में सबसे अधिक रही है। इतिहास इस बात का गवाह है कि इस स्तर पर खरीद करने पर बहुत पैसा नहीं गंवाना पड़ा है।
उन्होंने महामंदी के काल के आसपास बाजार के उतार-चढ़ावों पर ऐसा ही अध्ययन किया है। अध्ययन में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि किसी एक जोरदार प्रदर्शन वाले महीने के बाद अगर बाजार की चमक फीकी पड़ जाती है और उसके बाद मुश्किल दौर में कभी भी लगातार दो महीने तेजी देखने को नहीं मिली है।
पहली बार जब हमने बाजार प्रदर्शन के लिहाज से लगातार दो जोरदार महीने देखे थे (जुलाई और अगस्त 1932), और उसके बाद डाऊ जोंस उस स्तर से नीचे नहीं आया। इसके बाद जोरदार तेजी देखने को मिली। बीच-बीच में गिरावट भी हुई और उसके बाद बाजार फिर चढ़ा, लेकिन बाजार कभी भी अपने निचले स्तर से और नीचे नहीं गया।
उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि हमने एमएससीआई वर्ल्ड इंडेक्स में लगातार दो मजबूत महीने देखे हैं (मार्च में 7.54 प्रतिशत और अप्रैल में 11.5 प्रतिशत)। क्या एक बार फिर वैसा ही होगा? तेजड़ियों ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अब हम वित्तीय व्यवस्था की बदहाली से निकलकर कुछ संभावित नतीजों की ओर बढ़ रहे हैं और जोखिम हट जाने के साथ ही बाजार एक बार फिर लीमन घटना से पहले के कारोबारी दौर में पहुंच सकता है।
अगर ज्यादातर ऋण बाजार लीमन घटना से पहले के दौर में वापस लौट चुके हैं तो इक्विटी क्यों नहीं? लीमन के ध्वस्त होने से पहले एसऐंडपी 1,200 के स्तर पर था। लीमन के ढहने से पहले दुनिया आर्थिक मंदी और आर्थिक मुद्दों को बारे चिंतित थी, न कि पूरी व्यवस्था के ध्वस्त होने को लेकर। हम उस अवस्था में वापस लौट सकते हैं। इक्विटी बाजार एक बार फिर सामान्य स्तर की ओर बढ़ रहे हैं।
तेजड़िये आर्थिक सूचकांकों में बदलाव की ओर भी इशारा कर रहे हैं। आईएसएम सर्वेक्षण, मिशिगन उपभोक्ता विश्वास सूचकांक, कॉन्फ्रेंस बोड्र्स कौंसीडेंट-टू-लॉगिंग इंडीकेटर- ये सभी सूचकांक अपने निम्नतम स्तर पर लग रहे हैं।
पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान जारी हुए आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि कम से कम अमेरिका में तो मंदी के आधे रास्ते को पार किया जा चुका है, और आमतौर पर इक्विटी बाजार करीब 60 प्रतिशत सफर तय करने पर अपने निचले स्तर पर होता है। ऐसे में आर्थिक सूचकांकों के आधार पर कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था और बाजार में तेजी आने की संभावनाएं हैं।
ज्यादातर मंदड़ियों का मानना है कि ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं में 2010 तक कोई भी विकास नहीं होगा। इसके अलावा कार्पोरेट आय को लेकर भी चिंताएं हैं क्योंकि निम्न विकास दर के माहौल में आय भी कमजोर बनी रहेगी। उनकी दलील है कि किसी भी दशा में कीमतें अब सस्ती नहीं रह गई हैं।
कई लोगों को इस पर भी आश्चर्य है कि आईएमएफ के अनुमानों के मुताबिक आवश्यक 500 अरब डॉलर की अतिरिक्त पूंजी कहां से आएगी। आने वाले समय में डॉलर, सॉवरिन डिफाल्ट और यूरोजोन में दबाव बनने जैसे कुछ झटके लगने की आशंका भी बनी हुई है।
इसके बावजूद वास्तविकता यह है कि मौजूदा तेजी पर काफी संदेह बना हुआ है। बाजार के चढ़ने के साथ ही गिरावट की उम्मीद कर रहे लोगों का दर्द भी बढ़ता जा रहा है। मुझे अभी भी यह लगता है कि संरचनात्मक रूप से हम मंदी वाले बाजार में हैं, लेकिन इस तरह के माहौल में ही हम एक तेज और स्थायी तेजी देख सकते हैं और वर्तमान में ऐसा ही हो रहा है।
निवेशक बेचैनी के साथ गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। इससे संकेत मिलता है कि बाजार में कोई भी गिरावट छोटी और कम समय के लिए होगी। अगर कोई बड़ा झटका नहीं लगता है तो बाजार में तेजी नहीं थमेगी।
कम से कम सितंबर तक मंदड़ियों की नहीं चलने वाली है। तब तक तेजड़िए आंकड़ों में सुधार की उम्मीद के साथ डटे रहेंगे। मुनाफा बढ़ने और कारोबारियों का आत्मविश्वास बढ़ने के साथ ही धीमी गति से आर्थिक आंकड़ों में सुधार का अनुमान है।
जाहिर तौर पर सितंबर तक तेजड़ियों में बहुत अधिक मजबूती देखने को नहीं मिलेगी और आय कमजोर बनी रहेगी। लेकिन अब मंदड़ियों को यह साबित करना है कि 2009 के अंत तक विकास दर नहीं बढ़ेगी और आगे 2010 में ही तेजी दर्ज होगी।
भारत इस समय वैश्विक तेजी का हिस्सा है, और हमें बाजार में किसी बड़े बदलाव के लिए चुनावों तक इंतजार करना होगा। अगर चुनावों के हमें बेहतर नतीजे मिलते हैं तो बाजार में जोरदार तेजी आ सकती है।
