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  लेख  टीशर्ट कैसे बनी एक खास सांस्कृतिक पहनावा?
लेख

टीशर्ट कैसे बनी एक खास सांस्कृतिक पहनावा?

बीएस संवाददाताबीएस संवाददाता—May 11, 2022 11:28 PM IST
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मैं दक्षिणी मुंबई के एक्रप्रसिद्ध जिमखाना के प्रवेश द्वार पर खड़ा होकर फुटबॉल के मैदान की हरी घास को देख रहा था। मेरे भीतर प्रशंसा के भाव थे और मैंने सोचा कि आखिर वे लोग कितने खुशकिस्मत होते होंगे जिन्हें हर रोज यहां फुटबॉल खेलने का अधिकार हासिल है। मैं अपनी रोजाना की टी शर्ट, जींस और एथलेटिक जूते पहने हुए था और मेरा मन कर रहा था कि फुटबॉल के मैदान में कूद पडूं और खेलना शुरू कर दूं। लेकिन वहां कोई भी खेल नहीं रहा था।
क्लब के प्रवेश द्वार पर जहां मैं खड़ा था, वहीं खड़े एक जान पहचान के व्यक्ति ने मुझसे कहा, ‘आपने टीशर्ट क्यों पहनी है! आपने टाई और जैकेट क्यों नहीं पहना है?’
‘मैंने वही पहना है जो मैं हमेशा पहनता हूं: टीशर्ट और जींस।’ मैंने उन्हें जवाब दिया।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन क्लब की सदस्यता के लिए साक्षात्कार देने आप जिस बार मेंं जा रहे हैं वहां टीशर्ट और जींस पहनकर नहीं जाया जा सकता।’ उनकी आवाज में घबराहट झलक रही थी। मैं बस मुस्कराया और उन्हें लेकर बार में चला गया जहां उन्होंने मुझे तीन लोगों से मिलवाया जो सूट पहने हुए थे और कमरे के बीचोबीच खड़े थे। उन्होंने तीनों लोगों से मेरा परिचय कराया। मैं देख सकता था कि कैसे वे ऊपर से नीचे तक मेरी पड़ताल कर रहे थे और उन्होंने औपचारिक मुस्कान के साथ मेरा अभिवादन किया और कहा, ‘हैलो।’
उनमें से एक ने कहा, ‘हमारा पहला सवाल यह है कि आप आईआईएम कलकत्ता से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पांच वर्षों तक मुंबई में काम करते रहे। आपने पहले कभी क्लब की सदस्यता के लिए आवेदन क्यों नहीं किया?’
मैंने उत्तर दिया, ‘मैं कुछ अहम कामों में व्यस्त था, मैंने एक विज्ञापन एजेंसी की स्थापना की, दो दोस्तों के साथ मिलकर उसका विस्तार किया। मैंने सोचा कि मैं क्लब की सदस्यता जैसे काम कुछ समय बाद कर लूंगा।’
मैंने देखा कि उनकी त्योरियां चढ़ गईं और उनके चेहरों का रंग जर्द हो गया। कुछ मिनट की बातचीत के बाद वे यह कहते हुए बार के दूसरे हिस्से में चले गए कि उन्हें कमेटी की एक बैठक में शामिल होना है।
जैसे ही वे हमसे कुछ दूर गए मेरे परिचित ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘आपने इस क्लब की सदस्यता पाने का मौका पूरी तरह से गंवा दिया।’
मैंने उनसे पूछा ‘मैंने क्या गलत किया?’
‘सबसे पहले तो आप सदस्यता साक्षात्कार की बैठक के लिए टी शर्ट और जींस पहनकर आए। उसके बाद आपने उनसे कहा कि आपके लिए 100 से अधिक पुराने इस जिमखाना क्लब की सदस्यता लेने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण काम था अपने नये कारोबार को सफल बनाना!’
जाहिर है उनका कहना सही था क्योंकि उसके बाद मुझे जिमखाना क्लब में कभी याद नहीं किया गया।
यह घटना 1976 की है और मैं उस समय 30 वर्ष से भी कम आयु का था। उसके बाद कोलकाता के प्रसिद्ध क्लब में भी मुझे एक औपचारिक सूट पहनने के बाद भी प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि मैंने भीतर जो टीशर्ट पहनी थी उसमेंं कॉलर नहीं थाा। मुझसे कहा गया, ‘यह कारोबारियों का क्लब है और आपको एक कारोबारी की तरह पोशाक पहननी चाहिए।’
नीलगिरि के हिल स्टेशन पर स्थित एक उपनिवेशकालीन जिमखाना में भी मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ था।
