बाजार में फिर से आएगी बहार
शेयर बाजार का निवेश लंबे समय का निवेश माना जाता है। बाजार के निवेशकों को इतनी जल्दी हार नहीं माननी चाहिए।
यदि हम औसतन भी देखें तो हर तीन साल में बाजार 30 से 40 फीसदी तक ऊपर चला जाता है। जिन लोगों ने 1970 में शेयर बाजार में निवेश किया था, वे आज उस मूल्य से दो सौ गुना अधिक लाभ कमा चुके हैं। यदि वे अपना पैसा वापस ले लेते तो क्या वे आज इतना फायदा कमा पाते।
साधारणतया जब बाजार गिरता है तो स्मार्ट निवेशक और शेयर खरीदते हैं और निवेश करते हैं ताकि फिर जब बाजार चढ़े तो उन्हें उस निवेश का फायदा मिल सके। इस समय बाजार गिरने का प्रमुख कारण अमेरिका व जापान में जारी सबप्राइम संकट है, जिसके कारण निवेशक मार्केट से पैसा निकालने को मजबूर हैं। उस समस्या का हल निकालते ही बाजार में पुन: खुशहाली छा जाएगी। – सुजीत कुमार पाकुड़, झारखंड
निवेशक को कुछ करते नहीं बन रहा
आज खरीदो कल बेचो के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ रहा था। आम जनता को राष्ट्रीय स्तर पर सट्टे खेलने-खेलाने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था। इस खेल को दूरदर्शन ने पारिवारिक सीरियल और टेलीफिल्म के माध्यम से आम जनता को लुभाया तो इंश्योरेंस के नाम पर कॉरपोरेट एजेंट कंपनी ने यही काम किया।
हिचकोले खाते शेयर बाजार में आम जनता अपने को लुटता देख रही है परंतु उसे कुछ करते नहीं बन रहा है। कुछ अपनी मेहनत और बुध्दि से अरब-खरबपति बनने लगे, वहीं कुछ व्यक्ति चंद दिनों में कंपनी बेचकर उसी कंपनी में कर्मचारी बनने लगे हैं। विकसित देशों में ऐसा होना साधारण बात है। शेयर बाजार में बेखबर भारत की आधी से अधिक आबादी, जो प्रत्यक्ष निवेशक नहीं है, अपनी समस्या सूखा, बाढ़ और पानी के प्रबंधन में उलझी है। – राजेंद्र प्रसाद मधुबनी, फे्ण्डस कॉलोनी, वार्ड न. 14, मधुबनी (बिहार)
विश्लेषण क्षमता और दूरदृष्टि जरूरी
शेयर बाजार में खेलने के लिए शेर दिल और मोटी जेब होनी ही चाहिए। इसके अलावा बाजार प्रवृतियों का आकलन-विश्लेषण क्षमता तथा दूरदृष्टि भी होना उतना ही जरूरी है। आज का शेयर बाजार रोलर स्केटर पर दौड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता, अमेरिकी मंदी और वैश्विक बाजार, आंतरिक बाजार को प्रभावित कर रहा है।
उद्योगों में मंदी की गुपचुप आमद हो चुकी है। मुद्रास्फीति अपने चरम पर पहुंच गई है। दूसरी ओर कंपनियों की आपसी विलय नीति, विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी की बढ़ोतरी, निवेशकों का बाजार पर से विश्वास घट रहा है।
ऐसे समय में जोखिम उठाने और फिलहाल लागत में नुकसान सहने के लिए मजबूत कलेजे की जरूरत है। वैसे भी शेयर मार्केट का खेल दिग्गजों और महारथियों के लिए है। आम निवेशकों की नियति व स्थिति आम और आम आदमी जैसी है, जिसका जूस ही निकलना है। – डॉ. सतीश कुमार शुक्ल, कॉटन एक्सचेंज बिल्डिंग, द्वितीय तल, कॉटन ग्रीन, मुंबई
विदेशी असर का नतीजा है
