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  लेख  क्या संगठित रिटेल चेन के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है?
लेख

क्या संगठित रिटेल चेन के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —February 18, 2009 10:14 PM IST0
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फिर से रफ्तार पकड़ेगी रिटेल
किशोर बियाणी
ग्रुप सीईओ, फ्यूचर ग्रुप
ऐसा नहीं है कि देश में उपभोक्ता उत्पादों की खपत कम हो गई है या फिर उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक वस्तुओं की मांग में कोई कमी आई है।
बल्कि मेरा मानना है कि पहले की अपेक्षा उपभोक्ता वस्तुओं की खपत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे में यह सवाल खड़े करना कि रिटेल चेन के बुरे दिनों की शुरुआत हो गई है, बिल्कुल बेतुकी है।
भारत में जितनी तेजी से रिटेल चेन का विकास हुआ है, उससे सभी अवगत हैं। देश में जितनी भी रिटेल चेन हैं, उन सभी के अलग-अलग मॉडल हैं। मसलन, विभिन्न रिटेल चेन अपने बिानेस मॉडल के अनुरूप कारोबार करती हैं।
कारोबारी अपने हिसाब से मॉडल बनाकर विकास कर रहे हैं। यहां एक बात समझने की जरूरत है कि जो कारोबारी अपने रिटेल चेन मॉडल को जितना ज्यादा बेहतर बनाएंगे, वे उतनी ही तेजी से विकास करेंगे।
हमारा बिजनेस मॉडल अन्य रिटेल चेन से अलग है। मुझे अपनी रिटेल चेन के बिजनेस मॉडल में कोई समस्या नजर नहीं आ रही है। वर्तमान में, हमलोग अपने बिानेस मॉडल से बेहतर कारोबार कर रहे हैं। रिटेल सेक्टर में समस्या खपत को लेकर तो बिल्कुल नहीं है।
हां, यहां यह हो सकता है कि विभिन्न मॉडलों के भीतर ही खामी हो। मसलन, उस बिानेस मॉडल में ही किसी तरह की कोई खामी हो सकती है या फिर बैलेंस शीट में कोई कमी रही हो या फिर कुछ और ही।
जहां तक मंदी की बात है तो उसका थोड़ा-बहुत असर तो देखने को मिला ही है। लेकिन जब आंधी आती है तो लोग कुछ न कुछ प्रभावित होते ही हैं। अगर हम अपने कारोबार की बात करें तो पहले हमारे कारोबार में 55-60 फीसदी तक की वृध्दि हुई थी और अब 30 फीसदी के आसपास है।
अगर कोई यह कहता है कि 30 फीसदी की वृध्दि के बावजूद हम मंदी की चपेट में है तो फिर मुझे यह नहीं समझ में आता कि भारत में कारोबार कैसे किया जाता है। 

