ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में सभी कंपनियां केवल नए लोगों की भर्ती रोकने और कर्मचारियों की छंटनी के बारे में सोच रही हैं मानव संसाधन क्षेत्र (एचआर) के दिग्गज कुछ इससे अलग रुख अपना रहे हैं।
वे प्रबंधन को सलाह दे रहे हैं कि मंदी के इस दौर में प्रतिभाओं की तलाश करें, जो संगठन को शिखर पर ले जा सकें। उनका कहना है कि ऐसे कुशल कर्मचारियों को, जिन्हें आप अपनी कंपनी में जगह देना चाहते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से भारी भरकम वेतन के चलते ऐसा संभव नहीं था उन्हें अब अपने साथ जोड़ा जा सकता है।
शायद इस समय सबसे बेहतरीन उदाहरण भारत के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों का है, जहां के छात्र नौकरियों की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में कंपनियों के लिए अपार संभावना है कि वे बेहतरीन और प्रतिभाशाली छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करें।
कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने आईआईटी मुंबई, खड़गपुर और दिल्ली के छात्रों को नौकरियों का आफर दिया था, लेकिन उन्होंने अपना आफर वापस ले लिया है। इस समय मंदी ने ऐसा डंडा चलाया है कि आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान कराह रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारे प्रतिभाशाली छात्रों का सम्मान करें।
एचआर के विशेषज्ञ बहरहाल प्रबंधन से कह रहे हैं अब अवसर है कि उन अभ्यर्थियों को कम पैसे पर लिया जा सकता है, जिनकी प्रतिभा की कीमत खुले बाजार में बहुत ज्यादा है। जब आर्थिक बदलाव आ जाएगा तो ये उम्मीदवार नौकरियों में बदलाव करना चाहेंगे।
इस तरह से अगर उन्हें अभी अवसर नहीं दिया गया, तो बाद में यह बहुत ही महंगा साबित होगा। इसलिए इस समय आप उचित वेतन देकर प्रतिभाशाली छात्रों को अवसर दें। विशेषज्ञ कहते हैं कि बेहतरीन कंपनियां ऐसे समय में अवसर नहीं गंवाना चाहेंगी, जो इस समय भर्ती के मामले में इन प्रतिभाशाली छात्रों से मोल तोल करने की स्थिति में हैं।
निश्चित रूप से यह मंदी का दौर है, जिसमें आपको कर्मचारियों पर खर्च का बजट कम करना होगा। लेकिन जानकारों का कहना है कि यह उचित समय है कि रणनीति बनाकर सस्ते में योग्य कर्मचारियों को कंपनी का सदस्य बनाया जाए। उदाहरण के लिए यह आपके लिए ऐसे कर्मचारियों को भर्ती करने के लिए बेहतर वक्त हो सकता है, जो मंदी के वक्त में बेहतर प्रबंधन कर सकें और आपको संकट से उबार सकें।
ऐसे समय में जब खर्चे कम करने की बात हो, प्रबंधन को निश्चित रूप से इस बारे में सोचना चाहिए कि कहां पर कटौती करना उचित होगा और कहां पर निवेश करना लाभदायक होगा। बहरहाल मंदी कहीं से आपकी प्रतिभा को कम नहीं करती, और आप कंपनी के भविष्य में विकास की बेहतर रणनीति बना सकते हैं।
एक एचआर सलाहकार का कहना है कि यह बहुत जरूरी है। पिछले कुछ सालों से तेजी से विकास हो रहा था। इसका मतलब यह है कि भारतीय कंपनियों के वरिष्ठ प्रबंधकों ने विस्तार की तमाम बड़ी योजनाएं, महत्वाकांक्षी परियोजनाएं बनाईं और तमाम बड़े जोखिम मोल लिए। यहां तक कि गलत फैसलों से भी बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ क्योंकि तेजी से आर्थिक विकास हो रहा था।