भारतीय शेयर बाजार के हिचकोलों के प्रमुख कारण वैश्विकरण की नीति के अंतर्गत विदेशी संस्थागत निवेशकों को आमंत्रण देना, वैश्विक बाजार के नकारात्मक संकेत तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बेलगाम मूल्य वृध्दि है।
अंतरराष्ट्रीय मंदी की आशंका को भाप कर भारतीय शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 1.5 खरब रुपये निकाल लिए, जिससे शेयर बाजार की उन्नति में लंबी अवधि का ग्रहण लग गया।
वैसे तो शेयर बाजार अपने आप में ही मृगमरीचिका है, परंतु उसके वास्तविक निवेशक इन हिचकोलों के बाद भी डटे रहेंगे और लाभ भी कमाएंगे। हां, अल्प काल में शेयर बाजार से भारी पैसा बनाने का सपना देखने वाले ट्रेडरों का दिल भी बैठेगा तथा वे पैसा भी मुठ्ठी में रेत के समान जाते हुए देखेंगे। – डॉ. अमर कुमार जैन, सहायक प्रोफेसर (वाणिज्य विभाग), शासकीय कला वाणिज्य महाविद्यालय, सागर
तेल से निकला निवेशकों का दिवाला
शेयर बाजार में इस समय अनिश्चितता की स्थिति है। महंगाई और पेट्रो प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ने से पिछला सप्ताह शेयर बाजार में खासा उतार-चढ़ाव वाला रहा, जिससे बेचारे निवेशकों को काफी नुकसान व उनकी हार्ट बीट्स बढ़ी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं बल्कि रिकार्ड 150 डॉलर प्रति बैरल की ओर बढ़ता चला जा रहा है। इसका प्रभाव अमेरिकी शेयर मार्केट में भी दिखाई दे रहा है और मार्केट में खासी उठा-पटक चल रही है। डॉउ-जोंस इंडस्ट्रियल, स्टैडर्ड एंड पूअर्स के इंडेक्स में तीन फीसदी से अधिक गिरावट दर्ज की गई है।
इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ रहा है। यही वजह है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना दामन बचा रहे हैं। लेकिन तेल की दहकती आग पूरे विश्व को जलाने का काम कर रही है। अगर भारत सरकार समय रहते सही कदम उठाती तो हमें तेल समस्या का इस कदर सामना नहीं करना पड़ता। – प्रदीप कुमार, मेरठ
निवेशक हितों की हो रक्षा
सेबी द्वारा निवेशकों के हित में पर्याप्त कदम नाउठाने से आम निवेशक शेयर बाजार से दूर होते जा रहे हैं। निवेशकों को कुछ प्राइवेट मीडिया के ही माध्यम से बाजार में निवेश की प्रक्रिया और बाजार की जानकारी मिल पाती है।
इनमें से कुछ भ्रामक जानकारियों और बाजार विश्लेषणों ने आम निवेशकों को डुबाने का ही काम किया है। मसलन जब बाजार जनवरी 2008 के समय अपने उच्चतम स्तर पर था, उस समय कुछ बाजार विशेषज्ञ इसके तीस हजार से ऊपर जाने की भविष्यवाणी करने लगे।
सेबी की नींद तब ही खुलती है जब कोई बड़ा घोटाला सामने आता है। आजकल सेंसेक्स में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। सेबी को निवेशकों की हितों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। नहीं तो आम निवेशक बाजार से दूर होता जाएगा। – सुरेंद्र सिंह कच्छ, स्वतंत्र पत्रकार, 9ए96 साकेत नगर, भोपाल (मध्य प्रदेश)
जमीन पर आ गया है शेयर बाजार
