वे तीन एक दूसरे से पूरी तरह अलग थे। लेकिन वे सबसे अच्छे दोस्त थे। इनके नाम थे: लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील मोदी। ये तीनों लगभग एक साथ राजनीति में आए। आज ये सभी राजनीति में हैं लेकिन उनके रास्ते अलग-अलग हैं। नीतीश कुमार ने कुछ वर्ष पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा था, ‘मेरी मां बहुत बड़ी गप्पी थीं। लालू प्रसाद और सुशील मोदी अक्सर कल्याणपुर बीघा स्थित मेरे घर पर आया करते थे और मां उनके लिए खाना बनाती और साथ ही उनका और अपना मनोरंजन करती।’
इनकी राह सन 1974 में टकराईं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में सुशील मोदी ने बिहार में जय प्रकाश नारायण के कांग्रेस विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार भी साथ थे। लालू प्रसाद पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे, सुशील मोदी उसके सचिव थे और रवि शंकर प्रसाद भी सचिव थे। ये सभी महत्त्वाकांक्षी युवा थे। नीतीश इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। जून 1975 में लगे आपातकाल के दौरान सुशील मोदी को पांच बार गिरफ्तार किया गया और वह लंबे समय तक जेल में रहे। यह स्थिति तब थी जब उनके परिवार ने उन पर एक तरह से निवेश किया था। उन्हें तीन स्कूलों में भेजा गया जिनमें से दो मिशनरी संचालित थे। सन 1973 में वह पटना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग की परीक्षा में दूसरे स्थान पर आए (माना जा रहा था कि वह अनुत्तीर्ण हो जाएंगे लेकिन अंतिम एक महीने में उन्होंने जमकर पढ़ाई की) लेकिन राजनीति में आने के लिए उन्होंने एमएससी छोड़ दी।
लालू सबसे पहले गिरफ्तार होने वालों में से एक थे। शायद इसलिए कि जेपी ने उन्हें छात्र संघर्ष समिति का समन्वयक नियुक्त किया था। यह आपातकाल के खिलाफ छात्रों का प्रतिरोध था जिसमें मुख्य रूप से विद्यार्थी परिषद सक्रिय थी। हालांकि उन दिनों लालू के लिए यह बात मायने नहीं रखती थी। उन दिनों वह अलग स्तर पर थे। पटना के गांधी मैदान में आयोजित अभूतपूर्व जनसभा में उन्होंने जेपी के लिए ‘लोकनायक’ नाम का सुझाव दिया था। उन्हें आंतरिक सुरक्षा की रक्षा के लिए बने कानून मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और राबड़ी देवी से विवाह के तत्काल बाद उन्हें जेल भेज दिया गया। उनकी शादी जेल में पूरी हुई क्योंकि राम बहादुर राय और महामाया प्रसाद सिन्हा जैसे उनके मित्रों ने राबड़ी देवी को जेल के उनके कमरे तक पहुंचाया। उनकी पहली संतान मीसा वहीं गर्भ में आईं और यही कारण है कि जेपी ने उन्हें यह नाम दिया।
नीतीश कुमार को भी आपातकाल की घोषणा के पहले ही गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्होंने भूमिगत गतिविधियां जारी रखीं। लालू और वह गया में पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो गए लेकिन पुलिस ने उनकी तलाश जारी रखी। आखिरकार 1976 में नीतीश कुमार पुलिस के हाथों चढ़ गए और उन्हें आरा जेल भेज दिया गया।
कुछ वर्ष बाद दोनों की दोस्ती में दरार आ गई। सन 2019 में नीतीश कुमार की सरकार में वित्त मंत्री के रूप में सुशील मोदी ने चारा घोटाले के आकार का खुलासा किया। सन 1996 में सबसे पहले सामने आने वाला यही वह घोटाला था जिसकी वजह से लालू प्रसाद को भ्रष्टाचार के छह मामलों में जेल जाना पड़ा। सुशील मोदी ने कहा था कि चाईबासा, गुमला, दुमका, जमशेदपुर और रांची (अब झारखंड में) तथा पटना में पालतू पशुओं तथा मुर्गियों के लिए 10.5 करोड़ रुपये के चारे की आवश्यकता थी लेकिन पशुपालन विभाग ने इसमें 253.33 करोड़ रुपये का व्यय दिखाया। मोदी और रविशंकर प्रसाद ने अदालत में जनहित याचिका दायर की जिसके बाद लालू प्रसाद को सजा हुई। यह सजा राजनीतिक कारणों से नहीं बल्कि सार्वजनिक कोष के गबन के लिए हुई थी।
सन 2000 में जब नीतीश कुमार लालू प्रसाद को परास्त करके सत्ता में आए तो उनका प्रमुख वक्तव्य था, ‘सामाजिक न्याय का संबंध शिक्षा से है लेकिन लालू इसमें यकीन नहीं करते।’ लालू के हाथों में यादवों की शक्ति थी लेकिन दूसरों, खासकर छोटी जातियों पर उनका बस नहीं था। शासन को मुद्दा बनाया गया। नीतीश को पुराने साथी फिर मिले, खासकर सुशील मोदी जो आने वाले वर्षों में उनका दाहिना हाथ रहे। नीतीश कुमार का दूसरा (2005-10) कार्यकाल उनके लिए स्वर्णिम समय रहा।
नीतीश ने खूब नाम कमाया लेकिन सुशील मोदी ने काफी काम किया और उन्हें अपनी ही पार्टी से यह आलोचना सुननी पड़ी कि वह नीतीश के साथ अधिक मित्रवत हैं और कई बार तो अपनी पार्टी के हितों के ही खिलाफ चले जाते हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में कुमार ने भाजपा को यह बता दिया कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में राजग के लिए प्रचार न करें। कुमार ने कहा, ‘हमारे पास एक मोदी (सुशील मोदी) है ही तो दूसरे मोदी (नरेंद्र मोदी) की क्या जरूरत है?’ यह बात उनके पार्टी सहयोगियों को सही नहीं लगी और इसे समझा भी जा सकता है।
अभी और बुरा होना था। सुशील मोदी को बिहार से पूरी तरह हटा दिया गया और राज्य सभा के माध्यम से दिल्ली भेज दिया गया। भाजपा नेतृत्व को लग रहा था कि सुशील मोदी की उपस्थिति की वजह से बिहार में भाजपा की प्रगति नहीं हो रही है। हालांकि नीतीश के साथ भाजपा का गठजोड़ बरकरार रहा लेकिन सुशील मोदी की भूमिका कम से कम होती गयी।
जाहिर है इसका कड़वा परिणाम निकलना ही था। दोनों ही व्यक्ति अपनी-अपनी तरह से भावुक हैं। सुशील मोदी ने टिप्पणी की, ‘क्या नहीं किया मैंने उस इंसान के लिए।’ नीतीश ने जवाब दिया, ‘बेचारा। उसे कुछ नहीं मिला तो अब मेरे खिलाफ बोल रहा है।’
आज, जेल की दीवारों के पीछे साझा आदर्शों से बनी दोस्ती लेनदेन की समझ में बदल चुकी है। कुछ घाव कभी नहीं भर सकते।
