हिंदुस्तान में हम इस बात को बड़ी शिद्दत से मानते हैं कि जब मुसीबत आए तो उसे मात देने के लिए अपना पूरा दिमाग लगा दो। इसी बात की मिसाल आपको उन कई आर्थिक सुधारों से मिल सकती है, जो इस मुल्क ने देखे हैं।
आज भी कई लोगों के जेहन में 1991 की यादें ताजा हैं। दरअसल आज भी हम उस मंदी को जेहन से नही निकाल पाए हैं, तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि उसके बाद आया कोई संकट उसकी बराबरी का नहीं था।
उसके बाद आए किसी भी संकट ने नीतिनिर्धारकों को इतना परेशान नहीं किया। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों को देखें तो साफ दिखता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अगर संकट में नहीं, तो उसके बिल्कुल करीब तो पहुंच ही चुकी है।
हालांकि, इस संकट की असल वजह दूसरे मुल्कों में फैली हुई उठा-पटक है, लेकिन आर्थिक सुधारों के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ जाने की वजह से भारत भी इसके असर से नहीं बच सकता। इसलिए इस सब के बावजूद भी हमारी अर्थव्यवस्था जो ताकत दिखला रही है, वह हौंसला दिलाने लायक है।
इस संकट का असर दूसरे मुल्कों पर भी पड़ा है, लेकिन इस बात से किसी को ऐतराज नहीं है कि आज नहीं तो कल इससे हमें भी जूझना पड़ेगा ही। अब सवाल यह है कि क्या इस बार भी सरकार उसी सकारात्मक तरीके से इसका मुकाबला करेगी, जिस तरह से वह करती आई है?
बड़ी बात यह है कि वह ऐसा ही कर रही है। हाल-फिलहाल में उठाए गए कदम यही दिखलाते हैं कि सरकार इस संकट का सामना कई अच्छे सुधारों के साथ करने के लिए पूरी तरह तैयार है। कैबिनेट ने बीमा सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का फैसला किया है।
लंबे समय से वामपंथी दल इस कदम का विरोध कर रहे थे, जिस वजह से अभी हाल तक उनके समर्थन के सहारे खड़ी संप्रग सरकार इस बारे में फैसला नहीं कर पा रही थी। इस कदम को बीमा सेक्टर को मजबूत करने और आगे बढ़ाने के लिए काफी जरूरी माना जा रहा था।
बीमा और पेंशन उत्पादों की शृंखला को और लंबा चौड़ा करने के साथ-साथ नाउम्मीद हो चुके बॉन्ड मार्केट में फिर से जान फूंकने में इसकी अच्छी-खासी भूमिका हो सकती है। उसके बाद सरकार ने स्टील पर निर्यात डयूटी को खत्म कर दिया। इस डयूटी को तब लगाया था, जब वैश्विक बाजार में स्टील की कीमतों में इजाफा हो रहा था और देसी ग्राहकों को किल्लत का सामना करना पड़ रहा था।
इन छोटे-छोटे कदमों की खूबी चाहे जो भी हो, लेकिन असल में वे इस वक्त अर्थव्यवस्था को बीमारी से बचाने के लिए मौजूद सबसे अच्छी दवाइयां हैं। अब अंतरराष्ट्रीय बाजार की बदली-बदली फिजां की वजह से ही सरकार के पास टैक्स कम करने का सबसे अच्छा मौका है।
आखिर में देसी एयरलाइंस कंपनियों की पतली हालत की वजह से सरकार को उस टैक्स में कटौती करनी पड़ी, जो एविएशन टरबाइन फ्यूल पर वसूलती थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों ने भी इस मुसीबत में फंसे उद्योग को चैन की सांस लेने की इजाजत दी।
माना कि इनमें से कोई कदम ऐसा नहीं था, जिसे सरकार ने अपने घटक दलों से काफी विरोध के बाद उठाया हो। इसके बावजूद भी इसने सुधारों की गाड़ी को आगे बढ़ाया, जिसे वापस लेने का कोई कारण अगली सरकार (फिर चाहे वह किसी की भी हो) के पास नहीं होगा।