आधुनिक कारोबार की बात करें तो एफएमसीजी गुड्स में हमारी कंपनी की 30 फीसदी हिस्सेदारी है। अगर हमारा विकास हो रहा है तो इसका मतलब यह है कि इस रिटेल चेन इंडस्ट्री का भी विकास हो रहा है।
भारत में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की खपत हर साल 8 से 10 फीसदी बढ़ती है। अगर असंगठित क्षेत्रों की बात करें तो उसमें भी प्रतिवर्ष 10 फीसदी का विकास देखने को मिलता है।
मौजूदा स्थिति में मान लेते हैं कि मॉडर्न रिटेल जो 30 फीसदी से विकास कर रहा था, उसमें अब 20 फीसदी की वृध्दि देखने को मिले और असंगठित क्षेत्रों में 10 फीसदी के बजाय 8 फीसदी से वृध्दि हो। ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता है कि लोगों की खपत में कमी आ गई है।
इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब जीडीपी में वृध्दि हो रही है तो भला खपत में कमी कैसे हो सकती है। इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में रिटेल चेन सेक्टर फिर से गति पकड़ेगा।
एक बात मैं यह भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि आप ‘मॉडरेशन’ को मंदी का नाम न दें। वास्तव में बाजार में अभी मॉडरेशन चल रहा है। अगर ऐसे में भी हम विकास कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि रिटेल चेन ग्रो कर रही है।
दूसरे शब्दों में कहें तो रिटेल चेन का बिजनेस मॉडल अब एक सामान्य धरातल पर चल रहा है। जहां तक छोटे जिलों और तालुकों तक रिटेल चेन मॉडल को पहुंचाने की बात है तो वहां भी काम चल रहा है।
कई ऐसे कारोबारी हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए अपने रिटेल चेन मॉडल को विकसित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए आप हरियाली को ले सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाली अच्छे तरीके से विकास कर रही है। छोटे शहरों में हम लगातार विस्तार कर रहे हैं।
हालांकि यह बात दीगर है कि हम लोग जितना विस्तार करना चाहता थे, उतना नहीं हो पा रहा है लेकिन फिर भी कुछ विस्तार तो कर ही रहे हैं।
(बातचीत: पवन कुमार सिन्हा)
खात्मे का आगाज हो चुका
धमेंद्र कुमार शर्मा
निदेशक, इंडिया एफडीआई वॉच
इसमें कोई शक नहीं है कि मंदी की तपिश ने देश के रिटेल चेन बिानेस कारोबार की कड़ी को तोड़कर रख दिया है।
अगर आंकड़ों की बात करें तो 2008 की अंतिम तिमाही में बिग बाजार और फूड बाजार में 9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और इसी दौरान शॉपर स्टॉप में 3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। कुछ छोटे खिलाड़ियों के लिए बुरे दिनों की ही नहीं बल्कि उनके खात्मे की शुरुआत हो चुकी है।
इसके इतर, अगर रिलायंस, टाटा और फ्यूचर ग्रुप जैसे देश के बड़े खिलाड़ियों की बात करें तो ये दुनिया की बड़ी रिटेल चेनों के साथ छोटे साझेदार के रूप में जुड़ जाएंगी। मंदी के इस आलम में रिलायंस जैसे बड़े खिलाड़ी को भी यह अहसास हो गया है कि अगर इस सेक्टर में लंबे समय तक बने रहना है तो विदेश की बड़ी कंपनियों के साथ नाता जोड़ना होगा।
निस्संदेह सुभिक्षा के रिटेल चेन बिजनेस मॉडल के बिखरने के पीछे मुख्य वजह मंदी ही है। लेकिन इसके अलावा भी कई कारण हैं जिसकी वजह से सुभिक्षा को औंधे मुंह गिरना पड़ा है। सुभिक्षा की बाजार रणनीति बिल्कुल गलत थी।
सप्लाई चेन को मजबूत किए बिना सुभिक्षा ने उपभोक्ता उत्पादों को जल्दीबाजी और आक्रामक तरीके से औने-पौने दामों पर बेचना शुरू कर दिया था। किरायों का सही तरीके आकलन किए बगैर ही सुभिक्षा ने बहुत ज्यादा दामों पर रियल एस्टेट को हासिल किया।
सुभिक्षा में सबसे ज्यादा शेयर आईसीआईसीआई बैंक के थे। अमेरिका में धराशायी हो रहे बैंकों से आईसीआईसीआई भी अछूता नहीं रहा और ऐसे में सुभिक्षा के लिए स्थिति और भयावह हो गई। शॉपर स्टॉप और विशाल मेगा मार्ट भी कुछ ऐसे ही छोटे खिलाड़ी हैं, जिस पर मंदी की बहुत ज्यादा मार पड़ी है।
रिटेल में दो सेक्टर होते हैं। मसलन, एक उपभोक्ताओं के लिए किफायती उत्पाद वाला रिटेल सेक्टर तो दूसरा महंगे उत्पादों का रिटेल सेक्टर। मंदी के इस आलम में लोग महंगे उत्पादों की खरीदारी नहीं कर रहे हैं और इस वजह से इस रिटेल सेक्टर में खपत भी कम है।
लेकिन किफायती उत्पादों की खपत पहले की तरह ही बनी हुई है। जो रिटेल चेन किफायती उत्पादों के प्रारूप को अपनाए हुए थे (जैसे-बिग बाजार) वे अभी चल रहे हैं। किफायती उत्पादों के मुकाबले महंगे उत्पादों में बहुत गिरावट देखने को मिली है।
मंदी ने सिर्फ छोटे को ही नहीं बल्कि बड़े खिलाड़ियों भी हलकान किया है। उदाहरण के लिए आप किशोर बियाणी को ले सकते हैं। बियाणी यूरोप की दो कंपनियों-एटाम और अल्फा ग्रुप के साथ बराबर की साझेदारी के लिए एक संयुक्त उपक्रम स्थापित करना चाहते थे।
लेकिन मंदी के आलम में बियाणी ने मौके नजाकत को भांपते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिए। ये दोनों कंपनियां महंगे उत्पादों की बिक्री करती हैं। हालांकि यह सही है कि मंदी ने रिटेल चेन सेक्टर को बुरी तरह प्रभावित किया है।
लेकिन लंबे समय तक मंदी का क्या प्रभाव रहने वाला है, यह देखना होगा। दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल चेन कंपनी वॉल मार्ट एकमात्र ऐसी रिटेल चेन कंपनी है जिसे मंदी में घाटा नहीं बल्कि फायदा हुआ है।
वॉल मॉर्ट की चौथी तिमाही के  परिणाम में बिक्री में 1.7 फीसदी के आसपास वृध्दि दर्ज की गई है। मेरा मानना है कि देश में रिटेल का धीरे-धीरे ‘कॉर्पोरेटाइजेशन’ हो रहा है। दुनिया के कुल जीडीपी में रिटेल सेक्टर का योगदान 27 फीसदी है।
इसमें भारत का योगदान करीब 3 फीसदी का रहा है लेकिन आज की तारीख में यह 5 फीसदी के आसपास है। इस बात की पूरी संभावना है कि 2011 तक भारत का योगदान दोगुना हो जाएगा। मसलन, 2011 तक भारत की हिस्सेदारी 5 फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी हो जाएगी।
आने वाला समय रिटेल सेक्टर के लिए अधिग्रहण और विलय का होने वाला है। इसमें मुख्य रूप से देश के बड़े खिलाड़ी आगे होंगे जबकि छोटे खिलाड़ी मैदान से बाहर हो जाएंगे।

(बातचीत: पवन सिन्हा)

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