शेयर बाजार एक बार फिर ऊंची उड़ान के बाद धराशयी होकर जमीन पर आ पहुंचा है और अब भी ये अनुमान लगा पाना कि और किस हद तक ये नीचे जा सकता है काफी मुश्किल सा है। 21000 के शिखर से 14000 को छूने के प्रयास से बेशक निवेशकों का दिल बैठ रहा है।
आमतौर पर देखा यह जाता है कि जब शेयर बाजार नीचे जा रहा होता है तो पहले से रखे शेयरों को नीचे खरीद कर ऐवरेजिंग की जाती है और फिर ऊपर उठने पर प्रॉफिट बुकिंग की जाती है, पर यह सब बाजार की सही चाल पर निर्भर करता है। पर अभी निवेशक लॉस बुक करने में ही परेशान है।
ज्यादातर निवेशकों का काफी सारा निवेश बाजार में फंस गया है। एक तो पहले का निवेश निम्न स्तर पर है और ऐवरेजिंग के कारण नया निवेश भी नीचे आ गया है और बाजार के हिचकोले के कारण निवेशकों का दिल बैठ रहा है। – नफीस अहमद, बड़ी मछुआ टोली, दानापुर कैंट, पटना (बिहार)
महंगाई और मंदी से डूबता बाजार
अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट और भारी बिकवाली का सबसे ज्यादा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ा है। सेंसेक्स अपने जनवरी के उच्चतम स्तर से 25 फीसदी से भी अधिक गिर चुका है। यह और कहां तक गिरेगा इसके बारे में अनिश्चितता बरकरार है।
विशेषज्ञों की मानें तो यह बाजार यहां से 10-15 फीसदी और गिर सकता है। वहीं दूसरी तरफ निवेशक हैं, जो शेयर बाजार के इस अनिश्चित स्वभाव से सहमे हुए हैं और अपना पैसा बाजार में लगाने से हिचकिचा रहे हैं।
एक तरफ निवेशक अपना पैसा शेयर बाजार से निकाल कर कमोडिटी बाजार में लगा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी अपना पैसा भारतीय बाजारों से निकाल रहे हैं। बढ़ती महंगाई और वैश्विक मंदी से सरकार भी जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। – मुकेश रंगा, एमबीए (फाइनैंस), डागा चौक, बीकानेर (राजस्थान)
सही नीतियों पर हो पहल
पहले से ही बढ़ती महंगाई, मुद्रास्फीति और कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग से अभी भारतीय उबरे भी नहीं थे कि शेयर बाजार में आए हिचकोलों ने उन्हें और भयभीत कर दिया है। शेयर बाजार में गिरावट से देश की अर्थव्यवस्था को ठेस पहुंची है।
हालांकि इस स्थिति के लिए मुख्य रूप से दो कारक जिम्मेदार हैं- मुद्रास्फीति की दरों में बढ़ोतरी और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा। अगर शेयर बाजार को स्थिर करना है तो सबसे पहले केंद्र सरकार और हमारे विशेषज्ञों को ऐसी नीतियां बनानी होगी, जिससे मुद्रास्फीति और महंगाई पर लगाम लगाई जा सके। इसके बाद ही शेयर बाजार में सुधार आएगा। – नयन कुमार गांधी, बसंत विहार, कोटा (राजस्थान)
पश्चिमी शैली का है जबरदस्त असर
शेयर बाजार के उतार-चढाव ने मानिए हर अनुमान और कयासों को झूठा साबित कर दिया है। एक तरफ तो महंगाई ने लोगों की जेबें ढीली करनी शुरु कर दी है और उसपर से शेयर बाजार की हलचल ने तो बचत और निवेश के सारे गणित को ही बिगाड़ दिया है।
