इस बात की पूरी उम्मीद है कि वित्तीय बाजारों में व्यापक नियंत्रक उपायों को सर्वाधिक मजबूती के साथ आगे बढ़ाने के उपाय यूरोपीय संघ में देखने को मिलेंगे।
पिछले महीने हुए इसके सम्मेलन के दौरान यूरोपीय संघ ने सभी वित्तीय बाजारों, उत्पादों और भागीदारों के लिए एक व्यापक नियामक मसौदे की जरूरत पर जोर दिया। इन भागीदारों में हेज फंड और दूसरे निजी पूंजी कोष शामिल हैं, जो एक संस्थागत जोखिम का कारण बन सकते हैं।
निश्चित तौर से कई ऐसी वजहें हैं जो बड़े हेज फंडों के सशक्त नियमन की सिफारिश करती हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में, जहां छह सबसे बड़े बैंकों की कुल परिसंपत्ति 2007 के अंत में 6,000 अरब डॉलर थी जबकि अर्ध-बैंकों और हेज फंडों के पास कुल 4,000 अरब डॉलर के संसाधन थे। निश्चित तौर से वित्तीय प्रणाली में इन कोषों की इससे भी कहीं अधिक रकम फंसी हुई होगी।
सच्चाई यह है कि बड़े हेज फंड एक संस्थागत जोखिम का कारण बन सकते हैं। इस बात को साबित हुए करीब एक दशक से अधिक समय बीत चुका है जब हेज फंड लांग टर्म क्रेडिट मैनेजमेंट (एलटीसीएम) ध्वस्त हो गया था और अमेरिकी फेडरल रिजर्व को बचाव अभियान में जुटने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
फेडरल रिजर्व की पहल पर दूसरे बैंकों ने इसमें निवेश किया और नियंत्रण हासिल किया। लेकिन, निश्चित तौर से एलटीसीएल के ध्वस्त होने से इतने प्रमाण नहीं मिले थे कि अमेरिकी अधिकारी इस बात को समझ लेते कि बड़े हेज फंडों में एक संस्थागत जोखिम की स्थिति पैदा करने की क्षमता है। जहां तक निजी इक्विटी फंडों का सवाल है तो यूरोपीय वेंचर कैपिटल एसोसिएशन (ईवीसीए) ने इस पर सख्त निगरानी करने की जरूरत को स्वीकार किया है।
यूरोपीय संघ ने सम्मेलन के मसौदे के अनुरूप जैक्स डी लारोसेरी की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर शीघ्र कार्रवाई करने का वचन दिया है। इन सिफारिशों में हेज फंडों और प्राइवेट इक्विटी फंडों के मानक तैयार करने के लिए सिफारिश करना, वित्तीय सेवाओं में पारिश्रमिक पर सिफारिशें और ट्रेडिंग गतिविधियों के लिए बैंक पूंजी पर प्रस्ताव शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष (आईएमएफ) ने भी निगरानी मसौदे में सुधार करने के लिए कहा है। यह आईएमएफ के उन प्रस्तावों में से एक है जिसके तहत वैश्विक वित्तीय संस्थानों की निगरानी करने का अधिकार गृह देश के अलावा उन देशों को भी देने की बात कही गई है जहां इन संस्थानों की महत्त्वपूर्ण मौजूदगी है।
बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) ने बैंकों से अधिक ऊंची पूंजी अनिवार्यताओं के लिए तैयार रहने को कहा है। इस सबके बीच प्रतिभूति आयुक्त का अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईओएससीओ) भी पीछे नहीं रहना चाहता है। आईओएससीओ ने जिंस बाजार में नकद और डेरिवेटिव बाजार की बारीक निगरानी करने की पेशकश भी की है।
यह भी उल्लेखनीय है कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने पिछले साल आरोप लगाया था कि कच्चे तेल की कीमतों में आई भारी तेजी की वजह मांग और आपूर्ति में अंतर कम और सट्टेबाजी अधिक थी। पारिश्रमिक पर सख्त नियमन और नियंत्रण की आलोचना करते हुए कहा जा रहा है कि इस कारण अभिनव खोज रुक सकती है।
