खाने की चीजों और घर के जरूरी सामान के अलावा जुलाई और अगस्त के महीनों में ज्यादातर उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार आमतौर पर ठंडा ही रहता है।
इन महीनों में दुकानों पर सेल के परचम खुद-ब-खुद फहराने लगते हैं, ताकि पुराने स्टॉक को खाली किया जा सके। दरअसल, ठंड के मौसम के लिए नए स्टॉक की जरूरत तो होती ही है, साथ में शादियों का सीजन भी तो होता है। लेकिन इस साल के हालात पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी बदले हुए हैं।
भले ही इस बात की पूरी उम्मीद है कि इस साल भी अपनी अर्थव्यवस्था सात फीसदी से ज्यादा की रफ्तार से तरक्की करेगी, लेकिन महंगाई और दूसरी कई बातों ने लोगों के भरोसे को हिलाकर रख दिया है। साथ ही, उन्होंने लोगों की खर्च करने की ताकत भी काफी कम हो चुकी है। इसके साथ-साथ देश के 15-20 बड़े शहरों के खास इलाकों में तो रिटेल चेनों के बीच अपनी दुकान खोलने की काफी होड़ मची हुई है। इस वजह से इन शहरों के खास इलाकों में लाखों वर्ग फुट का रिटेल स्पेस आया है।
कई लाख वर्ग फुट शॉपिंग स्पेस का निर्माण अभी चल रहा है। इस वजह से लोगों की पहले से ही पतली होती जा रही जेब में अपना हिस्सा तलाशने की होड़ बढ़ती जा रही है। इसके लिए ये कंपनियां मशहूर बाजारों और नए शॉपिंग मॉल में भी खर्च करने से नहीं हिचक रही हैं। बदकिस्मती से लोगों की परेशानियों की इन रिटेल चेन कंपनियों को परवाह ही नहीं है। इसलिए तो उन्होंने लोगों की दिक्कतों को अपनी प्लानिंग में शामिल नहीं किया है। आज भी वे छूट को उसी रूप में देखते हैं, जैसा 10 साल पहले देखा करते थे।
आज भी दुकानदार सेल के बोर्ड के तले महीनों पुराने स्टॉक को रखते हैं, जिसे देखकर ही लग जाता है कि उसने महीनों तक धूल फांकी है। इसी वजह से तो ज्यादातर लोग दुकानों से दूर हैं। उन्हें महीनों पुराना और घटिया समान दिखकर बेवकूफ बना पाना आसान नहीं है। वैसे कुछ लोग अच्छे सौदे की उम्मीद में इन दुकानों की तरफ आ भी जाते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद काफी कम है। इसी वजह से न सिर्फ कई दुकानदार और ब्रांड अपना स्टॉक खाली नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि ग्राहकों को नाराज कर अपनी साख के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
मेरा मानना है कि खासतौर पर शहरी इलाकों में भारतीय ग्राहक और खुदरा बाजार की मूलभूत बातों में काफी बड़े बदलाव आ चुके हैं। इसीलिए बड़े ब्रांडों और दुकानदारों की सोच और उनके काम करने के तरीके में भी बदलाव का आना बेहद जरूरी है। सबसे पहली बात तो यह है कि खुदरा बाजार की गतिविधियों का प्रचार प्रसार पूरे देश में होना बेहद जरूरी है। इसके लिए नीतियों में बदलाव और बुनियादी ढांचे की दिक्कतों को दूर करना ही पड़ेगा। इस वक्त सदियों पुरानी नीतियां और घटिया बुनियादी ढांचा रिटेल सेक्टर के विकास की राह के सबसे बड़े रोड़े हैं।