आज लोगों की आमदनी में काफी वृध्दि हुई है और रहन सहन की शैली में गजब का परिवर्तन आया है। भौतिकवादी साधनों के प्रति लोगों की बढ़ती चाहत और खान-पान की फास्ट-फूड संस्कृति ने तो बचत के अवसर को और कम कर दिया है।
एक सजग और सचेत व्यक्ति के लिए आज भी कमाई के साधन और बचत के साध्य के बीच तारतम्यता स्थापित करने की चुनौती है। लेकिन उहापोह की बात यह है कि इसके बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए? – मुकुंद माधव, रामबाग, चंडीगढ़
थोड़ा सोच-विचार कर चलें
खुदरा निवेशकों को थोड़ा धैर्य से काम करना होगा। यह हमेशा से देखने को मिला है कि अगर आज शेयर बाजार में गिरावट का दौर चल रहा है तो आने वाले तीन से छह महीनों मे उसकी स्थिति में सुधार देखने को अवश्य मिलता है। लिहाजा, खासकर खुदरा निवेशकों को थोड़ी समझदारी से काम करना होगा।
उसे वर्तमान को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि लंबी अवधि के लिए शेयर बाजार में पैसे निवेश करने चाहिए। तभी उन्हें फायदा भी होगा अन्यथा उनके हाथ कुछ नहीं लगने का है। – पंकज कुमार, पुष्प विहार, साकेत, नई दिल्ली
दिल एवं विश्वास को मजबूत रखें
जैसे शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है, उसे देख कर लगता है कि अब आए-अब गए। अगर शेयर बाजार नीचे जा रहा है तो वह वहां वापस भी आएगा। इस उतार-चढ़ाव की मुख्य वजह संसार के अधिकतर देशों में आई आर्थिक मंदी है, जिससे उन देशों की अर्थव्यवस्था हिल गई है।
इसके साथ-साथ पेट्रोलियम की कीमतें भी तेजी से आसमान छूती जा रही हैं। इसके साथ ही देश-विदेश के निवेशक अपनी पूंजी भी बाजार से खींच रहे हैं। इसका असर हमारे शेयर बाजार में देखने को मिल रहा है। जब निवेशक कुछ पाने की आशा रखते हैं, तो ये हिचकोले तो झेलने ही होंगे और दिल एवं विश्वास को बनाए रखना होगा। – सुभाष कुमार श्रीवास्तव, आयकर, निवेश एवं बीमा सलाहकार, बबीना कैंट
पुरस्कृत पत्र
सब्र का फल तो मीठा ही होता है
शेयर बाजार एक विस्तृत बाजार है और इसमें अधिकांश छोटे निवेशक होते हैं, जिन्हें शेयर बाजार पर किसका असर पड़ेगा, का ज्ञान नहीं होता है और वे दीर्घकालीन सोच नहीं रखते हैं। छोटे निवेशक आमतौर पर एजेंट पर निर्भर होते हैं।
ऐसे में उनका दिल बैठना जायज है क्योंकि उनके लिए तो छोटी रकम भी बहुत मायने रखती है। उन्हें तो सिर्फ इतना समझ आता है कि शेयर बाजार गिर रहा है तो और गिरेगा या बढ़ रहा है तो और बढ़ेगा।
बस इस वजह से मूल्य गिरने लगता है तो वे अपना अंश बेचने लगते हैं, जिससे कि बाजार में और मंदी आ जाती है और शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर तक गिर जाता है। निवेशकों को थोड़ा सब्र रखना चाहिए और अपने निवेश से संबंधित बाजार की मांग पर ध्यान देना चाहिए। देश विकास कर रहा है तो सब्र किए हुए निवेशकों को भविष्य में लाभ होगा। – प्रगति सिंह, सीईओ, जीएसएस, 90, शिवाजीनगर, महमूरगंज, वाराणसी
सर्वश्रेष्ठ पत्र
अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कारण