यह महत्त्वपूर्ण है, हालांकि, इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कि पिछले 60 वर्षों के दौरान हुए सभी बड़े और वास्तविक इनोवेशन वाणिज्यिक और निवेश बैंकों द्वारा नहीं, बल्कि दूसरे स्थानों में हुए हैं। सबसे पहले विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच ब्याज दरों की अदला-बदली के तरीके की खोज विश्व बैंक और आईबीएम द्वारा की गई थी और इसमें कोई भी वाणिज्यिक या निवेश बैंक शामिल नहीं था।
ऑप्शन-प्राइसिंग मॉडल और जोखिम मूल्यांकन के लिए बुनियादी काम शिक्षाविदों ने किया था। प्रभावी-बाजार परिकल्पना, जो कि वित्तीय बाजारों के कम नियंत्रण का सैद्धान्तिक आधार है, वह यूजीन फामा के डॉक्टरेट निबंध का हिस्सा था।
संरचनागत वित्त का ज्यादातर बुनियादी काम फैनी मैक और फ्रैडी मैक ने किया था। दोनों ही सरकार द्वारा प्रायोजित हाउसिंग वित्तीय कंपनी हैं। (व्यापक संदर्भ में, कंप्यूटर, इंटरनेट और इस तरह के ज्यादतर इनोवेशन मुख्यत: सरकार, खासतौर से सेना, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और उद्योग के साझा प्रयासों के कारण साकार हो सके हैं।)
सच्चाई यह है कि वाणिज्यिक और निवेश बैंकों द्वारा की गई ज्यादातर अभिनव खोज का मकसद यह रहा है कि कैसे नियामक अवरोधों और कर देने से बचा जाए, एक ऐसी जटिल प्रक्रिया बनाई जाए जो मूल्यांकन और जोखिम को छिपाने में सहायक हो और ये खोज शायद ही कभी उपयोगी आर्थिक उद्देश्यों में मददगार साबित होते हों।
जैसा कि नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जेम्स टोबिन ने 1984 में कहा था: मैं यह कहते हुए असहज हूं कि हम सर्वश्रेष्ठ युवाओं सहित अपने अधिक से अधिक संसाधनों को वस्तु और सेवाओं से हटाकर वित्तीय गतिविधियों में लगा रहे हैं… मुझे संदेह है कि कंप्यूटर की अत्यधिक ताकत का इस्तेमाल इस कागजी अर्थव्यवस्था के लिए किया जा रहा है, यह लेनदेन अधिक आर्थिक रूप से न होकर मात्रा और वित्तीय लेनदेन की विविधता को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
वह विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि: निश्चित तौर से बनावटी लाभ के लिए पिछले 25 वर्षों के दौरान इस वित्तीय लेनदेन पर निर्भरता तेजी से बढ़ी है। कुल मिलाकर कहा जाए तो अब नियामक सख्ती एजेंडे में है। जाहिर तौर पर यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि पूरी कवायद से हासिल क्या होगा?
आमतौर पर ऐसी कवायदों से ऐसे भारी भरकम दस्तावेज तैयार होते हैं, जिन्हें वास्तव में कोई नहीं पढ़ता है, जो गौण बातों को उजागर करते हैं और आवश्यक बातों को छिपा ले जाते हैं। सीडीओ से संबंधित पेशकश दस्तावेज, जो कि बैंकिंग प्रणाली द्वारा दर्ज की गई भारी मौद्रिक हानि के मूल में है, अक्सर 500 से 600 पेज तक के होते हैं, लेकिन जाहिर तौर पर निवेशक इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
अथवा क्या ऐसी परिसंपत्तियों जिनकी गणना टियर एक पूंजी के तौर पर की जा सकती है, जैसे बुनियादी मुद्दों से निपट सकेगा- उदारहण के तौर पर आस्तिगत कर परिसंपत्तियां? क्या इससे बैंकों को स्वामित्व कारोबार, हेज फंड का प्रबंधन और प्राइवेट इक्विटी में शामिल होने से रोका जाएगा? या शायद अधिकतम ऋण-इक्विटी अनुपात को स्पष्ट किया जाए?
बैंकों ने 8 प्रतिशत के पूंजी अनुपात का तो पालन किया लेकिन कुछ बैंकों का ऋण-इक्विटी अनुपात 3040 तक पहुंच गया (संकट से पहले निवेश बैंक के मामले में यह 50 तक था)।
