सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दर को तर्कसंगत बनाने पर सुझाव देने के लिए जीएसटी परिषद की मंजूरी से कर्नाटक के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्री समूह बनाया है। इसका मकसद राजस्व तटस्थता (जीएसटी से पहले के स्तर) और औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता के दोहरे उद्देश्यों में संतुलन कायम करना है।
जीएसटी का अच्छा डिजाइन यह सुनिश्चित करने पर आधारित है कि कच्चे माल से लेकर खुदरा बिक्री तक की पूरी मूल्य शृंखला को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि कर पर कर का नकारात्मक असर नहीं पड़ता है और प्रत्येक चरण में केवल मूल्य शृंखला पर ही कर लगता है। इस डिजाइन में यह आवश्यक है कि कोई छूट नहीं हो क्योंकि कोई भी छूट करों के रास्ते को चौड़ा कर देती है और मूल्य शृंखला में विभिन्न बिंदुओं पर लागूू करों की समस्या पैदा कर देती है, जिससे लागत बढ़ती है। हालांंकि छूट को खत्म करने की अहमियत को आम तौर पर स्वीकार किया जाता है। लेकिन इस बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं है कि शुल्क की कम दरें उल्टे शुल्क ढांचे और मूल्य शृंखला के विभिन्न बिंदुओं पर इनपुट टैक्स क्रेडिट बढऩे की वजह बन रही हैं।
ऐसे में जीएसटी भुगतान वाले इनपुट को समझने की जरूरत है। इन इनपुट को तीन हिस्सों- इनपुट वस्तुओं, इनपुट सेवाओं और पूंजीगत वस्तुओं में बांटा जा सकता है। पूंजीगत वस्तुएं कर के लिए बहुत अहम हैं क्योंकि अगर उत्पादित माल पर उतना कर नहीं लगाया गया, जो पहले के करों की भरपाई कर सकता है तो इससे इनपुट क्रेडिट का अंबार लग सकता है। इसलिए विनिर्माण बढ़ाने के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में ताजा निवेश आकर्षित करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादित माल पर जीएसटी की दर मानक दर के नजदीक होनी चाहिए।
जीएसटी दरें तय करने में यह उपयुक्त हो सकता है कि जीएसटी की 12 फीसदी और 18 फीसदी की दर को मिलाकर एक मानक 16 फीसदी की दर बना दी जाए। यह 18 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी नहीं किया जाए, जिस पर अभी चर्चा चल रही है। इससे सेवाओं पर मानक जीएसटी दर और महंगाई के दबाव में कमी आएगी। एक निम्न मानक दर में यह भी जरूरी होगा कि मेरिट दर में बढ़ोतरी की जाए ताकि मानक और मेरिट दर में अंतर में किया जा सके। इसे मौजूदा 5 फीसदी से बढ़ाकर 8 फीसदी किया जा सकता है।
इस समय विभिन्न विनिर्माण उद्योगों द्वारा जीएसटी दर कम करने की मांग केवल इनपुट सामग्री पर करों को ध्यान में रखते हुए की जा रही है, जिसमें इनपुट सेवाओं और पूंजीगत वस्तुओं में शामिल अहम करों की अनदेखी की जा रही है। प्रदूषण नियंत्रण उपकरण अनिवार्य रूप से लगाने के दिशानिर्देशों को मद्देेनजर रखते हुए पूंजीगत वस्तु घटक विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
इसके अलावा जीएसटी की कम दरों से वह विनिर्माण खंड पर प्रभावित होगा, जो पीएलआई योजना के लाभ हासिल करना चाहता है। पीएलआई योजना के तहत अहम निवेश के दौरान पूंजीगत उपकरणों पर कर लगेगा, जिसकी भरपाई के लिए उत्पादन पर तर्कसंगत जीएसटी दरों की दरकार होगी। विनिर्माण इकाइयां जैसे-जैसे मूल्य शृंखला में ऊपर जाती हैं तो डिजाइन, बौद्धिक संपदा अधिकार, वित्तीय सेवाओं जैसी इनपुट सेवाएं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। इसलिए विनिर्माण क्षेत्र को लघु अवधि के नजरिये से बचना चाहिए और इन दरों को वृद्धि और आधुनिकीकरण के मध्यम एवं लंबी अवधि के नजरिये से देखना चाहिए।
दुर्भाग्य से कुल इनपुट करों को डेटा की दिक्कतों के कारण आसानी से तीन हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है। यह काम कुछ परोक्ष अनुमानों के जरिये किया जा सकता है। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि अगर विनिर्माण में अहम निवेश होना है तो जीएसटी की दरें नीची नहीं रह सकतीं क्योंकि इससे टैक्स क्रेडिट बढ़ेगा, जिससे परियोजना की लागत में इजाफा होगा और इससे निवेशक हतोत्साहित होंगे।
उचित जीएसटी ढांचे के अलावा विनिर्माण वृद्धि के लिए कम आयात शुल्क की जरूरत होगी। इस आयात के दायरे में ऐसे कच्चे माल और पूंजीगत उपकरण आएंगे, जिनका भारत में विनिर्माण नहीं होता है। ये दरें इस समय औसतन 15 से 18 फीसदी हैं, जो बहुत अधिक हैं और विनिर्माण क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं।
हाल में कोविड संकट के दौरान सुदृढ़ देसी टीका उद्योग होने के बावजूद उत्पादन की अमेरिका से फिल्टर बैग जैसे अहम कच्चे माल के आयात पर निर्भरता रही। इसलिए पूर्ण आत्म-निर्भरता व्यवहार्य नहीं है, लेकिन आयात कुछ अहम क्षेत्रों तक ही सीमित होना चाहिए। पीएलआई योजना में भी यही मकसद हासिल करने की कोशिश की गई है। यह उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि केवल कर नीति ही निवेश फैसलों को प्रभावित नहीं करेगी। विनिर्माण वृद्धि के लिए अनुकूल तंत्र विकसित करने के लिए कारक बाजार में सुधार करने की आवश्यकता है, जिनमें भूमि, श्रम और ऊर्जा शामिल हैं।
इसलिए जीएसटी दर की बहस में दर तय करने में पूरी इनपुट आपूर्ति शंृखला को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जीएसटी दर तय करने की कड़ी प्रतिक्रिया क्यों होती है, इसकी एक वजह यह है कि सरकार और व्यापार एवं उद्योगों के बीच सूचनाओं में तालमेल नहीं होता है। इसलिए यह जरूरी है कि सूचनाओं को सार्वजनिक किया जाए और संबंधित तथ्यों से सभी भागीदारों को परिचित कराया जाए। इसमें संवाद बहुत अहम है। चुपके से सुधार करना व्यवहार्य नहीं है और न ही वांछनीय है। सुधार व्यापक विचार-विमर्श और बहस पर आधारित होना चाहिए। यह खास तौर पर आर्थिक सुधारों के मामले में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिनमें मुद्दे ज्यादा जटिल हैं और जिनके फायदे और नुकसान दोनों हैं और इसका एक नतीजा होता है। इसके नतीजे के फायदे बताना आसान नहीं है और नीति-निर्माताओं के लिए उस क्षेत्र का ज्ञान और संवाद का कौशल होना आवश्यक है। बहुत वर्षों पहले फ्रांसिस बेकन ने कहा था कि ‘ज्ञान ही ताकत है’। आज डिजिटल दुनिया में जन भागीदारी और जागरूकता अत्यधिक है, इसलिए ‘अभिव्यक्ति ही शक्ति है’।
(लेखक केद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड के सेवानिवृत्त सदस्य हैं। ये उनके निजी विचार हैं )