इसमें कोई शक नहीं कि शेयर बाजार में आए उतार-चढ़ाव से खुदरा निवेशकों का विश्वास हिल चुका है। एक वक्त ऐसा आता है जब शेयर बाजार बिलकुल अर्श पर होता है और अगले ही पल यह फर्श पर नजर आता है। हालांकि इस उथल-पुथल के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारण गिनाए जा सकते हैं।
वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग और दिनों-दिन बढ़ती मुद्रास्फीति की दर से भारत की वार्षिक वृध्दि दर 8 फीसदी से नीचे चली गई है। खुदरा निवेशकों को समझदारी से काम करना चाहिए। – शकुंतला मनराल, शिक्षाविद्, लखनऊ
खरा नहीं उतरा शेयर बाजार
तेल की कीमतों में लगी आग से शेयर बाजार कमोबेश झुलस गया है। सेंसेक्स की ताजा गिरावट से निवेशकों को करीब 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में स्वाभाविक है कि निवेशकों का शेयर बाजार से मोहभंग होगा ही। आखिरकार कोई भी निवेशक, निवेश में सुरक्षा व गारंटी चाहता है।
भारत सरकार, सेबी, रिजर्व बैंक को अविलंब कारगर पहल करनी चाहिए। कारण कि दहाई अंक तक पहुंचती मुद्रास्फीति, कच्चे तेल की आसमान छूती कीमत व विदेशी रकम वापसी तो डर ही पैदा कर रही है। – हर्ष वर्ध्दन कुमार, सृष्टि रूपा भवन, सरस्वती लेन, पूर्वी लोहानीपुर, पटना (बिहार)
बकौल विश्लेषक
खुद सेबी नहीं समझ पाई, चालबाजों की चाल को
छोटे निवेशकों को भी अब समझ में आ गया है कि बाजार में तेजी का माहौल सही नहीं था, बल्कि कुछ लोगों के फायदे के लिए कृत्रिम रुप से तेजी का माहौल तैयार किया गया था। सेबी जैसी संस्था भी इन चालबाजों को समझ नहीं पाई है। वित्तमंत्री ने समय-समय पर अपने बयानों में बदलाव करके निवेशकों को सिर्फ गुमराह किया है। उसी का नतीजा है कि आज निवेशक बाजार में आने से बच रहे हैं। ये सब देखकर लगता है कि बाजार सटोरियों की गिरफ्त में है।
पिछले आठ महीनों में छोटे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है। एक सप्ताह केअंदर सेंसेक्स 1000 अंक ऊपर-नीचे होता है, ऐसे हालात में निवेशक दूर ही रहे तो बेहतर होगा। क्योंकि बाजार को अपने उंगलियों में नचाने वालों का हाथ पकड़ने वाला कोई नहीं है। अंतरराष्ट्रीय हालातों का हवाला दे कर सरकार एक बार फिर से लोगों को गुमराह करने में लगी हुई है।
आम आदमी को बाजार में फायदा का लालच दिखाकर नये-नये आईपीओ आ रहे है जिनमें सच्चाई बहुत कम है, सिर्फ आंकड़ों का मायाजाल दिखा कर उनकी जमा पूंजी को अपने खाते में जमा करवाना है। मुद्रास्फीति की दर दहाई अंक में पहुंचने वाली है। ऐसे हालात में कोई भारतीय बाजार में पैसा लगाने का जोखिम क्यों मोल लेगा।
अपनी गाढ़ी कमाई को शेयर बाजार में लोग एकविश्वास की वजह से लगा रहे थे ,जो अब पूरी तरह से टूट चुका है। लोकसभा चुनाव तक बाजार से दूर रहकर इसकी चाल को समझे और इसके बाद ही इसमें निवेश करने की सोचें तो ही बेहतर होगा। – किरीट सोमैया, अध्यक्ष, निवेशक शिकायत फोरम (आईजीएफ) एवं भाजपा नेता.
