वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर शून्य के करीब रह सकती है। उनका यह अनुमान भी अत्यधिक आशावादी प्रतीत होता है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक समेत अधिकांश जगहों से आए पूर्वानुमान में कहा गया है कि इस वर्ष वास्तविक उत्पादन में दो अंकों में गिरावट आ सकती है। गिरावट इतनी अधिक है कि अगले वित्त वर्ष में सुधार काफी मजबूत नजर आ सकता है और भारत दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होने वाली बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकता है। यद्यपि नीति निर्माताओं को ऐसे आंकड़ों से छलावे में नहीं आना चाहिए। महामारी का कष्ट भारतीय अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक वहन करना होगा। रिजर्व बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति का जो ताजा अध्ययन बुधवार को जारी किया है वह कुछ चुनौतियों को रेखांकित करता है।
महामारी से जूझने में राज्य अग्रिम पंक्ति में हैं और विस्थापितों तथा प्रभावितों को राहत भी वही दिला रहे हैं। सरकार के पूंजीगत व्यय का 60 फीसदी हिस्से का बोझ भी उन पर है। ऐसे में उनकी वित्तीय स्थिति का देश की अर्थव्यवस्था पर काफी असर होगा। अध्ययन के मुताबिक चालू वर्ष में राज्य सरकारों का सकल राजस्व घाटा, सकल घरेलू उत्पाद के 4 फीसदी से ऊपर जा निकल सकता है। वहीं राजस्व अगले कुछ वर्षों तक दबाव में बना रहेगा। महामारी से जुड़ा खर्च भी व्यय को बढ़ाकर रखेगा। अभी यह तय नहीं है कि अगले कुछ महीनों में महामारी पर नियंत्रण हासिल हो सकेगा या नहीं और आर्थिक गतिविधियों पर लगे प्रतिबंध पूरी तरह समाप्त हो सकेंगे अथवा नहीं।
तथ्य यह है कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार की वित्तीय स्थिति तंग है और इससे आने वाले दिनों में समस्या में इजाफा ही होगा। गत वर्ष के लिए संशोधित आंकड़ों के अनुसार राज्यों का समेकित सकल राजस्व घाटा जीडीपी के 3.2 फीसदी के बराबर था। इस वर्ष जो अप्रत्याशित राजस्व विस्तार हुआ है वह भी पूंजीगत व्यय को प्रभावित करेगा। जैसा कि केंद्रीय बैंक ने कहा भी है कि पूंजीगत व्यय को आमतौर पर अवशिष्ट माना जाता है और राजस्व परिस्थितियों के अनुसार वह समायोजित किया जाता है। बीते तीन वर्षों से बजट अनुमान की तुलना में पूंजीगत व्यय में कटौती की जा रही है क्योंकि राजस्व क्षेत्र में बाधा देखने को मिल रही है। हालांकि केंद्र सरकार राज्यों को 12,000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्तऋण दे रहा है लेकिन लगता नहीं कि इससे हालात बहुत संभलेंगे। बजट में पूंजीगत व्यय के 6.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया है।
बजट घाटे के विस्तार के अलावा डेट स्टॉक राज्य स्तर पर व्यय को भी प्रभावित करेगा। राज्य सरकारों की बकाया जवाबदेही 2015 में जीडीपी के 22 फीसदी से बढ़कर चालू वर्ष में 26.6 फीसदी हो चुकी है। यह बजट अनुमान है और अंतिम आंकड़ा यकीनन अधिक होगा। राज्यों की देनदारी भी बढ़ रही है। केंद्र ने राज्य विद्युत वितरण कंपनियों को 90,000 करोड़ रुपये की नकद सहायता दी है। इसके साथ ही राज्य सरकारों की बकाया गारंटी जीडीपी के 3 फीसदी से अधिक हो गई है। ऐसे में सरकार की वित्तीय स्थिति का असर आर्थिक वृद्धि पर पडऩा लाजिमी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत का कुल सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 90 फीसदी तक पहुंच सकता है। राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति केंद्र-राज्य संबंधों को भी प्रभावित करेगी। वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति के विषय में मतभेद एक बानगी है। मध्यम अवधि में यह भी वृद्धि पर असर डालेगा। ऐसे में भारत को हर स्तर पर सावधानीपूर्वक आर्थिक प्रबंधन करने की आवश्यकता है। केवल उच्च तीव्रता वाले संकेतकों में सुधार के भरोसे आशा लगाए रखना पर्याप्त नहीं होगा।
