दुनिया भर में कृषि की जरूरतें बदलती जा रही हैं लेकिन भारत में कृषि शिक्षा में अब तक आमूल बदलाव नहीं हो पाया है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे सुधार की तरफ अग्रसर होने की तैयारी में है।
दशकों से भारत में राज्य कृषि विश्वविद्यालय समेत कृषि से जुड़े तमाम शिक्षण संस्थानों के लिए मजबूत आधारभूत संरचना मौजूद है, लेकिन वहां से उत्तीर्ण होने वाले छात्र कसौटी पर खरे उतरने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाए हैं।
यहां तक कि कृषि वैज्ञानिक चयन बोर्ड को खाली पदों पर भर्ती करने में दिक्कत हो रही है क्योंकि उन्हें न तो अच्छे वैज्ञानिक मिल पा रहे हैं और न ही शिक्षक। शिक्षण के स्तर पर पैदा हुई इस खाई को अब पाटने की तैयारी हो रही है ताकि उच्च शिक्षा को वैश्विक स्तर का बनाया जा सके। जुलाई 2009 से शुरू होने वाले सत्र से पाठयक्रम में बदलाव और कई नए कोर्स शुरू करने का प्रस्ताव है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति जे. सी. कत्याल की अगुवाई वाले 12 सदस्यीय पैनल ने एमएससी लेवल के 95 विषयों और पीएचडी लेवल के 80 विषयों के लिए नया पाठयक्रम तैयार करने का भारी भरकम काम अपने हाथ में लिया था।
पैनल ने 2500 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की है और इस महीने की शुरुआत में सरकार के सामने पेश भी कर दिया है। नए पाठयक्रम को कुछ सुझाव के साथ एकमत से विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने मंजूर भी कर लिया है।
इस काम की शुरुआत काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) ने की थी, जो मुख्य रूप से कृषि विश्वविद्यालयों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरह काम करता है। आईसीएआर के महा निदेशक मंगला राय ने कहा कि कृषि की पारंपरिक शिक्षा में बदलाव की खातिर इस तरह का यह पहला कदम है, जिसका लक्ष्य ऐसे मानव संसाधन तैयार करना है जिसे न सिर्फ स्वीकार किया जाएगा बल्कि वे पूरी दुनिया में सम्मान की नजर से देखे जाएंगे।
इन बातों के अलावा स्नातकोत्तर छात्रों के लिए छोटी अवधि के कई अनिवार्य कोर्स मसलन तकनीकी लेखन, कम्युनिकेशन, नैतिक मूल्य और अनुसंधान आदि शुरू किए जाने पर विचार किया जा रहा है। सभी छात्रों को आधुनिक पुस्तकालय लैबोरेटरी में तकनीक, नई सूचनाएं और दूरसंचार उपकरण आदि का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
नए शिक्षण एजेंडे के तहत नए क्षेत्रों में और समकालीन विषयों में मसलन बौध्दिक संपदा अधिकार और विश्व व्यापार संगठन से जुड़े मसलों पर विशेषज्ञता हासिल करने पर ध्यान दिया जाएगा। इसके साथ ही अत्याधुनिक तकनीक मसलन मोलेक्यूलर बायोलॉजी, जीनोमिक्स, डीएन फिंगर प्रिंटिंग, नैनो टेक्नोलॉजी, जेनेटिक इंजीनियरिंग, क्रॉप वेदर मॉडलिंग व इको फ्रेंडली और मौसम परिवर्तन से खेती पर होने वाले असर आदि शामिल हैं।
दिलचस्प रूप से बायो टेररिज्म यानी जैव आतंकवाद को ध्यान में रखते हुए नए कोर्स मसलन बायो-सेफ्टी, बायो-सिक्युरिटी, कृषि आपदा प्रबंधन आदि की योजना बनाई गई है। कृषि के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने में समर्थ माइक्रो-आर्गेनिज्म के महत्त्व को देखते हुए इसके दोहन के लिए भी विशेषज्ञता का मामला रेडार पर है।
उच्च ताप पर जिंदा रहने वाले जीवाणुओं से ऐसे जीन मिल सकते हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में उच्च ताप सहने वाले पौधे उगाए जा सकते हैं। यह कवायद सिर्फ पाठयक्रम में बदलाव तक सीमित नहीं है बल्कि कृषि से जुड़ी उच्च शिक्षा में सुधार की अहम जरूरत तक भी इसका विस्तार हो रहा है।
अब सभी विश्वविद्यालयों को एक सामान पाठयक्रम और अकादमिक नियम बनाने होंगे। विश्वविद्यालयों को हालांकि स्थानीय कृषि की परिस्थितियों के अनुसार अपने पाठयक्रम में 25 फीसदी तक बदलाव करने की अनुमति दी गई है।
इसके अलावा पूरे देश में ग्रेडिंग का एक सा सिस्टम होगा। इससे नौकरी के बाजार में विभिन्न विश्वविद्यालयों के पुराने छात्रों को एकसमान मौका मिल सकेगा। इसके अलावा वे दूसरे राज्य में स्थित शिक्षण संस्थानों में जा सकेंगे, जो फिलहाल आसान नहीं है।
आईसीएआर द्वारा आयोजित परीक्षा के आधार पर हर विश्वविद्यालय जितने छात्रों को प्रवेश देता है उसका प्रतिशत वर्तमान में 25 फीसदी है और इसे बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया गया है। (सामान्य रूप से यह केंद्रीय कोटा कहलाता है) इससे छात्रों का प्रवाह एक राज्य से दूसरे राज्य की तरफ हो पाएगा।
किसी खास विषय पर अगर किसी विश्वविद्यालय में शिक्षक का अभाव है तो वैसी परिस्थिति में उस खास विषय से जुड़े अतिथि लेक्चरर को आमंत्रित करने की बाबत विश्वविद्यालय को प्रोत्साहित किया जाएगा। आईसीएआर इस बाबत वित्तीय समर्थन देगा क्योंकि इससे अच्छे शिक्षकों की कमी पूरी हो सकेगी।
इसके अतिरिक्त 90 नए वैज्ञानिक क्षेत्रों में उत्कृष्ट केंद्र का विकास प्रस्तावित है। ये विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्थापित किए जाएंगे। सैध्दांतिक शिक्षा की बजाय कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। इससे कृषि शिक्षा देश की विकास की जरूरतों के मुताबिक प्रासंगिक हो जाएगी।