पुराने और स्थापित बाजारों में पहले से ही काफी भीड़ है और यह भीड़ आने वाले सालों में बढ़ेगी ही। जैसे-जैसे भीड़ बढ़ेगी, इन इलाकों में आने वाले लोग इन जगहों पर मौजूद दुकानों के लिए लोगों के बटुए का हिस्सा पाना उतना ही कम होता जाएगा। दूसरी बात यह है कि अब ऊंचे तबके के साथ-साथ आम लोगबाग भी नए और आधुनिक उत्पादों की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। अब आम लोगों को मोटी कीमतों पर पुराने उत्पाद खरीदना कतई गंवारा नहीं है। ये बिल्कुल नए तरह के ग्राहक हैं, जो कीमत के आधार पर अपने फैसले करते हैं।
ये लोग समाज के निचले तबके से ताल्लुक रखते हैं और उनमें लिंकिंग रोड, साउथ एक्सटेंशन और कर्मशियल स्ट्रीट या फिर शानदार मॉल जैसे महंगे बाजारों में खरीदारी करने की सामर्थ्य नहीं है। तीसरी बात यह है कि पिछले कुछ सालों से लोगों में नई सेवाओं और महंगे उत्पादों की खरीदारी की आदत में बढ़ी है, जबकि उनकी कमाई जस की तस रही है। इसीलिए पुराने दुकानदारों और बड़े ब्रांडों के सामने एक नई दिक्कत पैदा हो गई है। उन्हें न केवल प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करना है, बल्कि नए उत्पादों और टेलीकॉम तथा मनोरंजन नई सेवाओं से भी जूझना है।
लोगों को कपड़े, जूते और इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर खर्च करवाते रहने का उनके सामने एक ही रास्ता है। वह रास्ता यह, नई सोच और अच्छी क्वालिटी के जरिये लोगों को खुश रखने का। आज की तारीख में मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाले केवल सेल का बोर्ड देखकर खिंचे नहीं चले आते हैं। इस तरह के बदलावों को देखकर आपको हैरत में आने की जरूरत नहीं है। ऐसा होता रहता है। अब अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित बाजारों को ही ले लीजिए। वहां के ब्रांड और रिटेल स्टोर भी बदलावों के इस दौर से गुजर चुके हैं। इस ऊहापोह की स्थिति से निकलने का रास्ता भी बड़ा आसान है।
पहले तो भारी-भरकम वस्तुओं पर एक या दो महीने, बल्कि साल भर छूट दी जाए। साथ ही लोगों को लुभाने के लिए भी दुकानदारों और ब्रांडों को कुछ खास सामान के वास्ते सीमित समय जैसे एक हफ्ते, तीन दिन या एक दिन के लिए भी प्रमोशनल इवेंट करने चाहिए। इससे लोगों के दिल में ब्रांड और दुकान के प्रति उत्साह बना रहता है। साथ ही, वे उस ब्रांड या दुकान को भी याद रखते हैं। जहां तक पुराने पड़ चुके उत्पाद की बात है, तो इसे दूसरे उत्पादों के साथ बेचना ठीक नहीं होगा। इससे दुकानों और ब्रांड को घाटा तो होगा ही, साथ में उनका नाम भी खराब होने का खतरा बना रहता है।
हालांकि, अपने मुल्क में अभी तक काफी सस्ते में सामान बेचने वाले (डीप डिस्कॉउन्टेड) रिटेल चेनों आ नहीं पाए हैं, लेकिन इनकी जरूरत काफी है। बड़े रिटेल दुकानदारों और बड़े ब्रांडों को अपने काफी पुराने पड़ चुके सामान के लिए एक खास तरह के रिटेल चेन बनाने की जरूरत है, जहां काफी सस्ते में सामान मिला करेंगे। इन रिटेल चेनों के स्टोर काफी अलग इलाकों में खुलने चाहिए।
साथ ही, उनका रूप-रंग भी अलग होना चाहिए क्योंकि उनके लक्षित ग्राहक निचले तबके से ताल्लुक रखेंगे। जितनी जल्दी दुकानदार और ब्रांड अपनी सोच में बदलाव हो लाएंगे, उतना बेहतर होगा। दरअसल, अगले साल हो सकता है कि लोगों की खर्च करने की ताकत में भारी इजाफा हो भी जाए, लेकिन उनकी सोच में बदलाव आने में अभी बरसों लगेंगे।