वर्तमान स्थिति निश्चित रूप से अलग है और सलाहकारों का कहना है कि आपको इस समय ऐसे लोगों की अचानक जरूरत पड़ गई है जो न केवल भविष्य के लिए विकास की रणनीति बना सकें बल्कि मंदी से भी दृढ़ता से मुकाबला कर सकें। इस तरह के कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है।
एलजी के एचआर डॉयरेक्टर यशो वर्मा कहते हैं कि पिछले कुछ साल से चल रही मूर्खतापूर्ण आशावादिता कभी भी हमें मूर्खतापूर्ण निराशा से नहीं उबार सकती। वे हाल ही के हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के एक अध्ययन का हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया है कि मंदी के दौर में कंपनियों को जो पहला काम करना चाहिए उसमें भर्तियां बंद करना, वेतन में कटौती करना, पदोन्नति बजट को कम करना और विस्तार योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालना शामिल है।
लेकिन इस तरह के निराशावादी कदमों से हो सकता है कि हालत और खराब हो जाए।मंदी के दौर में जब आपकी उम्मीदें जरूरत से ज्यादा सकारात्मक परिणाम दे रही हों, यह बेहतरीन समय हो सकता है कि आप अपने व्यवसाय को नई दिशा दें। उदाहरण के लिए एलजी ने भर्ती योजनाएं जारी रखी हैं। कंपनी ने बिजनेस स्कूलों से 90-95 अभ्यर्थियों की भर्तियां की हैं।
इस साल की यह भर्ती पिछले कुछ साल की तुलना में ज्यादा है। इसके साथ ही कंपनी जनवरी में वेतन में बढ़ोतरी करती है, उसे भी जारी रखा गया है, जो पिछले साल की बढ़ोतरी- 15-16 प्रतिशत के बराबर ही है।
वर्मा उन दिनों को याद करते हैं जब एलजी इंडिया की मूल कोरियन कंपनी 1997 में एशियाई आर्थिक संकट से बहुत कठिनाई में थी। बहुत से लोगों ने उस समय सोचा कि कंपनी भारत में अपनी विस्तार योजनाओं को समेट लेगी, लेकिन कंपनी अपनी मूल योजनाओं पर चलती रही।
वर्मा कहते हैं कि आप देख सकते हैं कि आज भारत में एलजी किस स्थिति में पहुंच गई है।अब माइक्रोसॉफ्ट का ही उदाहरण लें। कंपनी ने वर्तमान मंदी में जबरन छुट्टी देने और नई भर्तियों को बंद करने के लिए कसम नहीं खाई है। सॉफ्टवेटर क्षेत्र की इस बड़ी कंपनी में पूरी दुनिया में 91,000 से अधिक कर्मचारी हैं।
इसमें 54,000 से ज्यादा कर्मचारी तो सिर्फ अमेरिका में हैं। 30 साल से अधिक के इतिहास में सबसे बड़ी मंदी चल रही है। वर्तमान मंदी के दौर में जबरी छुट्टी देने के अनुमानों के बीच माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि इसमें बहुत ही ज्यादा सावधानी की जरूरत है, लेकिन हम हजारों नए लोगों को नौकरियां देने की योजना जरूर बना रहे हैं।
यहां तक कि जीई के पूर्व प्रमुख जैक वालेक (जो रैंक ऐंड यैंक थियरी पर विश्वास करते हैं, जिसके मुताबिक कंपनी के 10 प्रतिशत कर्मचारियों को हर साल निकाला जाना चाहिए) ने भी कुछ प्रमुख कंपनियों में चल रही उठापटक के खिलाफ बयान दिया है।
हाल ही में एक सेमिनार में उन्होंने कहा कि कंपनियों को मनोबल और अभिप्रेरण बनाए रखने की दिशा में काम करना चाहिए, खास कर बेहतरीन काम कर रही कंपनियों को। बेहतरीन कंपनियां यह भी समझ रही हैं कि बड़े पैमाने पर छुट्टियां करने या वेतन में कटौती करने से नियोक्ता के रूप में उनका ब्रांड कमजोर होगा और कारोबारी दुनिया में उनकी छवि खराब करेंगे।
यह भी होगा कि जिन कर्मचारियों को बेहतर वेतन मिल रहा है, अफरातफरी के चलते वे भी छोड़कर चले जाएंगे। इसका कारण स्पष्ट है। कोई भी उदार नियोक्ता नहीं हो सकता, यहां तक कि सरकार भी। लेकिन निर्दयी नियोक्ता लंबे समय तक दुख देता रहता है।