बर्ड फ्लू ने हजारों पक्षियों की जान लेने के बाद ही इंसानों को प्रभावित करना शुरू किया था। इसके विपरीत स्वाइन फ्लू ने 175 से ज्यादा इंसानों की जान ले ली लेकिन इस दौरान एक भी सुअर नहीं मारा गया।
वास्तव में जब से वर्तमान महामारी शुरू हुई है और जिसने दुनिया भर में हड़कंप मचा रखा है, ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है जिससे यह पता चलता कि कोई सुअर इस बीमारी से जूझ रहा हो। यह उस सच्चाई के बावजूद है कि स्वाइन फ्लू के विभिन्न वायरस पूरी दुनिया में हर समय मौजूद रहे हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महा निदेशक डॉ. के. एम. बुजारबरूआ ने कहा – भारतीय मवेशी सेक्टर को डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि भारतीय सुअर इस बीमारी से प्रभावित नहीं हुए हैं और उनके इस बीमारी से प्रभावित होने की आशंका नगण्य है।
भारतीय सुअर इसलिए भी सुरक्षित हैं क्योंकि जिस एच1एन1 वायरस से वर्तमान महामारी फैली है वे भारत में मौजूद नहीं हैं और शायद ही कभी यहां रहे हों। आईसीएआर के पशु वैज्ञानिक यहां आने वाले यात्रियों या किसी और स्रोत से यहां इन वायरस के आने की आशंका को खारिज करते हैं।
उनका कहना है कि स्वाइन फ्लू भारत में नहीं आ सकता क्योंकि यहां के वर्तमान तापमान और नमी की कमी वाले माहौल में ये जीवित रहने में सक्षम नहीं होंगे। उनका कहना है कि नवंबर महीने में जाड़े की शुरुआत से पहले इन वायरस के देश में जड़ें जमाने की आशंका नहीं है।
हालांकि ऐहतियात के तौर पर भारत में मौजूद सुअरों की निगरानी की बाबत कदम उठाए जा चुके हैं ताकि अगर इस तरह का कोई मामला हो तो उसके संक्रमण की पहचान शुरुआती दौर में ही हो सके। मांस के लिए मारे गए सुअरों के मांस की भी जांच की गई है ताकि अगर वहां स्वाइन फ्लू की एंटीबॉडी मौजूद हो तो इसका पता चल सके।
किसी भी मामले में देश केकुल पशुधन में सुअरों का हिस्सा काफी कम है। भारत में सुअरों की कुल तादाद का करीब एक चौथाई उत्तर पूर्व में है, जहां सुअर के मांस का उपभोग लोकाचार में शामिल है। बाकी जगह काफी कम संख्या में सुअर मौजूद हैं और ये उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में हैं।
संगठित रूप से सुअर पालन का काम मुख्य रूप से केरल, बिहार और झारखंड तक सीमित है। सुअर पालन घरों के पिछवाड़े में होता है, जो अपेक्षाकृत न सिर्फ टिकाऊ होता है बल्कि इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों से सुरक्षित भी होता है। इसके अलावा इन जानवरों को मांस के लिए लगातार मारा जाता है, इसका मतलब हुआ कि इनकी संख्या जल्दी-जल्दी बदलती रहती है।
संगठित क्षेत्रों में भी भारत में स्वाइन फ्लू से मौत के बारे में नहीं सुना गया है क्योंकि यह बीमारी प्रभावी रूप से एंटीबायोटिक दवा के जरिए नियंत्रित की गई है। डॉ. बुजारबरूआ ने इस बीमारी को दूर रखने के लिए चार सूत्री रणनीति की सिफारिश की है। इसमें शामिल है – 1. बायो-सेफ्टी कदमों, मसलन आवाजाही पर नियंत्रण और सुअर फार्म को असंक्रमित करके, के जरिए होने वाले संक्रमण से सूअरों की सुरक्षा।
2. भोपाल स्थित हाई सिक्योरिटी डिजीज डायग्नोस्टिक लैबोरेटरी में मौजूद सुविधाओं में बढ़ोतरी। 3. सुअर से इंसानों में होने वाले संक्रमण को रोकने के उपाय जैसे सुअर फार्म में काम करने वालों की सुरक्षा। 4. इंसान से इंसान में होने वाले संक्रमण को तेजी से पहचान, अलग रखकर और इन वायरस को पहुंचाने वाले संभावित कैरियर का इलाज।
वास्तव में एच1एन1 वायरस की अद्भुत विशेषता यह है कि ये सुअरों के मुकाबले इंसानों केलिए ज्यादा खतरनाक हैं। सच यह है कि पूरी दुनिया में इन वायरस से सुअर के मरने का अनुपात काफी कम है। इसके अलावा इन वायरस के बचाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है।
लेकिन यह वैक्सीन इस वायरस के ग्रसित इंसानों पर काम नहीं कर पाते और न ही कॉमन ह्यूमन इन्फ्लूएंजा केलिए उपलब्ध वैक्सीन ही इस मामले में कारगर है। आईसीएआर के वैज्ञानिकों को लगता है कि मैक्सिको और अमेरिका जैसे देश में कॉमन इन्फ्लूएंजा से लड़ने के लिए रूटीन के तौर पर वैक्सीन के इस्तेमाल से ऐसा माहौल तैयार हो गया होगा जिससे इन वायरस को इंसानों में फैलने में सुविधा मिली हो सकती है।
एच1एन1 वायरस न सिर्फ कॉमन स्वाइन फ्लू वायरस के समान हैं बल्कि ये बर्ड फ्लू व ह्यूमन वायरस केभी समान हैं और इनकी विशेषता भी एक जैसी है। यह इसे वास्तव में डरावना और यहां तक कि जीवघातक बना देता है।
ह्यूमन इन्फ्लूएंजा के तीन मुख्य प्रकार मौजूद हैं और इसे टाइप ए, बी और सी के नाम से जाना जाता है। इनमें से टाइप ए और सी सुअर व इंसान दोनों को प्रभावित कर सकते हैं जबकि टाइप बी सुअर को प्रभावित नहीं कर पाते। वर्तमान एच1एन1 वायरस टाइप ए वर्ग में है।
दुनिया के कई और हिस्सों में स्वाइन फ्लू के जो वायरस फैल चुके हैं वे हैं एच1एन1 और एच3एन2। निष्कर्ष यह है कि इस बीमारी के नाम के साथ हालांकि सुअर का जुड़ाव है, लेकिन फिलहाल इंसान के मुकाबले सुअर ज्यादा सुरक्षित हैं। ऐसे में इंसान ही इस महामारी के खतरे से जूझ रहे हैं।