तब से अब तक मैंने विपणन की दुनिया में कदम रखा, मैंने तकनीक और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की दुनिया को दिल खोलकर अपनाया है। यह वह जगह है जहां टीशर्ट इकलौता स्वीकार्य परिधान है और जो लोग सूट और टाई पहनकर रहते हैं उन्हें सेल्समैन के तौर पर देखा जाता है। 2012 में जब फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने वॉलस्ट्रीट पर अपने आईपीओ के लिए रोड शो किया था तो वह ठंड में पहनी जाने वाली हूडी वाली टीशर्ट पहने हुए थे। ब्लूमबर्ग टेलीविजन के एक वरिष्ठ टीकाकार ने कहा था, ‘दरअसल वह निवेशकों को यह दिखा रहे हैं कि वह बहुत ध्यान नहीं देते। मुझे लगता है कि यह अपरिपक्वता की निशानी है। उन्हें लोगों के साथ इज्जत से पेश आना चाहिए क्योंकि वह लोगों से उनका पैसा मांग रहे हैं।’
सिलिकन वैली से शुरू होने वाले टेक जगत में टी शर्ट को लेकर इतना जुनून आखिर कहां से आया? एक नजरिया यह भी है कि टीशर्ट आजादी की प्रतीकत है और इस बात की भी कि आप काबिलियत को दिखने पर तरजीह देते हैं।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो टीशर्ट की शुरुआत अमेरिका में श्रमिकों और किसानों और खदान कर्मियों के परिधान के रूप में हुई थी। ऐसा लगता है कि इसे प्रतीकात्मक दर्जा तब मिला जब सन 1950 में मार्लन ब्रांडो ने ब्रॉडवे नाटक मेंं स्टैनली कोवालस्की के किरदार में इसे पहना और उसके पश्चात अ स्ट्रीटकार नेम्ड डिजायर  नामक सफल फिल्म में भी इसे पहना। यह पहला मौका था जब टीशर्ट किसी अमेरिकी फिल्म में बाहरी पहनावे के रूप में नजर आई। यह महसूस किया गया कि टीशर्ट ने दर्शकों को पुरुष शरीर को एक नये ढंग से देखने का नजरिया दिया क्योंकि अब शरीर ढेर सारे कॉस्ट्यूम में छिपा नहीं था और उससे उसके सामाजिक रुतबे का कोई संकेत नहीं निकल रहा था।
सन 1970 के दशक में उभरने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों की स्थापना सन 1960 के दशक के बच्चों ने की थी जो इस बात में गर्व महसूस करते थे कि कार्यस्थल अनौपचारिक हो जहां व्यक्तिगत रचनात्मकता का खुलकर प्रदर्शन किया जा सके। रिचर्ड फोर्ड अपनी नयी पुस्तक ड्रेस कोड्स: हाऊ द लॉज ऑफ फैशन मेड हिस्ट्री में कहा कि धीरे-धीरे अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर टेक का प्रभाव बढ़ा और उसके मानकों ने अन्य पेशेवरों मसलन वित्त और विधिक सेवा क्षेत्र के लोगों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया। अपनी पुस्तक में वह यह भी कहते हैं कि 18वीं सदी के यूरोप में कुलीन कामगार पुरुषों ने मखमल, फर, आभूषण जैसे शाही पहनावों को त्यागना शुरू कर दिया और उन्होंने साधारण सूट और टाई जैसे पहनावों को अपना लिया। एक तरह से ऐसे पहनावे के माध्यम से सामाजिक समता का संदेश दिया गया। लेकिन जल्दी ही सूट भी श्रेष्ठ और कुलीनों की पहचान बन गया। खासतौर पर भारत में ब्रिटिश राज के दौरान ऐसा हुआ।
परंतु अब जबकि टेक जगत और उनकी संस्कृति दोबारा कॉर्पोरेट जगत में दबदबा बना रही है तो दोबारा जींस और टीशर्ट की लोकप्रियता देखने को मिल रही है। यह इस कदर हो रहा है कि पेपल के संस्थापक टेक उद्यमी पीटर थिएल ने 2014 की अपनी पुस्तक जीरो टु वन  में यह तक लिख दिया कि ऐसे किसी टेक सीईओ की कंपनी में निवेश न करें जो सूट पहनता हो। अब जबकि इन सभी पेशों में मशीन शिक्षण जैसी डिजिटल तकनीक गहरायी से घर कर रही हैं तो क्या नये अधिवक्ता और चिकित्सक आदि भी टी शर्ट की ओर रुख करेंगे?
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)

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