गुजरात में मॉनसून की भयावह बारिश के एक सप्ताह बाद 11 अगस्त, 1979 को दो मील लंबा माछू बांध-2 टूट गया। बांध के विशाल जलाशय से निकला पानी भारी आबादी वाले निचले क्षेत्र में गया जिससे औद्योगिक शहर मोरबी और इसके आसपास के खेती पर निर्भर रहने वाले गांव नष्ट हो गए। कई पुल टूट गए, कारखाने बरबाद हो गए और हजारों मकान ढह गए। इस आपदा में लोगों की मौत का ठोस आंकड़ा नहीं मिल पाया लेकिन अनुमानत: यह 25,000 से अधिक था। टॉम वूटेन और उत्पल संदेसरा द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘नो वन हैड ए टंग टू स्पीक’ ने इन आधिकारिक दावों को खारिज कर दिया है कि बांध की विफलता ऊपरवाले के हाथ में थी बल्कि उन्होंने इसके लिए कई संरचनात्मक और संचार विफलताओं की ओर इशारा किया जिससे आपदा की स्थिति पैदा हुई और इसका स्तर और बढ़ गया।
भारत में कई और बांध असफल रहे हैं जिनमें कड्डम (1957), पानशेत (1961), खडकवासला (1961) चिक्खोले (1962) और नानक सरार (1967) शामिल हैं। फरवरी 2021 की शुरुआत में, उत्तराखंड में चमोली जिले का एक क्षेत्र तबाह हो गया और 140 लोगों की जान तब चली गई जब एक ग्लेशियर टूटने से तेज गति वाला पानी नदी में अचानक बढ़ा और रास्ते में पडऩे वाले एक बांध को बहा ले गया और इससे दूसरा बांध भी क्षतिग्रस्त हो गया। सरकार ने हाल ही में राज्यसभा को बताया कि 1979 के बाद से बांध की नाकामी के 42 उदाहरण हैं। ताजा उदाहरण आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में मौजूद अन्नमय्य जलाशय से जुड़ा है जिसके कारण नवंबर 2021 में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई।
दुनिया में बांधों की संख्या के लिहाज से भारत तीसरे पायदान पर है और यहां 5,745 बांध हैं। चीन में 23,842 बांध और अमेरिका में 9,261 बांध हैं। चिंता का विषय यह है कि लगभग 80 प्रतिशत बांध 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं और इनका रखरखाव पर ध्यान न होने और अक्सर टाले जाने के कारण कई तरह के जोखिम जुड़ गए हैं। इसके अलावा बांधों की उम्र की बात करें तो यह भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि करीब 293 बांध (6 प्रतिशत) 100 साल से अधिक पुराने हैं और 973 (18 प्रतिशत) 50-100 साल पुराने हैं।
एक बांध की दीर्घकालिक सुरक्षा इसकी सामग्रियों के खराब होने, नींव के कमजोर होने और भूकंपीय खतरों पर निर्भर करती है। बांधों के भौतिक पुनर्वास में दो तरह की स्पष्ट गतिविधियां शामिल हैं। पहला ‘डी-सिल्टेशन’ प्रक्रिया है जिसके जरिये मूल जलाशय क्षमता बहाल की जाती है जबकि दूसरी ‘सुरक्षात्मक’ गतिविधियां हैं जिसमें संरचनात्मक सुरक्षा, जलीय सुरक्षा और परिचालन सुरक्षा शामिल है।
बांध को बंद करने के मुद्दे को भी कार्य-एजेंडा में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। सिविल सोसाइटी समूहों और स्वतंत्र विशेषज्ञों ने विभिन्न संदर्भों में केरल में मुल्लापेरियार बांध, त्रिपुरा में गुमटी नदी पर डुंबर बांध और महाराष्ट्र में जायकवाडी बांध के लिए इसे पहले ही बंद करने की मांग उठाई जा चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने 8 अप्रैल को फैसला सुनाया कि 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध के लिए एक पर्यवेक्षी समिति, राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण के सभी कार्यों और शक्तियों का निर्वहन करेगी जब तक कि बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के तहत एक नियमित राष्ट्रीय प्राधिकरण कार्य नहीं करने लगता है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) में बांध सुरक्षा संगठन (डीएसओ) की स्थापना मई 1979 में बांध सुरक्षा के बारे में राज्यों को समझाने के लिए की गई थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्टों में बांध सुरक्षा से संबंधित मुद्दों का जिक्र अक्सर किया गया है। ऐसी रिपोर्टों में डीएसओ के प्रभावी होने को लेकर भी सवाल उठाया गया है।
चार राज्यों (मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु) में 423 करोड़ रुपये की लागत से 1991 से 1999 तक विश्व बैंक की सहायता से पहले प्रमुख कार्यक्रम, बांध सुरक्षा आश्वासन और पुनर्वास परियोजना पर अमल किया गया था। दूसरा कार्यक्रम विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) थी जो अप्रैल 2012 से मार्च 2021 तक की अवधि के लिए थी और जिसका बजट 3466 करोड़ रुपये तक था। इस योजना के तहत सात राज्यों, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तराखंड स्थित 223 बांधों का पुनर्वास किया गया था।
ड्रिप की सफलता के आधार पर जल शक्ति मंत्रालय ने ड्रिप के दूसरे चरण और तीसरे चरण की शुरुआत की है। इन नई योजनाओं में 19 राज्य हैं और तीन केंद्रीय एजेंसियां (भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड, सीडब्ल्यूसी और दामोदर घाटी निगम) शामिल हैं। बजट खर्च करीब 10,211 करोड़ रुपये है जो 736 बांधों के पुनर्वास प्रावधान के लिए पर्याप्त है।
2 अगस्त, 2019 को बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 लोकसभा में पारित किया गया था। इस विधेयक में बांध सुरक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति, राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण, बांध सुरक्षा पर राज्य समिति और राज्य बांध सुरक्षा संगठन की स्थापना कर निर्दिष्ट बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और प्रबंधन का प्रावधान है। इस विधेयक का कई राज्यों द्वारा इस आधार पर विरोध किया गया था कि यह बांधों का प्रबंधन करने के लिए राज्यों की संप्रभुता का अतिक्रमण कर रहा है क्योंकि पानी, संवैधानिक रूप से राज्य का विषय है। केंद्र का कहना था कि अंतर-राज्यीय नदी बेसिन, बांधों से संबंधित 92 प्रतिशत आंतरिक इलाकों को कवर करते हैं जिससे केंद्र इस तरह के कानून लागू करने के लिए सक्षम हो जाता है। आखिरकार राज्यसभा ने 2 दिसंबर 2021 को इस विधेयक को पारित कर दिया। इस तरह से यह नया अधिनियम और संबंधित पुनर्वास कार्यक्रम भारत के बांधों के पेशेवर प्रबंधन और संबंधित सुरक्षा मुद्दों के एक नए दौर की शुरुआत करते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि भारत के 5,745 बांध अब सुरक्षित हैं।
(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। वह सीआईआई की नैशनल काउंसिल ऑन इन्फ्रास्ट्रक्चर के अध्यक्ष भी हैं। लेख में विचार व्यक्तिगत हैं)