बातचीत: सुशील मिश्र
इस माहौल के लिए खुद निवेशक हैं जिम्मेदार
शेयर बाजार के हिचकोलों के लिए अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों कारण जिम्मेदार हैं। वैश्विक मंदी, आसमान छूती कच्चे तेल की कीमतें, भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की सुगबुगहट और बढ़ती महंगाई दर की वजह से बाजार में अस्थिरता का महौल बना हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं लगाना चाहिये कि भारतीय शेयर बाजार का विकास खत्म हो चुका है। इस समय निवेशकों को काफी सूझबूझ के साथ बाजार में निवेश करना चाहिये।
बाजार में इस समय जो भय का माहौल है, उसके लिए कोई और नहीं बल्कि खुद निवेशक जिम्मेदार हैं। जब बाजार से बाहर निकलने का वक्त आता है, तो लालच के चलते वे मुनाफावसूली नहीं कर पाते हैं और मौका हाथ से निकलने के बाद बाजार की चाल को बैठ कर कोसते हैं। बाजार में एक-एक वर्ग बिना सही हालात को जाने इसकी दिशा के बारे में कुछ भी बयानबाजी करता रहता है।
निश्चित तौर पर इस समय बाजार के हालात अच्छे नहीं हैं। लेकिन इन्हीं कारणों से बाजार सही स्तर पर पहुंच गया है जो निवेशकों विशेष कर छोटे और खुदरा निवेशकों के लिए अच्छी बात है। ऐसे में निवेशक सूझबूझ से अपना एक पोर्टफोलियों बनाएं और ज्यादा फायदा के लालच में न पड़ें। बहुत ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं हैं, इस समय कई अच्छे शेयर कम कीमत पर मिल रहे हैं, उनमें निवेश किया जा सकता है।
इस माहौल में की गई खरीदारी निवेशकों को अच्छा फायदा दे सकती है। एक बात और कि बाजार का एक नियम होता है कि ऊपर जाने के बाद नीचे आना और फिर ऊपर जाना, इस नियम को ध्यान में रखकर यदि बाजार में निवेश किया जाएगा तो फायदा होगा। – अशोक अजमेरा, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, अजकॉन ग्लोबल सर्विस लि.
बातचीत: सुशील
थोड़ा इंतजार करने और संयम रखने से बनेगी बात
वर्तमान में शेयर बाजार में आए उतार-चढ़ाव का सबसे मुख्य कारण- कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, मुद्रास्फीति की दर में वृध्दि और विदेशी बाजार का विकास अस्थिर होना है। भारतीय बाजार सीधे तौर पर अमेरिकी बाजार से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि डॉउ जोंस और नेस्डेक में जब भी गिरावट आती है तो उसका असर यहां भी देखने को मिलता है। एक बात यह भी कि हमारे बाजार में अब वाल्यूम नहीं रह गया है।
अगर शेयर बाजार को 15000-20000 के ऊपर स्थिर बनाए रखना है तो मार्केट में वाल्यूम होना बहुत जरूरी है। ऐसा हमेशा देखने को मिला है कि जब भी शेयर बाजार में थोड़ी-बहुत भी उथल-पुथल होती है, तो सबसे ज्यादा चिंताग्रस्त हमारे खुदरा निवेशक हो जाते हैं और आनन-फानन में आकर अपना पैसा निकाल लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शेयर बाजार का ग्राफ और भी नीचे आने लगता है।
हालांकि खुदरा निवेशकों को ऐसा कतई नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें थोड़ा इंतजार करना चाहिए। ऐसा इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि जो स्टॉक मौलिक रूप से मजबूत होते हैं, उनमें सुधार होने की पूरी संभावना होती है। आज के निवेशक न तो ठीक से इनवेस्टर बन पा रहे हैं और न ही ट्रेडर। सब के मन में कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाने की ललक पैदा हो गई है। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
अगर हम पिछले 20 साल के आंकड़ों पर नजर डाले तो इंडेक्स का औसतन 15 से 20 फीसदी ही रिटर्न आता है। भला खुदरा निवेशक यह कैसे भूल जाते हैं कि जहां औसतन 20 फीसदी ही रिटर्न मिल रहा है वहां 40-50 फीसदी रिटर्न कैसे मिल सकता है।
लिहाजा खुदरा निवेशक को यह समझने की जरूरत है कि वे अपना पेसेंस लूज न करें और मार्केट में लंबे समय तक बने रहे। जहां तक शेयर बाजार की बात है तो इसमें निश्चित ही सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि सरकार और सेबी को मजबूत कदम उठाने की आवश्यकता है। – विकास शंकर, रेलिगेयर, शाखा प्रमुख एवं शेयर परामर्शदाता
बातचीत: पवन कुमार सिन्हा
और यह है अगला मुद्दा:
धनी लोगों से ली जाए पेट्रोल, डीजल और गैस की अधिक कीमत?
अपनी राय और पासपोर्ट साइज फोटो इस पते पर भेजें:
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